ख्रीस्तीयों ने 'जादुई चिकित्सकों' के खिलाफ असम राज्य कानून का विरोध किया

असम ख्रीस्तीय मंच ने एक बयान जारी कर कहा है कि 'जादुई चिकित्सकों' का बिल धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। यह उपचार पद्धति, बीमारी में "विश्वास और प्रार्थना" की भूमिका के बारे में "गलत धारणाओं" पर आधारित है, और धार्मिक "विविधता" का सम्मान करने में विफल है। ख्रीस्तीय धर्मगुरूओं ने शैक्षिक संस्थानों के लिए "खतरों" के बारे में भी चिंता व्यक्त की है जहाँ ख्रीस्तीय प्रतीकों को "हटाने" की मांग की जा रही है।

उत्तर-पूर्वी असम के मंत्रीमंडल ने धर्मांतरण और स्वास्थ्य सेवा में विश्वास से संबंधित प्रथाओं पर अंकुश लगाने के साथ-साथ प्रस्तावित बहुविवाह विरोधी कानून को उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के साथ संरेखित करने के लिए असम चंगाई (बुराई की रोकथाम) प्रथा विधेयक 2024 को मंजूरी दे दी है।

असम ख्रीस्तीय मंच और गुवाहट्टी के महाधर्माध्यक्ष जॉन मूलाकेरा के अनुसार “जदुई चंगाई” पर नया बिल उपचार पद्धतियों, बीमारी से निपटने में "विश्वास और प्रार्थना" की भूमिका के बारे में "गलतफहमियों" पर आधारित है, और धार्मिक "विविधता" का सम्मान करने में विफल है।

10 फरवरी को, राज्य मंत्रीमंडल ने लोगों के स्वास्थ्य के नाम पर जादुई और धोखाधड़ीवाली उपचार पद्धतियों पर नकेल कसने के लिए विधेयक को मंजूरी दी। प्रस्तावित कानून "अवैध" समझी जानेवाली प्रथाओं में शामिल किसी भी व्यक्ति पर जेल की सजा और जुर्माना लगाएगा।

विधेयक का पुरजोर समर्थन करनेवाले मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का कहना है कि ''जादुई उपचार एक पेचीदा विषय है जिसका इस्तेमाल आदिवासी लोगों को धर्मांतरण करने के लिए किया जाता है।''

कानून के पीछे का आधार धार्मिक "यथास्थिति" और धर्मों के बीच "उचित संतुलन" की गारंटी देना और उसे बनाए रखना है। श्री सरमा ने कहा, "मुसलमानों को मुस्लिम ही रहने दें, ईसाइयों को ईसाई ही रहने दें, हिंदुओं को हिंदू ही रहने दें।"
स्पष्ट शब्दों में, मुख्यमंत्री "असम में धर्म प्रचार पर अंकुश लगाना चाहते हैं और इस संबंध में, चंगाई पर प्रतिबंध लगाना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।" उनके विचार में, सरकार उन विश्वास के चंगाई कर्ताओं के पीछे जा रही है जो आदिवासी लोगों का धर्मपरिवर्तन करने की कोशिश करते हैं, उन्होंने आगे कहा, "हम किसी विशेष धर्म को लक्षित नहीं कर रहे हैं।"

बिस्वा सरमा की टिप्पणी की असम क्रिश्चियन फोरम (एसीएफ) ने आलोचना की है, जो एक प्रमुख संगठन है जिसमें विभिन्न स्थानीय ख्रीस्तीय समूह शामिल हैं। असम क्रिश्चियन फोरम के लिए, जादुई चंगाई और धर्मांतरण को समानता का दर्जा देना "भ्रामक" है।

इस बात को ध्यान में रखते हुए असम क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष जॉन मूलचेरा, एसीएफ के महासचिव माननीय चोवाराम दैमारी और एसीएफ के प्रवक्ता एलन ब्रूक्स ने एक प्रतिक्रिया का मसौदा तैयार किया है।

एक बयान में, एसीएफ ने कहा कि "कई औषधालय और अस्पताल" "मान्यता प्राप्त" हैं और "बीमारों को आवश्यक सेवाएँ" प्रदान करनेवाले चिकित्सा ढांचे के भीतर काम करते हैं।

विश्वास और प्रार्थना के स्थान के संबंध में, एसीएफ का तर्क है कि सभी धर्मों में एक "सार्वभौमिक अभ्यास" होता है जिसमें "ईश्वरीय चंगाई का आह्वान किया जाता है, जिसमें विश्वास और जीवन का "आध्यात्मिक आयाम" शामिल है और इसका जादू से कोई लेना-देना नहीं है।”
उन्होंने यह भी कहा है कि धार्मिक विविधता का सम्मान किया जाना चाहिए और ईश्वरीय आशीर्वाद का आह्वान करना "मंदिरों, मस्जिदों या गिरजाघरों में" एक आम बात है।

इस बीच, ख्रीस्तीय नेता शैक्षिक संस्थानों से "ख्रीस्तीय प्रतीकों को हटाने" एवं हमारे स्कूलों में "हिंदू पूजा [...] की शुरुआत" के आह्वान से परेशान हैं।
एसीएफ के बयान में कहा गया है, "उपचार, चाहे प्रार्थना या चिकित्सा के माध्यम से हो, धार्मिक सीमाओं से परे है।" "ईसाइयों के रूप में, हम अपने विश्वास और मानवता के प्रति प्रेम द्वारा निर्देशित दयालु सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं" और "एक समावेशी समाज को बढ़ावा देते हुए संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित करते हैं।"