राष्ट्रीय सम्मेलन की मांगः ख्रीस्तीय दलितों को नहीं दी गई जगह बहाल की जाए

धर्मसभा पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन में कलीसिया और समाज में दलित ख्रीस्तियों को वंचित स्थान बहाल करने का आह्वान किया गया है।

16-17 फरवरी के सम्मेलन में "सहभागी कलीसिया: भारत में वंचितों की आवाज" में भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सममेलन ने, 2016 की दलित सशक्तिकरण नीति का अध्ययन किया गया, जो जाति प्रथाओं को समाप्त करने और समावेशी समुदायों को बढ़ावा देने का आदेश देती है। यह नीति कलीसिया और समाज में दलित ख्रीस्तियों के वंचित स्थान पर भी ध्यान केंद्रित करती है।

कार्यक्रम का आयोजन तमिलनाडु धर्माध्यक्षीय काउंसिल, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीबीसीआई) के तहत अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कार्यालय के सहयोग से किया गया था।

सम्मेलन में आंध्र प्रदेश, दिल्ली, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु और तेलंगाना के दलित काथलिकों ने भाग लिया। हैदराबाद के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल अंतोनी पूला ने बेंगलुरु में भारतीय सामाजिक संस्थान में आयोजित सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा, "सहभागी कलीसिया का ध्यान समन्वय भागीदारी और मिशन पर है।"

दलित समुदाय के पहले कार्डिनल ने कहा कि काथलिक कलीसिया के मिशन में सभी को शामिल किया जाना चाहिए ताकि कोई भी पीछे छूटा हुआ महसूस न करे। उन्होंने जोर देकर कहा, "हाशिये पर पड़े लोगों को कलीसिया में भाग लेना चाहिए जहां उनकी आवाज सुनी जानी चाहिए।"

उपस्थित लोगों में सीबीसीआई कार्यालय के अध्यक्ष, बेरहामपुर के धर्माध्यक्ष शरत चंद्र नायक और उनके पूर्ववर्ती चिंगेलपेट के धर्माध्यक्ष नीथिनाथन अंतोनीसामी शामिल थे।

यह मानते हुए कि धर्मसभा में "साझाकरण, संवाद, संचार, समन्वय, एक-दूसरे का सम्मान करना और सभी मनुष्यों को सम्मान देना" शामिल है, धर्माध्यक्ष नायक ने कहा कि अब समय आ गया है कि कलीसिया धर्मसभा की पृष्ठभूमि में दलित सशक्तिकरण नीति पर चर्चा करे।

यह कार्यक्रम 2021-2023 के दौरान संत पापा फ्राँसिस द्वारा बुलाई गई "सिनॉडालिटी" पर धर्मसभा के अनुवर्ती के रूप में आयोजित किया गया था। धर्माध्यक्ष नायक ने कहा,  कि इसने सभी काथलिकों को एकता को गहरा करने, भागीदारी बढ़ाने और मिशन के प्रति प्रतिबद्ध होने के लिए जागृत किया है।

प्रतिभागियों ने इस बात पर जोर दिया कि धर्मसभा त्रित्व समन्वय, यूखरीस्तीय सहभागिता और बपतिस्मा संबंधी प्रतिबद्धता पर आधारित होनी चाहिए। सम्मेलन में स्वीकार किया गया कि मसीह के शरीर के रूप में, काथलिकों को सृष्टि की पूरी दुनिया और भली सद्भावना के लोगों के साथ मिलकर चलने की चुनौती दी गई है।

साथ ही, प्रतिभागियों ने इस बात पर अफसोस जताया कि हाशिये पर पड़े लोगों की आवाज अनसुनी कर दी जाती है। बैठक में कहा गया, "अक्सर, उनकी आवाज़ों को कुचल दिया जाता है, जिससे उन्हें काथलिक कलीसिया में कई मोर्चों पर मामूली प्रतिनिधित्व मिलता है।"

इस प्रक्रिया में, दलित ख्रीस्तियों को उनके नेताओं और अन्य लोगों द्वारा सहयोग और देखभाल से वंचित किया जाता है, जो कभी-कभी उन्हें अमानवीय बनाते हैं और उन्हें सम्मान और मरिमा देने से इनकार करते हैं।

सम्मेलन ने कलीसिया में सभी से "जातिवाद की पापपूर्ण संरचना और अस्पृश्यता की बुरी प्रथा" को हटाने में मदद करने के लिए एक खुली और पारदर्शी बातचीत में शामिल होने का आग्रह किया है। सम्मेलन ने एक ज्ञापन तैयार किया जिसमें भारत में दलित ख्रीस्तियों को उनका वंचित स्थान देने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता दोहराई गई।

सम्मेलन ने वाटिकन, सीबीसीआई और भारत में काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन को ज्ञापन सौंपने का निर्णय लिया है।