आमदर्शन समारोह : आत्मसंयम आनंद छीनता नहीं, खुशियों से भर देता है
17 अप्रैल को आमदर्शन समारोह के दौरान पोप फ्राँसिस ने चौथा प्रमुख सदगुण आत्मसंयम पर प्रकाश डाला, यह कहते हुए कि खुद पर अधिकार रखने की हमारी क्षमता हमें जीवन में जो कुछ भी है उसका अधिक सार्थक और आनंददायक तरीके से स्वाद लेने में मदद करती है।
बुधवारीय आमदर्शन समारोह में, पोप फ्राँसिस ने, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रागँण में एकत्रित, सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के सामने, चार प्रमुख सदगुणों पर अपनी धर्मशिक्षा माला जारी रखते हुए, आत्मसंयम के सदगुण पर चिंतन किया।
पोप फ्राँसिस ने सभी का अभिवादन करते हुए कहा, “प्यारे भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात!
आज मैं चौथे और अंतिम प्रमुख सदगुण : आत्मसंयम के बारे बात करूँगा। अन्य तीन (सदगुणों) के साथ, यह सदगुण भी एक इतिहास साझा करता है जो बहुत पुराना है और केवल ख्रीस्तियों से संबंधित नहीं है। यूनानियों के लिए सद्गुणों के अभ्यास का उद्देश्य था खुशी। दार्शनिक अरस्तू ने नैतिकता पर अपना सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ अपने बेटे निकोमैचस को संबोधित करते हुए लिखा है, ताकि उसे जीवन जीने की कला सिखाई जा सके। क्या कारण है कि हम सभी खुशी की तलाश में रहते हैं फिर भी बहुत कम लोग इसे हासिल कर पाते हैं? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, अरस्तू सद्गुणों के विषय को संबोधित करते हैं, जिसमें एनक्रेटिया, यानी आत्मसंयम का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इस ग्रीक शब्द का शाब्दिक अर्थ है "स्वयं पर अधिकार"। इस प्रकार आत्मसंयम अपने आप में एक शक्ति है। इसलिए यह सदगुण आत्म-नियंत्रण की क्षमता है, विद्रोही जुनून से अभिभूत न होने की कला है, जिसे मंज़ोनी "मानव हृदय की गड़बड़ी" कहते हैं, उसे व्यवस्थित करने की कला है।
सुखों के आकर्षण को नियंत्रित करता
काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा हमें बताती है कि "आत्मसंयम वह नैतिक सदगुण है जो सुखों के आकर्षण को नियंत्रित करता है और निर्मित वस्तुओं के उपयोग में संतुलन सक्षम बनाता है।"
कलीसिया की धर्मशिक्षा आगे बतलाती है" यह प्रवृत्ति पर इच्छा का प्रभुत्व सुनिश्चित करता है और इच्छाओं को ईमानदारी की सीमा के भीतर रखता है। आत्मसंयमी व्यक्ति अपनी संवेदनशील भूख को अच्छाई की ओर निर्देशित करता है, और स्वस्थ विवेकाधिकार बनाए रखता है, और क्षुद्र इच्छाओं के अनुसार नहीं चलता, बल्कि भूख को नियंत्रित करता है। (संख्या 1809)।
सही माप का सदगुण
इसलिए, आत्मसंयम, जैसा कि इतालवी शब्द कहता है, सही माप का सदगुण है। यह हर स्थिति में समझदारी से व्यवहार करता है, क्योंकि जो लोग हमेशा जोश या अति उत्साह में कार्य करते हैं वे अंततः अविश्वसनीय होते हैं। बिना संयम वाले लोग हमेशा अविश्वसनीय होते हैं। एक ऐसी दुनिया में जहाँ बहुत से लोग उन बातों को कह देने में गर्व महसूस करते, जो वे सोचते हैं, वहीं आत्मसंयमी व्यक्ति सोचकर बोलना पसंद करते हैं। संत पापा ने कहा, “क्या आप अंतर समझते हैं? मन में जो आता है उसे बोल देना ... जी नहीं, जो कहना है उसे सोचकर कहना चाहिए। वह व्यर्थ वादे नहीं करता, बल्कि उतना ही वादा करता है, जितना वह पूरा कर सकता है।
