पोप : उपशामक देखभाल उन लोगों के साथ निकटता का संकेत है जो पीड़ित हैं

पोप फ्राँसिस ने उपशामक देखभाल पर अंतर्राष्ट्रीय अंतरधार्मिक संगोष्ठी में प्रतिभागियों को आशा का संदेश देते हुए कहा कि हमें उन लोगों का साथ देने के लिए बुलाया गया है जो पीड़ित हैं और जिन्हें आशा की वजह खोजने में कठिनाई होती है।

पोप फ्राँसिस ने टोरंटो, कनाडा में उपशामक देखभाल पर एक अंतरराष्ट्रीय अंतरधार्मिक संगोष्ठी में प्रतिभागियों को एक संदेश में कहा, "आशा वह है जो हमें जीवन की चुनौतियों, कठिनाइयों और चिंताओं से उत्पन्न सवालों का सामना करने की ताकत देती है।" संत पापा के संदेश को कनाडा के प्रेरितिक राजदूत, महाधर्माध्यक्ष इवान जुर्कोविच द्वारा संगोष्ठी की शुरुआती रात में पढ़ा।

सभा के विषय "आशा की कथा की ओर" पर विचार करते हुए संत पापा फ्राँसिस कहते हैं, "मानव परिवार के सदस्यों के रूप में और विशेष रूप से विश्वासियों के रूप में, हमें प्रेम और करुणा के साथ उन लोगों का साथ देने के लिए कहा जाता है जो संघर्ष करते हैं और जिन्हें आशा की वजह खोजने में कठिनाई होती है।”

विशेष रूप से जो लोग बीमारी से पीड़ित हैं और मृत्यु के करीब हैं, संत पापा आगे कहते हैं, "उन्हें उन लोगों द्वारा प्रदान की गई आशा की गवाही की आवश्यकता है जो उनकी देखभाल करते हैं और जो उनके साथ रहते हैं।"

पोप कहते हैं कि पीड़ा के बोझ को कम करने के प्रयास में उपशामक देखभाल "पीड़ित लोगों के साथ निकटता और एकजुटता का एक ठोस संकेत है" और जीवन के अंत का सामना कर रहे लोगों और उनके परिवारों और प्रियजनों को “असुरक्षा, नाजुकता और सीमितता को स्वीकार करने में मदद कर सकती है" जो इस दुनिया में मानव जीवन को चिह्नित करती है।

पोप फ्राँसिस ने सावधानीपूर्वक "प्रामाणिक उपशामक देखभाल" और इच्छामृत्यु के बीच अंतर को स्पस्ट किया, "जो कभी भी बीमार और मर रहे लोगों की आशा या वास्तविक चिंता का स्रोत नहीं है।  इच्छामृत्यु "प्यार की विफलता है, फेंक देने वाली संस्कृति का प्रतिबिंब है," इसे गलत तरीके से "करुणा के एक रूप" के रूप में प्रस्तुत किए जाने के बावजूद, सच्ची करुणा में किसी के जीवन को समाप्त करना शामिल नहीं है, बल्कि उनका साथ देने और उनकी शारीरिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक या आध्यात्मिक पीड़ा में भाग लेने के लिए तैयार रहना शामिल है।

इस प्रकार, यह "प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से मरने वाले व्यक्ति की मौलिक और अनुल्लंघनीय गरिमा" की पुष्टि करता है और उन्हें "इस जीवन से अनन्त जीवन में प्रवेश के अपरिहार्य क्षण को स्वीकार करने में मदद करता है।"

पोप का कहना है कि विश्वासी विशेष रूप से एक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत कर सकते हैं जो "बीमारी, पीड़ा और मृत्यु की गहरी समझ प्रदान करता है, उन्हें ईश्वरीय विधान के रहस्य [और] पवित्रीकरण के साधन के रूप में देखते हैं।"

आस्था का दृष्टिकोण इसी तरह उन लोगों को उनके जीवन के अंत में ईश्वर और दूसरों, विशेषकर परिवार के सदस्यों और प्रियजनों के साथ आराम और मेल-मिलाप पाने में मदद कर सकता है।

पोप फ्राँसिस संगोष्ठी के प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते हुए कहते हैं कि उनकी सेवा महत्वपूर्ण है, "यहां तक ​​कि आवश्यक भी है, बीमार और मरने वाले लोगों को यह एहसास दिलाने में कि वे अलग-थलग या अकेले नहीं हैं, कि उनका जीवन बोझ नहीं है, और वे ईश्वर की नज़र में स्वाभाविक रूप से मूल्यवान हैं, और हमारे साथ संवाद के बंधन से जुड़े हुए हैं।"

पोप ने अपने संदेश के अंत में आशा व्यक्त की कि संगोष्ठी के विचार-विमर्श से प्रतिभागियों को "प्रेम में दृढ़ रहने, जीवन के अंतिम क्षणों में लोगों को आशा प्रदान करने तथा अधिक न्यायपूर्ण और भाईचारे वाले समाज के निर्माण में मदद मिलेगी।"