पोप फ्राँसिस : क्या हम दूर चले गये हैं? हमारे प्रेमी पिता हमारी प्रतिक्षा में हैं

साप्ताहिक आमदर्शन समारोह, जिसे पोप फ्राँसिस के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए स्थगित किया गया है, इस अवसर पर उनकी धर्मशिक्षा को प्रकाशित किया गया है। धर्मशिक्षा में पोप उड़ाव पुत्र के दृष्टांत पर चिंतन करते हुए विश्वासियों को यह भरोसा दिलाते हैं कि चाहे हम कितनी भी दूर क्यों न भटक गए हों, हमारा प्रेमी पिता खुली बाहों से हमारा इंतज़ार कर रहे हैं।

बुधवार को पोप फ्राँसिस ने “जुबली 2025 येसु ख्रीस्त हमारी आशा” पर धर्मशिक्षा माला में आगे बढ़ते हुए येसु के जीवन, और उनके दृष्टांत पर चिंतन किया।

“उड़ाव पुत्र” का दृष्टांत, जिसे येसु ने स्वर्गीय पिता की असीम करुणा और मानव की प्रेम की भूख को समझाने के लिए बतलाया था, 16 अप्रैल की धर्मशिक्षा में पोप के चिंतन का केंद्रबिन्दु रहा।

“इस पर पिता ने उस से कहा, ’बेटा, तुम तो सदा मेरे साथ रहते हो और जो कुछ मेरा है, वह तुम्हारा है। परन्तु आनन्द मनाना और उल्लसित होना उचित ही था; क्योंकि तुम्हारा यह भाई मर गया था और फिर जी गया है, यह खो गया था और मिल गया है’।" (लूक. 15,31-32)

अपने चिंतन की शुरूआत संत पापा ने दृष्टांत के इसी छोटे अंश को लेते हुए की।

पोप ने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो और बहनो, “सुसमाचार के कुछ पात्रों के साथ येसु की मुलाकातों पर चिंतन करने के बाद, मैं इस धर्मशिक्षा में, कुछ दृष्टान्तों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहूँगा। जैसा कि हम जानते हैं, ये कहानियाँ रोजमर्रा की वास्तविक परिस्थितियों से संबंधित हैं। यही कारण है कि वे हमारे जीवन को भी प्रभावित करती हैं। वे हमें प्रेरित करतीं और हमें अपना स्थान खोजने के लिए कहती हैं कि मैं इस कहानी में कहाँ हूँ?

उड़ाव पुत्र का दृष्टांत
आइये, हम सबसे प्रसिद्ध दृष्टान्त से शुरू करें, जिसको हम सभी शायद बचपन से याद करते हैं: पिता और दो पुत्रों का दृष्टान्त (लूका 15:1-3.11-32)। इसमें हम येसु के सुसमाचार का सार, अर्थात् ईश्वर की करूणा को पाते हैं।

सुसमाचार लेखक लूकस कहते हैं कि येसु ने यह दृष्टान्त फरीसियों और शास्त्रियों को सुनाया था, जो शिकायत कर रहे थे कि येसु पापियों के साथ भोजन करते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह दृष्टान्त उन लोगों के लिए है जो खोए हुए हैं, पर नहीं समझते और दूसरों पर दोष लगाते हैं।

पोप ने कहा, “सुसमाचार हमें आशा का संदेश देना चाहता है, क्योंकि यह हमें बताता है कि हम चाहे कहीं भी खो जाएँ, चाहे हम किसी भी तरह से खो जाएँ, ईश्वर हमेशा हमें ढूंढ़ने आते हैं! शायद हम भेड़ों की तरह रास्ता छोड़कर चरने के लिए भटक गए हों, या थकान के कारण पीछे रह गए हों (लूकस 15:4-7)। या शायद हम उस सिक्के की तरह खो गए हों, जो जमीन पर गिर गया हो और अब उसे ढूंढा नहीं जा सकता, या किसी ने उसे कहीं रख दिया हो और अब याद नहीं है कि वह कहां है। या फिर हमने अपने आप को इस पिता के दो बेटों की तरह खो दिया है: छोटा बेटा जो एक ऐसे रिश्ते से थक गया था जो उसके हिसाब से बहुत ज्यादा मांग रहा था; दूसरी ओर बड़ा बेटा भी भटक गया, क्योंकि अगर दिल में घमंड और आक्रोश है तो घर पर रहना मात्र काफी नहीं है।

