पोप फ्राँसिस: 'जलवायु लचीलेपन का मार्ग अल्पकालिक लालच से बाधित'
पोप फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार को जलवायु संकट पर वाटिकन शिखर सम्मेलन में प्रतिभागियों को संबोधित किया और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को जलवायु लचीलेपन की ओर बढ़ने के लिए प्रकृति की पुनर्योजी शक्ति का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।
विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी, वाटिकन में तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रही है जिसने "जलवायु संकट से जलवायु लचीलेपन तक" विषय पर विचार विमर्श करने के लिए महापौरों, राज्यपालों और विशेषज्ञों को एक साथ लाया है।
पोप फ्रांसिस ने आयोजन के दूसरे दिन गुरुवार को शिखर सम्मेलन में भाग लेनेवालों से मुलाकात की।
अपने संबोधन में, पोप ने जलवायु परिवर्तन के संबंध में बिगड़ते आंकड़ों पर दुःख जताया और "लोगों एवं प्रकृति की रक्षा के लिए" तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया।
चूंकि विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीधे तौर पर झेल रहे हैं, इसलिए उन्होंने विभिन्न देशों के राजनीतिक नेताओं से प्रश्न किया क्या "हम जीवन की संस्कृति के लिए काम कर रहे हैं या मृत्यु की संस्कृति के लिए?"
पोप ने कहा, "धनी देश, लगभग 1 अरब लोग, आधे से अधिक गर्मी बढ़ानेवाले प्रदूषक पैदा करते हैं।" "इसके विपरीत, 3 अरब गरीब लोग 10% से भी कम योगदान करते हैं, फिर भी उन्हें परिणामी क्षति का 75% भुगतना पड़ता है।"
पोप फ्रांसिस ने याद दिलाया कि पर्यावरण का विनाश "ईश्वर के खिलाफ अपराध" और एक "संरचनात्मक पाप" है जो सभी लोगों को खतरे में डाल रहा है।
उन्होंने कहा, "हम खुद ऐसी प्रणालीगत चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो पृथक होने पर भी आपस में जुड़ी हुई हैं: जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का नुकसान, पर्यावरणीय क्षय, वैश्विक असमानताएं, खाद्य सुरक्षा की कमी और उनसे प्रभावित लोगों की गरिमा के लिए खतरा।"
पोप ने कहा कि इनमें से प्रत्येक मुद्दे को दुनिया के गरीबों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए तत्काल और सामूहिक रूप से सामना किया जाना चाहिए, जो असंगत बोझ उठाते हैं।
उन्होंने कहा, फिर भी, महिलाएँ न केवल जलवायु परिवर्तन की शिकार हैं, बल्कि "लचीलापन और अनुकूलन के लिए एक शक्तिशाली शक्ति भी हैं।"
पोप ने वैश्विक और राष्ट्रीय राजनीति के उन पेंचों की निंदा की जो जलवायु परिवर्तन के संपर्क में आनेवाले सबसे कमजोर लोगों की रक्षा के लिए कार्यों में बाधा डाल रहे हैं।
उन्होंने कहा, "एक व्यवस्थित प्रगति को प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों द्वारा अल्पकालिक लाभ की लालची खोज और दुष्प्रचार के कारण रोका जा रहा है, जो भ्रम पैदा करता है और पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए सामूहिक प्रयासों में बाधा उत्पन्न करता है।"
उन्होंने कहा कि समुदाय विघटित हो रहे हैं और परिवारों को जबरन तितर-बितर किया जा रहा है, और वायुमंडलीय प्रदूषण हर साल लाखों लोगों की जान ले रहे है।
लगभग 3.5 बिलियन लोग जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हैं और इसलिए उनके पलायन करने की अधिक संभावना है, जिनका जीवन इस "हताश यात्रा" के दौरान खतरे में पड़ जाता है।
इस संकट के जवाब में, पोप फ्रांसिस ने शिखर सम्मेलन के सदस्यों द्वारा शुरू की गई हार्दिक अपील में अपनी आवाज जोड़ी।
उनके साथ, उन्होंने दिशा में राजनीतिक बदलाव लाने के लिए "सार्वभौमिक दृष्टिकोण और दृढ़ गतिविधि" का आह्वान किया।
पोप ने अगले 25 वर्षों में वार्मिंग की दर को आधा करके "ग्लोबल वार्मिंग वक्र को उलटने" की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला।
अंत में, उन्होंने नीति निर्माताओं से वातावरण से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के लिए प्रकृति की पुनर्योजी शक्ति का उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने विशेष रूप से अमाजोन और कांगो, पीट बोग्स, मैंग्रोव, महासागरों, कोरल चट्टानों, कृषि भूमि और हिमनदी आइसकैप्स का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा, "यह समग्र दृष्टिकोण जलवायु परिवर्तन से मुकाबला कर सकता है, साथ ही जीवन को बनाए रखने वाले पारिस्थितिक तंत्र को विकसित करके जैव विविधता और असमानता के नुकसान के दोहरे संकट का भी सामना कर सकता है।"
अंत में, पोप फ्रांसिस ने जलवायु आपात स्थितियों से प्रभावित वैश्विक दक्षिण और द्वीप राज्यों की जरूरतों का जवाब देने के लिए तालमेल और वैश्विक एकजुटता के साथ-साथ एक "नई वित्तीय वास्तुकला" बनाने के प्रयासों को आमंत्रित किया।