मैंने जीवित प्रभु को पाया

"यदि कोई मसीह के साथ एक हो गया है, तो वह नयी सृष्टि बन गया है। पुरानी बातें समाप्त हो गयी हैं और सब कुछ नया हो गया है।" (2 कुरिन्थियों 5: 17)
पास्का का अर्थ है पार होना। यहूदियों के लिए मिस्र की गुलामी से पार होना, लाल सागर के पार होना, यह सब बहुत मायने रखता था। वे दुःख का अनुभव कर चुके थे और उससे पार हुए थे। पास्का उनके बीते दुःखद इतिहास का भाग था। किन्तु प्रभु येसु के मृतकों में से जी उठना मृत्यु का पार करना है।
एक सुंदर किस्सा है जो हमें पार होने के महत्व और अपरिहार्य आवश्यकता को दर्शाता है। कोठावरी नदी आंध्रप्रदेश में एक स्थान पर समुद्र में मिल जाती है। उस जंक्शन पर मछुआरे समुद्र में मछली पकड़ने जाते हैं। उन्हें "इलासा" नाम से एक विशेष प्रकार की बहुत सारी मछलियाँ मिलती हैं। इस मछली की बाजार में कोई मांग नहीं है, लोग इसके बदसूरत रूप, स्वादहीनता और सख्त त्वचा के कारण इसे बिल्कुल भी नहीं खरीदते हैं, इसलिए जब मछुआरों द्वारा इलासा मछली पकड़ी जाती है, तो वे उन्हें वापस समुद्र में फेंक देते हैं, क्योंकि, इस मछली को कोई 10 रूपये किलो में भी नहीं खरीदना पसंद नहीं करता है। इसलिए इस मछली से उन्हें कोई फायदा नहीं होता है। बरसात के मौसम में इलासा मछली धारा के विपरीत तैरती है और समुद्र को छोड़कर नदी में आ जाती है। अब मछली के साथ कुछ नया हो रहा होता है। मछली के जीवन में एक मौलिक और महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है। यह अपने रंग को गहरे से सुनहरे रंग में बदलता है, यह अपने शरीर को बदसूरत से आकर्षक रूप में बदलता है, यह इसका स्वाद भी बदलता है। अब इसका मूल्य प्रति किलो 500 से ऊपर हो जाता है। वर्तमान में इसका नाम "पुलासा" है। इसके रंग, स्वाद और आकार बदलने के बाद इसका नाम और मूल्य भी बदल जाता है। उस मछली की तरह जिसने खारे पानी को पार कर अच्छे पानी में प्रवेश किया, जिसका जीवन और स्वयं उसके बाद समान नहीं था, हमें भी पापी जीवन से पवित्र जीवन में बदलने के लिए बुलाया गया है और हमारे जीवन का मूल्य भी बदल जाएगा। मछली ने खारे पानी को पार कर अच्छे पानी में प्रवेश किया और उसका जीवन पूर्णतः बदल गया। पास्का पर्व हमारे लिए भी पार होने का समय है।
40 दिनों तक हमने जो उपवास, प्रार्थना, एवं दान के कार्य किये है हमें उन कार्यों को आगे भी जारी रखना है। जिस प्रकार से हम नए साल पर अपनी बुरी आदतों और प्रवत्तियों को छोड़ने का संकल्प लेते है और उसके लिए निरंतर कार्य करते है। इसी प्रकार चालीसा काल में भी हमने अपनी बुरी आदतों और प्रवत्तियों को छोड़ने का संकल्प लिया होगा। पास्का या पुनरुत्थान के पर्व का यह मतलब बिलकुल नहीं है की हम उस संकल्प को छोड़कर अपनी पुरानी ज़िन्दगी में वापस लौट जाए। पास्का का अर्थ है पार होना। पास्का समय है नवीनीकरण का। येसु के साथ एक नए जीवन में प्रवेश करने का।
यह पास्का हमारे लिए तभी कारगर सिद्ध होगा जब हम स्वयं मसीह के साथ एक नयी सृष्टि बन जाए। चालीसा काल के दौरान हमने अपनी बहुत सी बुरी आदतों पर काबू पाया है। हमने ना सिर्फ अपनी बुरी आदतों को छोड़ा है बल्कि पापस्वीकार, उपवास, प्रार्थना, दान आदि के द्वारा पुनरुत्थित मसीह के साथ एक नए जीवन में प्रवेश कर चुके है। पास्का मिस्सा में बपतिस्मा की प्रतिज्ञा को दोहराकर हम हम सब एक छोटे बालक जैसे स्वच्छ और निर्मल बन गए है। अब हमें आवश्यकता है कि हम अपने इस रूप को बरकरार रखे और एक बेहतरीन ख्रीस्तीय जीवन जिए। यह पास्का हमारे लिए एक बहुत ही सुन्दर समय है जब हम ख्रीस्त के साथ एक हो सकते है।
संत पौलुस का कहना है "यदि मसीह नहीं जी उठे, तो आप लोगों का विश्वास व्यर्थ है और आप अब तक अपने पापों में फँसे हैं।" (1 कुरिन्थियों 15:17) पास्का पर्व मृत्यु से जीवन, अनन्त जीवन की आशा है। पास्का का मोमबत्ती प्रभु येसु का प्रतीक है जो पाप का अंधकार दूर करता है। शिष्यगण के लिए येसु की मृत्यु अत्यधिक दुःख का कारण था। वे निराश, हताश अपने पुराने काम पर लौटने लगते हैं क्योंकि उनके लिए सब कुछ अब खत्म हो गया था। ऐसी बेबस स्थिति में येसु का पुनरुत्थान उनकी सोच से बाहर था। पुनर्जीवित प्रभु के दर्शन उनकी समझ से परे था। अतः वे उन्हें नहीं पहचान पाये। दूसरी बात यह कि अब वही येसु प्रभु नये रूप में प्रकट होते हैं। वे अब पुनर्जीवित ख्रीस्त हैं। विश्वास ही धर्म की धरोहर है। यदि विश्वास नहीं हो तो धर्म का कोई मोल नहीं होता। प्रेरित थोमस ने बिना देखे विश्वास नहीं किया था। पर उनके शब्द 'मेरे प्रभु, मेरे ईश्वर' पुनर्जीवित ख्रीस्त पर विश्वास को प्रकट करता है। वही थोमस सुसमाचार प्रचार करने भारत आये और यहाँ विश्वास के बीज बो कर शहीद हो गये। आज विश्वास का सबसे बड़ा पर्व पास्का पर्व सभों के लिए आशा का, खुशी का, अनन्त जीवन का संदेश लाता है। इस पास्का पर आइये हम सभी एक नया स्वभाव धारण करें। जिससे हम ख्रीस्तीय मूल्यों को अन्य लोगों के साथ बाँट सकें। साथ ही नित दिन ईश्वर की वंदना करते रहे, ईश्वर की कृपा बनी रहेगी।"
प्रवीण परमार