देवदूत प्रार्थना में पोप : गति धीमी करें, चिंतन करें और प्रार्थना करें

रविवार को देवदूत प्रार्थना के पूर्व पोप फ्राँसिस ने अपने संदेश में कहा कि अधिक देखभाल करनेवाले एवं दयालु बनने के लिए हमें दैनिक जीवन की भाग-दौड़ एवं चिंताओं से रूकना होगा, तथा अपनी शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को पुनः चार्ज करने के लिए चिंतन और प्रार्थना में समय व्यतीत करना होगा।

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में उपस्थित विश्वासियों एवं तीर्थयात्रियों के साथ पोप फ्राँसिस ने रविवार 21 जुलाई को देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित किया।

आज की धर्मविधि का सुसमाचार पाठ (मार.6,30-34) बतलाता है कि मिशन से लौटने के बाद प्रेरित, येसु के चारों ओर इकट्ठे होते और बताते हैं कि उन्होंने क्या किया; तब येसु ने उनसे कहा, तुम लोग अकेले ही, मेरे साथ निर्जन स्थान पर चले आओ, और थोड़ा आराम कर लो। (पद. 31) हालाँकि, लोग उनके हावभाव समझ लेते हैं और जब येसु नाव से बाहर निकलते हैं, तो भीड़ को इंतजार करते हुए पाते हैं, वे उनके प्रति दया महसूस करते एवं उन्हें शिक्षा देने लगते हैं।(पद. 34)

इसतरह, एक ओर विश्राम का निमंत्रण और दूसरी ओर भीड़ के प्रति येसु की करुणा। रुकना और येसु की करुणा पर विचार करना कितना सुंदर है वे दो विरोधाभासी चीजों की तरह प्रतीत होते हैं, लेकिन आराम और करुणा एक साथ चलते हैं।

काम करने के तानाशाहीपन से बचें
पोप ने पाठ पर चिंतन करते हुए कहा, “आइए एक पल के लिए इस संयोजन पर ध्यान केंद्रित करें।”

येसु को चेलों की थकान की चिंता है। शायद वे एक ऐसे खतरे को समझ रहे हैं जो हमारे जीवन और हमारे धर्मप्रचार को भी प्रभावित कर सकता है, उदाहरण के लिए, जब मिशन को पूरा करने में उत्साह, साथ ही हमें सौंपी गई जिम्मेदारी एवं कर्तव्य को पूरा करने के बारे में हम बहुत चिंतित हो जाते हैं तो हम सक्रियतावाद के शिकार बनाते हैं, जो ठीक नहीं है। और फिर ऐसा होता है कि हम उत्तेजित हो जाते और आवश्यक चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे हमारी ऊर्जा खत्म होने और शरीर एवं आत्मा की थकान का खतरा हो जाता है। यह हमारे जीवन के लिए, हमारे समाज के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है जो अक्सर जल्दबाजी का गुलाम होता है, लेकिन कलीसिया और प्रेरितिक सेवा के लिए भी हम काम करने के तानाशाह से सावधान रहें!”

परिवारों की समस्या
यह परिवारों में भी आवश्यकता के कारण हो सकता है, उदाहरण के लिए, जब पिताजी को अपनी जीविका कमाने के लिए काम पर जाना पड़ता है, और उसे परिवार के साथ बिताने के समय का त्याग करना पड़ता है। वे अक्सर सुबह जल्दी चले जाते हैं, जब बच्चे सो रहे होते, और देर शाम को लौटते हैं, जब वे पहले से ही बिस्तर पर होते हैं। और ये एक सामाजिक अन्याय है। परिवारों में, पिता और माताओं के पास अपने बच्चों के साथ व्यतीत करने के लिए समय होना चाहिए, ताकि परिवार में प्यार बढ़े और वे काम की तानाशाही में न पड़ें। आइए, सोचें कि हम उन लोगों की मदद के लिए क्या कर सकते हैं जो इस तरह जीने को मजबूर हैं।

शरीर और आत्मा को पुनः चार्ज करना
विश्राम के लिए येसु के निमंत्रण की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए संत पापा ने कहा, “येसु का प्रस्ताव बाकी दुनिया से भागना नहीं है, बल्कि, व्यक्तिगत कल्याण की ओर वापसी है; इसके विपरीत, जब वे खोए हुए लोगों से मिलते हैं तो दया से द्रवित हो जाते हैं। और इसलिए सुसमाचार से हम सीखते हैं कि ये दो वास्तविकताएँ - आराम और करुणा - जुड़ी हुई हैं: यदि हम आराम करना सीखते हैं तभी हम दया कर सकते हैं।”

वास्तव में, एक दयालु नजर रखना संभव है, जो दूसरों की जरूरतों को समझ सकता है, यह केवल तभी संभव हो सकता है जब हमारा दिल कुछ करने की चिंता से ग्रस्त न हो, अगर हम जानते हैं कि कैसे रुकना है और, आराधना की चुप्पी में, ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त करना है।

आत्मजाँच
पोप ने आत्मजाँच करने हेतु प्रेरित करते हुए कहा, “इसलिए, प्रिय भाइयो और बहनो, हम खुद से पूछे : क्या मैं जानता हूँ कि अपने दिनचर्या में कैसे रुकना है? क्या मैं जानता हूँ कि खुद के साथ और प्रभु के साथ रहने के लिए एक पल कैसे निकालना है, या क्या मैं हमेशा काम करने की जल्दी में रहता हूँ? क्या हम जानते हैं कि हर दिन के शोर-गुल और गतिविधियों के बीच आंतरिक "रेगिस्तान" को कैसे खोजा जाए?”

तब माता मरियम से प्रार्थना करते हुए पोप ने कहा, “कुँवारी मरियम हमें दिनचर्या के सभी क्रिया-कलापों के बीच आत्मा में विश्राम करने में मदद करे एवं हमें दूसरों के प्रति उदार और दयालु बनने में सहायता दे।” इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।