जीवन की परिपूर्णता के लिए पोप ने परोपकार का मार्ग अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया

रविवारीय देवदूत प्रार्थना के दौरान अपने चिंतन में पोप फ्राँसिस ने हमें स्मरण दिलाया कि भौतिक चीजें जीवन को परिपूर्णता की ओर नहीं ले जातीं, बल्कि प्रेम का मार्ग अपनाने से ही जीवन परिपूर्णता की ओर जाता है, जो अपने लिए कुछ नहीं रखता, बल्कि सब कुछ बांट देता है।

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 4 अगस्त को पोप फ्राँसिस ने विश्वासियों एवं तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, “प्रिय भाइयो एवं बहनो, शुभ रविवार।”

आज सुसमाचार पाठ हमें येसु के बारे बताता है, जो रोटियों और मछलियों के चमत्कार के बाद, भीड़ को आमंत्रित करते हैं, जो उन्हें, उस घटना पर विचार करने, उसका अर्थ समझने के लिए ढूंढ रही थी।(यो. 6,24-35)

हमारे पास जो कुछ हैं उसे बांटना
उन्होंने वह बांटा हुआ भोजन खाया था और देखा था कि कैसे, एक लड़के की उदारता और साहस से, जिसने अपने पास जो था उसे दूसरों के लिए दे दिया था, और बहुत कम से ही सभी के पेट भर गये थे। (यो. 6,1-13) चिन्ह स्पष्ट था: यदि हर कोई दूसरों को अपने पास जो है उसे दे देता है, तो ईश्वर की मदद से, थोड़े से भी हर किसी के पास कुछ न कुछ हो सकता है। संत पापा ने कहा इसे न भूलें: यदि कोई दूसरों को अपने पास जो है उसे दे देता है, तो ईश्वर की मदद से, थोड़े से भी सभी के पास कुछ न कुछ हो सकता है।

वे समझ नहीं पाए: उन्होंने येसु को कोई जादूगर समझ लिया, और उन्हें खोजने के लिए वापस आये, इस उम्मीद से कि वे दोबारा चमत्कार करेंगे मानो कि यह कोई जादू था।(पद. 26)

अपनी यात्रा में उन्होंने खुद इसे अनुभव किया था, लेकिन इसके महत्व को नहीं समझ पाये : उनका ध्यान केवल रोटियों और मछलियों, भौतिक भोजन पर केंद्रित था, जो तुरंत समाप्त हो गया। उन्हें यह समझ नहीं आया कि यह केवल एक माध्यम था जिसके द्वारा पिता ने उनकी भूख मिटाते हुए, उन्हें कुछ और भी महत्वपूर्ण बात बतायी। पिता ने क्या प्रकट किया? उन्होंने बतलाया कि जीवन का मार्ग हमेशा कायम रहता है और रोटी का स्वाद पूर्ण रूप से तृप्त कर देता है।

सच्ची रोटी
संक्षेप में, सच्ची रोटी, येसु हैं ईश्वर के प्रिय पुत्र जो मनुष्य बन गये (35), जो हमारी गरीबी को साझा करने के लिए, इसके माध्यम से हमें ईश्वर और हमारे भाइयों के साथ पूर्ण सहभागिता के आनंद की ओर मार्गदर्शन करने के लिए आए थे (यो.3:6)। भौतिक चीजें जीवन को नहीं भरती हैं, वे हमें आगे बढ़ने में मदद करती हैं और महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे जीवन को नहीं भरती हैं: केवल प्यार ही ऐसा कर सकता है। (यो. 6,35) और इसके लिए प्रेम का मार्ग अपनाना पड़ता है जो अपने लिए कुछ नहीं रखता, बल्कि सब कुछ बांटता है। प्रेम सब कुछ साझा करता है।

परोपकार या प्रेम का रास्ता
संत पापा ने कहा, “और क्या हमारे परिवारों में भी ऐसा नहीं होता? हम इसे देख सकते हैं। आइए उन माता-पिता के बारे में सोचें जो अपने बच्चों को अच्छी तरह से पालने और उनके भविष्य के लिए कुछ छोड़ने हेतु जीवन भर संघर्ष करते हैं। कितना सुंदर है जब यह संदेश समझ में आता है, और बच्चे आभारी होते हैं एवं बदले में भाइयों की तरह एक-दूसरे के सहायक बन जाते हैं! ये सच है।”

हालाँकि, संत पापा ने कहा, “यह दुखद है, जब वे विरासत पर लड़ते हैं” - मैंने कई मामले देखे हैं, यह दुखद है - और वे एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते हैं, और शायद वे पैसे को लेकर एक-दूसरे से बात नहीं करते, वे वर्षों तक एक दूसरे से बात नहीं कर सकते हैं! पिता और माता का संदेश, उनकी सबसे कीमती विरासत, पैसा नहीं बल्कि प्यार है, इसी प्यार के साथ वे अपने बच्चों को सब कुछ देते हैं जो उनके पास है, ठीक उसी तरह ईश्वर हमारे साथ करते हैं, और इसलिए वे हमें प्यार करना सिखाते हैं।

चिंतन
आइए हम अपने आप से पूछें: भौतिक चीजों से मेरा क्या संबंध है? क्या मैं उनका गुलाम हूँ, या क्या मैं उन्हें प्यार देने और प्राप्त करने के साधन के रूप में स्वतंत्र रूप से उपयोग करता हूँ? क्या मुझे पता है कि प्राप्त उपहारों के लिए ईश्वर और अपने भाइयों को "धन्यवाद" कैसे कहना है, और क्या मैं जानता हूँ कि उन्हें दूसरों के साथ कैसे बांटना है?

तब संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना करते हुए कहा, “मरियम, जिन्होंने अपना पूरा जीवन येसु को दे दिया, हमें हर चीज को प्रेम का साधन बनाना सिखाएँ।”

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।