पोप : बुजूर्गों और युवाओं के बीच स्नेह समाज को अधिक समझदार बनाता
पोप फ्राँसिस ने “बुजूर्गों के फाऊंडेशन” (ग्रेट एज फाऊंडेशन) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में प्रतिभागियों से मुलाकात करते हुए कहा कि अंतर-पीढ़ीगत स्नेह में समाज को बदलने और ज्ञान प्रदान करने की शक्ति होती है।
बुजूर्गों के फाउंडेशन ने शनिवार को संत पौल छटवें सभागार में "दुलार और मुस्कान" शीर्षक से एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसने बुजुर्गों के अधिकारों और उनके प्रति समाज के कर्तव्य पर प्रकाश डालने के लिए 6,000 से अधिक दादा-दादी और पोते-पोतियों को एक साथ लाया।
पोप फ्राँसिस ने प्रतिभागियों को बधाई दी और जीवन के लिए गठित परमधर्मपीठीय अकाडमी के अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष विंचेंसो पालिया को धन्यवाद दिया, जिन्होंने इस आयोजन को बढ़ावा देने में मदद की।
अपने संबोधन में, पोप ने युवाओं और बुजुर्गों के एक साथ समय बिताने के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि उनका साझा प्यार दुनिया को बेहतर, समृद्ध और समझदार बनाता है।
पोप ने सबसे पहले इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि कैसे अंतरपीढ़ीगत स्नेह हमें बेहतर इंसान बनाता है। उन्होंने एक कहानी सुनाई जिसको उन्होंने अपनी दादी से एक लड़के के बारे में सुनी थी। उस लकड़े के दादाजी ने ठीक से खाना नहीं खाने के लिए लड़के को टेबल पर अपमानित किया था।
जब उसके दादाजी ने अपने पोते को अकेले मेज़ पर बिठाया, तो लड़का हथौड़ा और कील लेकर कुछ करने लगा। जब उसके पिता ने उससे पूछा कि वह क्या कर रहा है, तब लड़के ने उत्तर दिया: "मैं आपके लिए एक मेज बना रहा हूँ, क्योंकि जब आप बूढ़े हो जाओगे तो आपको अकेले खाना खाना पड़ेगा!"
संत पापा ने कहा कि उन्होंने अपनी दादी से जो सबक सीखा, वह यह था कि कभी किसी को अलग नहीं करना चाहिए, जैसे येसु कभी किसी को बाहर नहीं करते या अपमानित करते हैं।
पोप ने कहा, "किसी को भी बाहर न करके, प्रेम के साथ मिलकर रहने से ही हम बेहतर, अधिक मानवीय बनते हैं!"
विभाजन और अकेलेपन पर काबू पाना
उन्होंने कहा कि बुजुर्गों और युवाओं के बीच प्यार हमारे समाज को समृद्ध बनाता है। केवल एक ही दुनिया है और यह कई पीढ़ियों से बनी है।
उन्होंने कहा, "अगर विभिन्न पीढ़ियों के लोग सामंजस्य बिठा लेते हैं, तो वे एक बड़े हीरे की तरह मानवता और सृष्टि की अद्भुत महिमा को प्रकट करेंगे।"
पोप फ्रांसिस ने सभी से आग्रह किया कि वे उन आवाजों पर ध्यान न दें जो हमें "अपने लिए सोचने" या "किसी की जरूरत महसूस नहीं करने" के लिए कहती हैं।
उन्होंने कहा, इस तरह का रवैया अकेलेपन और एक फेंक देनेवाली संस्कृति की ओर ले जाती है जिसमें बुजुर्गों को अपने अंतिम वर्ष अपने प्रियजनों से दूर बिताने के लिए अकेला छोड़ दिया जाता है।
उन्होंने कहा, "आइए, हम एक साथ मिलकर ऐसी दुनिया का निर्माण करें, न केवल सहायता कार्यक्रम चलाकर बल्कि विभिन्न परियोजनाओं को विकसित करते हुए जहां गुजरते सालों को एक नुकसान के रूप में नहीं बल्कि ऐसी वस्तु के रूप में देखा जाता है जो विकसित होता और सभी को समृद्ध करता है: तथा ऐसे लोगों से डरा नहीं जाता बल्कि उनकी सराहना की जाती है।”
समाज को तरोताजा करनेवाला
पोप फ्रांसिस ने तब याद किया कि पीढ़ियों के बीच का स्नेह, हमें बुजुर्ग सिमेओन और अन्ना की तरह समझदार बनाता है, जिन्होंने येसु को ईश्वर के पुत्र के रूप में पहचाना, जब उनके माता-पिता उन्हें मंदिर में लाए।
जबकि पोप ने कहा, जब दादा-दादी की उपेक्षा की जाती है तो समाज चीजों को जल्दी भूल जाता है।
उन्होंने कहा, “(दादा-दादी) को सुनना विशेषकर, जब वे आपको अपने प्रेम से सिखाते और सबसे बढ़कर स्नेह बनाये रखने का उदाहरण देते हैं, जिसको दबाव से नहीं पाया जा सकता है, सफलता भले न दिखाई दे लेकिन जीवन को भर देता है।
पोप ने कहा कि दादा-दादी युवा पीढ़ी को युद्ध की भयावहता और शांति की तलाश के महत्व के बारे में भी सिखा सकते हैं।
पोप फ्रांसिस ने अंत में कहा, "जब आप, दादा-दादी और पोते-पोतियां, बुजुर्ग और युवा, एक साथ होते हैं, जब आप एक-दूसरे को देखते और सुनते हैं, जब आप एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं," तब आपका प्यार ताजी हवा के एक झोंके के समान है जो दुनिया को तरोताजा कर देता है, और समाज, पारिवारिक संबंधों से ऊपर, हम सभी को मजबूत बनाता है।''