सच्चा प्रेम कैसा होता है
प्रेम सदैव एक प्रतिबद्धता है, दूसरे से मिलकर रहने के लिए हमें सदैव कुछ न कुछ खोना पड़ता है। लेकिन दृष्टांत में छोटा बेटा केवल अपने बारे सोचता है, जैसा कि बचपन और किशोरावस्था के कुछ चरणों में होता है। हकीकत में, हम अपने आस-पास ऐसे कई वयस्कों को देखते हैं, जो स्वार्थी होने के कारण रिश्तों को आगे नहीं बढ़ा पाते। वे यह सोचकर स्वयं को धोखा देते हैं कि वे अपने हित पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन वास्तव में वे स्वयं को खो देते हैं, क्योंकि जब हम किसी दूसरे के लिए जीते हैं, तभी हम वास्तव में जीते हैं।

पोप ने कहा, “यह छोटा बेटा, हम सब की तरह, स्नेह का भूखा था, वह प्यार पाना चाहता था। लेकिन प्रेम एक अनमोल उपहार है, इसे सावधानी से संभाला जाना चाहिए। जबकि वह इसे बर्बाद कर दिया था, खुद के मूल्य को कम आंक रहा था और खुद का सम्मान नहीं कर रहा था। वह अकाल के समय इस बात को महसूस करता है, जब कोई उसकी परवाह नहीं कर रहा था। ऐसी परिस्थिति में खतरा यह होता है कि हम स्नेह की भीख मांगने लगते हैं और अपने सामने आनेवाले पहले मालिक से ही जुड़ जाते हैं।

यही अनुभव है जो हमारे भीतर इस विकृत विश्वास को जन्म देता कि हम रिश्ते में केवल नौकरों के समान हैं, मानो हमें किसी पाप का प्रायश्चित करना हो या मानो सच्चा प्रेम अस्तित्व में है ही नहीं। वास्तव में, जब छोटा बेटा बहुत बुरे दौर से गुजर रहा था, तो वह अपने पिता के घर लौटकर जमीन पर पड़े स्नेह के कुछ टुकड़े बटोरने के बारे सोचता है।

पिता हमारे लिए द्वार खुला रखते हैं
क्योंकि केवल वे ही हैं जो हमसे सच्चा प्रेम करते हैं, हमें प्रेम की इस झूठी धारणा से मुक्त कर सकते हैं। ईश्‍वर के साथ हमारे सम्बन्ध में हमें यही अनुभव होता है। महान चित्रकार रेम्ब्रांट ने अपनी प्रसिद्ध पेंटिंग में उड़ाऊ पुत्र की वापसी का अद्भुत चित्रण किया है। जिसमें दो विवरण विशेष रूप से प्रभावित करते हैं: युवक का सिर मुंडा हुआ है, जैसे किसी पश्चातापी का होता है, और यह एक बच्चे के सिर जैसा दिखता है, क्योंकि वह दोबारा जन्म ले रहा है। और फिर पिता के हाथ: एक पुरुष और दूसरा महिला के रूप में हैं, जो क्षमा के आलिंगन में शक्ति और कोमलता का प्रदर्शन करते हैं।

पोप ने कहा, “बड़ा बेटा उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जिनके लिए यह दृष्टान्त बतलाया गया है: वह एक ऐसा बेटा है जो हमेशा अपने पिता के साथ घर में रहते हुए भी उनसे दूर था, दिल से दूर था। शायद यह बेटा भी वहाँ से जाना चाहता था, लेकिन डर या कर्तव्य के कारण उस रिश्ते में वहीं रह गया।