सुखों के साथ भी आत्मसंयमी व्यक्ति विवेकपूर्वक कार्य करता है। आवेगों का मुक्त प्रवाह और सुख-चैन को दी गयी पूरी स्वच्छंदता अंततः हमारे ही विरुद्ध हो जाता है और हमें नीरसता की स्थिति में धकेल देता है। कितने लोग जो हर चीज़ को बड़े चाव से आज़माना चाहते थे, पाया कि हर चीज़ का स्वाद खो गया है! इससे अच्छा है कि सही माप की तलाश की जाए: उदाहरण के लिए, अच्छे दाखरस का स्वाद पाने के लिए, एक ही घूंट में निगलने से बेहतर है, छोटे-छोटे घूंट लिये जाएँ।
अच्छी तरह तौलना और मापना जानता है
संयमी व्यक्ति शब्दों को अच्छी तरह तौलना और मापना जानता है। वह जो बोलता है, उसे सोचकर बोलता है। वह रिश्तों और दोस्ती को बर्बाद करने की अनुमति क्रोध को बिलकुल नहीं देता है, जिसे केवल कठिनाई से ही दोबारा बनाया जा सकता है। विशेष रूप से पारिवारिक जीवन में, जहाँ अवरोध कम हो जाते हैं, हम सभी तनाव, चिड़चिड़ापन और क्रोध को नियंत्रण में न रख पाने का जोखिम उठाते हैं। बोलने का एक समय होता है और चुप रहने का भी समय होता है, लेकिन दोनों के लिए सही माप की आवश्यकता है। और यह कई चीज़ों पर लागू होता है, उदाहरण के लिए दूसरों के साथ रहना और अकेले रहना।
यदि संयमी व्यक्ति अपने चिड़चिड़ेपन को नियंत्रित करना जानता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम उसे हमेशा शांतिपूर्ण और मुस्कुराते चेहरे के साथ देखेंगे। दरअसल, कभी-कभी गुस्सा होना जरूरी है, लेकिन हमेशा सही तरीके से। तिरस्कार का एक शब्द कभी-कभी तीखी और नाराजगी भरी चुप्पी से ज्यादा स्वास्थ्यप्रद होता है। संयमी व्यक्ति जानता है कि दूसरे को सुधारने से अधिक असुविधाजनक कुछ भी नहीं है, लेकिन वह यह भी जानता है कि यह आवश्यक है: अन्यथा वह बुराई को खुली छूट दे देगा। कुछ मामलों में, संयमी व्यक्ति चरम सीमाओं को एक साथ रखने का प्रबंध करता है: वह पूर्ण सिद्धांतों की पुष्टि करता है, गैर-परक्राम्य मूल्यों का दावा करता है, लेकिन यह भी जानता है कि लोगों को कैसे समझना है और उनके लिए सहानुभूति प्रदर्शित करता है। वह सहानुभूति प्रदर्शित करता है।
आत्मसंयमी व्यक्ति संतुलित होता है
इसलिए आत्मसंयमी व्यक्ति संतुलित होता है, यह एक दुर्लभ गुण है। दरअसल, हमारी दुनिया की हर चीज़ हमें अति की ओर धकेलती है। इसके बजाय आत्मसंयम, छोटापन, विवेकशीलता, छिपाव, नम्रता जैसे सुसमाचारी मनोभावों को मिलाता है। संयमी व्यक्ति दूसरों के सम्मान की सराहना करता, लेकिन इसे हर कार्य और हर शब्द के लिए एकमात्र मानदंड नहीं बनाता है। वे संवेदनशील होते, रोना जानते और इसमें उन्हें शर्म नहीं होती, लेकिन वे अपने लिए खेद महसूस नहीं करते हैं। हार के बाद, वह फिर उठ खड़ा होता है; विजयी होने पर, वह अपने पहले के सामा