विश्व सामाजिक न्याय दिवस : अगर मानवता की सेवा नहीं करनी है तो हम यहां क्यों हैं?

विश्व सामाजिक न्याय दिवस पर, सीआईडीएसई महासचिव हमें याद दिलाते हैं कि हम जो भी निर्णय लेते हैं और जो भी नई नीति लागू की जाती है, उसका दूसरों के जीवन और आजीविका पर प्रभाव पड़ता है, और आज हम जिन संकटों का सामना कर रहे हैं, वे आपस में जुड़े हुए हैं।

सामाजिक न्याय का अर्थ है सभी के लिए समानता और गरिमा। इसका मतलब यह है कि प्रणाली न केवल सुरक्षा के लिए बनाई गई है, बल्कि लोगों द्वारा चुने गए विकल्पों में सहायता के लिए, साथ ही एक ऐसा वातावरण बनाने के लिए भी बनाई गई है जो उन्हें सुरक्षित रखे और फलने-फूलने में मदद करे।

विश्व सामाजिक न्याय दिवस प्रतिवर्ष 20 फरवरी को मनाया जाता है और इसके आयोजन का उद्देश्य यही है: हर साल हमें निष्पक्ष, अधिक न्यायसंगत समाज बनाने की आवश्यकता की याद दिलाना।

सीआईडीएसई के महासचिव जोसाइन गौथियर के अनुसार, आज हम इस क्षेत्र में जिस मुख्य चुनौती का सामना कर रहे हैं, वह यह है कि "हम एक बहु-संकट की बात कर रहे हैं।"

सामाजिक न्याय की लड़ाई में अग्रिम पंक्ति में, सीआईडीएसई काथलिक सामाजिक न्याय संगठनों का एक अंतरराष्ट्रीय परिवार है जो सामाजिक न्याय के लिए मिलकर काम कर रहा है, और सुश्री गौथियर बताती हैं कि "हम यह देख चुके हैं कि अतीत में जिन संकटों से हम निपटे थे, वे आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं।
वे कहती हैं, ''चाहे जलवायु व्यवधान हो, अत्यधिक गरीबी हो, हिंसा हो, संसाधनों पर युद्ध और संघर्ष हो, लिंग, सामाजिक और नस्लीय असमानता हो,'' ये सभी ''शक्ति असंतुलन और बर्बादी की संस्कृति'' के कारण उत्पन्न हुए हैं, अब हम यह समझ रहे हैं कि यह मनुष्यों के बीच, मनुष्यों और शेष सृष्टि के बीच संबंधों का एक परस्पर जुड़ा हुआ संकट मात्र है।''

"कचरे की संस्कृति" एक ऐसी अवधारणा है जिसका जिक्र पोप फ्राँसिस अक्सर करते हैं। वे अन्याय का कारण बननेवाली इस वैश्विक उदासीनता से लड़ने के लिए अपने धर्मोपदेश का अधिकांश समय समर्पित किया है, विशेष रूप से, उन्होंने जलवायु परिवर्तन से खतरे में पड़े हमारे आमघर की सुरक्षा, प्रवासियों और शरणार्थियों की सुरक्षा और स्वागत के लिए लगातार अपील की है, और "उदासीनता के वैश्वीकरण" के खिलाफ भी चेतावनी दी है तथा धनी देशों से गरीबों की मदद हेतु ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया है।

प्रवासन के बारे में बात करते हुए सुश्री गौथियर कहती हैं कि जब लोगों को अपना देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है, तो यह इसलिए होता है क्योंकि यह रहने योग्य नहीं है और उनके लिए कोई भविष्य नहीं है, तब "हम अपनी नैतिकता के संकट का सामना कर रहे हैं।"

सुश्री गौथियर ने प्रश्न किया, "हम अपने स्वयं के राजनीतिक और आर्थिक विकल्पों के कारण दूसरे लोगों को अपने घरों से भागने की अनुमति कैसे दे सकते हैं और फिर जब वे सीमा पार करते हैं तथा उन्हें हमारी एकात्मता की आवश्यकता होती है तब हम कैसे उन्हें दूर कर सकते हैं?" यह सिर्फ न्याय की बात है।
एक अवसर
उन्होंने सभी को निमंत्रण दिया है कि विश्व सामाजिक न्याय दिवस को एक खास अवसर के रूप में देखा जाए, थोड़ा अवकाश लेकर यह देखने की कोशिश की जाए कि हम दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, हम आपस में, इस ग्रह के जीवों के साथ किस तरह उचित संबंध स्थापित कर सकते हैं, जो हमारा आमघर है।

गौथियर के अनुसार सामाजिक न्याय एवं मानव अधिकार के लिए पोप फ्राँसिस की अपील "बेहद प्रासंगिक" है, और यह "इस समय नीति निर्माताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण और शानदार संदेश होना चाहिए।"

वे कहती हैं कि उनका मानना है कि नीतियों को हमेशा इस बात से जोड़ा जाना चाहिए कि वे लोगों के जीवन, हमारे पूरे जीवन को दैनिक आधार पर कैसे प्रभावित करती हैं, क्योंकि "अगर यह मानवता की सेवा करने और सभी के लिए एक स्वागत योग्य और न्यायपूर्ण घर बनाने के लिए नहीं है तो हम यहां और किस लिए हैं?"

अंत में, सुश्री गौथियर हमें याद दिलाती हैं कि "यह कोई खेल नहीं है" और एक साथ काम करना, सभी के बारे में सोचना, एक सामूहिक जिम्मेदारी है, जिसे "पोप फ्राँसिस हमें याद दिलाते नहीं थकते"।