पोप : ईश्वर पर विश्वास ठोकर से भरा है
पोप फ्रांसिस ने त्रियेस्ते की प्रेरितिक यात्रा में मिस्सा बलिदान के दौरान विश्वास को एक ठोकर के रुप में प्रस्तुत किया।
पोप फ्रांसिस ने त्रियेस्ते की एकदिवसीय प्रेरितिक यात्रा करते हुए 50वीं इतालवी ख्रीस्तीय सामाजिक सप्ताह के समापन समारोह में भाग लिया।
पोप ने त्रियेस्ते में विश्वासियों के संग मिस्सा बलिदान अर्पित करते हुए अपने प्रवचन में कहा कि टूटे हुए हृदयों में और थकान भरी यात्रा में हमारा साथ देने हेतु ईश्वर ने सदैव अपने लोगों के लिए नबियों को भेजा है। यद्यपि नबी एजेकियेल के ग्रंथ से लिये गये आज के पहले पाठ में हम उन्हें एक विद्रोही प्रजा से भेंट करते हुए सुनते हैं जिनका हृदय “कठोर और ढ़ीठाई” से भरा है, जो ईश्वर का परित्याग करते हैं। संत पापा ने कहा कि येसु नबियों की भांति स्वयं इसका अनुभव करते हैं। वे नाजरेत अपने नगर लौटते हैं, उन लोगों के बीच जहाँ वे पले-बढ़े थे, लेकिन लोग उन्हें नहीं पहचानते और उनका तिरस्कार करते हैं। “वे अपने को बीच आये लेकिन अपनों ने उन्हें नहीं पहचाना।” सुसमाचार हमें बतलाता है कि येसु उनके लिए ठोकर का एक कारण बनते हैं। वे उनके विश्वास में एक तरह से बाधा बनते हैं जो हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने को मदद करता है। आइए हम इस बात चिंतन करें कि वह कोई-सी चीज है जो हमें ईश्वर में विश्वास करने में रोड़ा बनती है।
येसु की मानवता ठोकर का कारण
पोप ने कहा कि येसु के नगर के लोगों की बातों को सुनते हुए हम यही पाते हैं कि वे उनके भौतिक जीवन तक सीमित रहे, उस परिवार तक जहाँ से वे आते हैं, और यह उन्हें इस बात को समझने में बाधक बनता है कि कैसे साधारण बढ़ई जोसेफ का पुत्र ज्ञान में, यहाँ तक कि चमत्कारों को करने के योग्य है। इस भांति येसु की मानवता उनके लिए ठोकर का कारण बनती है। वे लोग ईश्वर की उपस्थिति को येसु में देखने को असमर्थ होते हैं जो योसेफ के पुत्र स्वरुप मानव बन कर दुनिया में आये। कैसे ईश्वर, जो सर्वशक्तिमान हैं मानव के क्षणभंगुर शरीर में अपने को प्रकट कर सकते हैं? एक सर्वशक्तिमान और शक्तिशाली ईश्वर जिन्होंने पृथ्वी की सृष्टि की और जिन्होंने अपने लोगों को गुलामी से बचाया कैसे शरीरधारण कर इतने कमजोर हो सकते हैं, झुककर अपने शिष्यों के पैर धोते हैं?
