पोप : ख्रीस्तीय एकता शोषण नहीं ईश्वरीय उपहारों को बांटना है

पोप लियो 14वें ने इस्तांबुल में अर्मेनियाई प्रेरितिक महागिरजाघर में प्रार्थना की, और इतिहास में अर्मेनियाई लोगों द्वारा दिये गये साक्ष्य हेतु ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।

पोप लियो ने नीसिया धर्मसभा की 1700वीं वर्षगांठ के अवसर पर तुर्की की अपनी प्रेरितिक यात्रा के चौथे दिन इस्तांबुल अर्मेनियाई प्रेरितिक महागिरजाघर में अर्मेनिया के प्राधिधर्माध्यक्ष साहाक द्वितीय का अभिवादन किया।

पोप लियो ने अपने संबोधन में कहा कि इस परम पावन भेंट से मुझे आपार हर्ष हो रहा है, खासकर उसी जगह पर जहाँ पूर्ववर्ती प्राधिधर्माध्यक्षों शेनोर्क प्रथम और मेसरोब द्वितीय ने मेरे पूर्ववर्ती उत्तराधिकारियों का स्वागत किया था। आपका अभिवादन करते हुए, मैं अति पूज्यनीय करेकिन द्वितीय, आर्मेनियाई कलीसिया के सर्वोच्च प्राधिधर्माध्यक्ष को भातृत्व के भाव प्रकट करना चाहूँगा जिन्होंने हाल ही में मुझे अपने यहां आने के निमंत्रण से सम्मानित किया, इसके साथ ही मैं इस्तांबुल और तुर्की के धर्माध्यक्षों,पुरोहितों और पूरे आर्मेनियाई प्रेरितिक समुदाय को भी अपना भ्रातृत्वमय सहचर प्रदान करता है।

अपने अभिवादन में पोप लियो ने इतिहास के विभिन्न दुखद परिस्थितियों में आर्मेनियाई लोगों के साहसपूर्ण ख्रीस्तीय साक्ष्य की अभिव्यक्ति हेतु ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट किये। उन्होंने कहा, “इसके साथ ही मैं आर्मेनियाई और काथलिक कलीसिया के बीच सदैव से चली आ रही भ्रातृत्वमय एकजुटता के लिए ईश्वर का धन्यवाद करता हूँ।” द्वितीय वाटिकन महासभा के तुरंत बाद, 1967 में महामान्यवर कोरेन प्रथम, रोम के धर्माध्यक्ष से मिलने और शांति का चुम्बन करने वाले पूर्वी रीति ऑर्थोडॉक्स कलीसिया के पहले प्राधिधर्माध्यक्ष बनें। मैं यह भी याद करता हूँ कि 1970 के मई महीने में मान्यवर कैथोलिकोस वास्केन प्रथम ने संत पापा पॉल 6वें के साथ संत पापा और पूर्वीरीति की ऑर्थोडॉक्स प्रारिधर्माध्यक्ष के बीच प्रथम संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किया, जिसके तहत विश्वासियों को ख्रीस्त में भाई-बहनों स्वरूप एकता स्थापित करने के लिए निमंत्रण दिया गया। तब से लेकर आज तक ईश्वर की कृपा से कलीसियाओं में “प्रेम की वार्ता” प्रस्फुटित हुई है।

पोप लियो ने कहा कि प्रथम एकतावर्धकवार्ता की इस 1700वीं सालगिराह ने मुझे यह अवसर प्रदान किया कि मैं नाईसिन धर्मसार के महोत्सव में सहभागी हो संकू। “इस साझा प्रेरितिक धर्मसार के आधार पर हमें चाहिए कि हम अपनी एकता की पुनः खोज करें जो शुरूआती सालों में रोम की कलीसियाओं और प्रचीन पूर्वीरीति की कलीसियाओं में व्याप्त थी।” इसके साथ ही हमें चाहिए कि हम अतीत की कलीसियाओं के अनुभवों से प्रेरित हों जिससे हम पूर्ण एकता में बने रह सकें, एक एकता जिसका अर्थ शोषण या प्रभुत्व नहीं है, बल्कि कलीसिया में पवित्र आत्मा के द्वारा मिले उपहारों का आदान-प्रदान है, जिसके द्वारा ईश पिता की महिमा और कलीसिया की आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह मेरी आशा है कि संयुक्त अंतरराष्ट्रीय ईशशास्त्रीय वार्ता हेतु सम्मेलन काथलिक कलीसिया और पूर्वीरीति की अर्थोडॉक्स कलीसियाओं के मध्य इसके फलदायी कार्यों की पुनः शुरूआत हो सकें, जो पूर्ण एकता की चर्चा करता है, जिसके बारे में संत पापा जोन पौल द्वितीय अपने विश्व प्रेरितिक पत्र उत ऊनुम सिंत में जिक्र किया है।

पोप लियो ने कहा कि एकता की इस यात्रा में, हम साक्ष्यों से अपने को घिरा पाते हैं। उन्होंने अर्मेनियन परंपरा के संतों की सूची में 12वीं सदी के महान कैथोलिकोस और कवि नेर्सेस 4वें श्नोरहाली की याद की, जिनके मरण की 850वीं वर्षगाँठ हाल ही में मनाया गया। उन्होंने अथक रुप में येसु ख्रीस्त की प्रार्थना कि “वे सब एक हो जाये” (यो.17.21) को पूरा करने हेतु कलीसिया में कार्य किया। “संत नेर्सेस का उदाहरण और उनकी प्रार्थना हमें पूर्ण एकता में मार्ग में बढ़ने हेतु मदद करें।” संत पापा ने प्रधिधर्माध्यक्ष के स्वागत हेतु कृतज्ञता के भाव अर्पित किये और ख्रीस्तीय एकता हेतु अपने पूरी प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया। “ हम ऊपर ईश्वर की ओर से आने उपहारों के लिए खुले रहें जिससे हम सुसमाचार का सच्चा साक्ष्य दे सकें और ख्रीस्त की कलीसया की सेवा में बेहतर सेवक बन सकें।