ईश्वर के कार्य विस्मय भरे
प्रिय भाइयो एवं बहनो, पोप ने कहा कि यह हमारे लिए ठोकर है, एक मानवीय ईश्वर में विश्वास जो मानवता के कारण अपने को झुकाते हैं, जो हमारी चिंता करते हैं, वे हमारे घावों से द्रवित होते, हमारी चिंताओं को अपने ऊपर लेते हैं और अपने को रोटी के रुप में हमारे लिए तोड़ते हैं। एक मजबूत और शक्तिशाली ईश्वर, जो प्रेम के कारण क्रूस पर मरते हैं, जो हमें हमारे स्वार्थ पर विजय होने को कहते और हमारे जीवन को दुनिया की मुक्ति हेतु समर्पित करने का निमंत्रण देते हैं, वे हमारे लिए असुविधाजनक ईश्वर बनते हैं।
विश्वास का ठोकर
हम ईश्वऱ के समाने खड़े होते हुए अपनी चुनौतियों को देखते हैं जिनका सामना हम अपने जीवन में करते हैं, सामाजिक और राजनैतिक मुसीबतें, हमारे लोगों के जीवन और उनके संघर्ष- हम अपने में यह कह सकते हैं कि आज हमें जिस चीज की सबसे अधिक जरुरत है वह विश्वास का ठोकर है। हमें एक बंद धार्मिकता नहीं चाहिए, जो धरती में घटित होने वाली घटनाओं की चिंता किये बिना आकाश की ओर देखती और धर्मविधियों का अनुष्ठान करती है लेकिन गलियों से उठने वाली धूलों को भूल जाती है। इसके बदले हमें विश्वास के ठोकर की जरुरत है, एक विश्वास जो ईश्वर में जड़ित है जो मानव बने, एक मानवीय विश्वास, देहधारण विश्वास, जो इतिहास में प्रवेश करती है जो लोगों के जीवन का स्पर्श करती उनके टूटे हृदयों को चंगाई प्रदान करती है जो आशा का खमीर बनता और नये विश्व के लिए एक बीज बनता है। यह विश्वास हमारे सुस्तीपन से हमारी चेतना को जागृत करती है, जो अपने हाथों को समाज के घावों में रखती है, जो हमें मावनता के भविष्य और इतिहास के बारे में सावल करती है। यह एक विचलित करने वाला विश्वास है जो हमारे सुस्तीपन और कठोर हृदय पर विजय पाने में मदद करती है, जो मानवीय समाज रुपी शरीर में एक कांटा बनती है जिसे हम असंवेदनशील और भौतिकतावाद से भरा पाते हैं। उससे भी बढ़कर यह विश्वास हमारे स्वार्थ के हिसाब-किताब को बिगाड़ती है, जो बुराई का परित्याग करती, अन्याय की ओर इंगित करती, उनकी योजनाओं को धवस्त करती जो शक्ति की छाया में कमजोरों के जीवन से खेलते हैं।
ईश्वर की उपस्थिति देखें
पोप ने, त्रियेस्ते के एक कवि जो शाम के वक्त घर लौटते हुए अपनी धुन में अपने विचारों को व्यक्त करते हैं, कहा कि वह अंधेरी गली के पास होते, एक स्थान जहाँ लोगों और चीजों का अम्बार लगा होता है, मानवता के टुकडे, यद्यपि वहाँ से गुजरते हुए भी वे लिखते हैं, “मैं मानवता को अनंत में पाता हूँ” क्योंकि वेश्या और नाविक, लाड़कू नारियाँ और सैनिक, “सभी अपने में जीवन के प्राणी और दर्द हैं, उनमें, जैसे कि मुझमें ईश्वर इसे उद्वेलित करते हैं।” संत पापा ने कहा कि हम इसे न भूलें कि ईश्वर जीवन के अंधेरे कोनों और हमारे शहरों में छुपे रहते हैं, हम उनकी उपस्थिति को उन चेहरे में पाते हैं जो दुःख से ग्रस्ति हैं और जहाँ पतन विजय के रुप में नजर आती है। ईश्वर की विशालता मानव की दयनीय दशा में छिपी है और ईश्वर मुख्य रुप से अपने को मित्र भाव से परित्यक्त, भूले हुए और छोड़े दिये गये लोगों में व्यक्त करते हैं। और हम जो कई बार अपने में बहुत सारी छोटी बातें को द्वारा अपने को अनावश्यक रुप से अपमानित होता पाते हैं, हमें अपने में यह पूछते हुए कि क्यों हम उन बुराइयों, जीवन के अपमान, परिश्रम और पलायन के दुःखों से ठोकर नहीं खाते हैं? हम दुनिया में हो रहे अन्यायों से क्यों उदासीन रहते हैं? हमारे हृदय कैदियों की स्थिति से क्यों प्रभावित नहीं होते हैं जिनकी रुदन त्रियेस्ते के इस शहर से भी उठती है?