पोप ने दुःखी माता-पिताओं को प्रार्थना में सांत्वना पाने का प्रोत्साहन दिया
पोप फ्राँसिस ने दुःखी माता-पिताओं के एक दल को अपना सामीप्य और सांत्वना व्यक्त किया जो एक बच्चे के खोने का शोक मना रहे हैं और उन्हें सुझाव दिया कि प्रार्थना ही उन्हें सांत्वना दे सकती है।
पोप फ्राँसिस ने शनिवार 2 फरवरी को वाटिकन के क्लेमेंटीन सभागार में विचेंत्सा के तालिथा कुंम संघ के सदस्यों से मुलाकात की जो एक बच्चे को खोने पर शोक मना रहे हैं।
उन्हें सहानुभूति व्यक्त करते हुए पोप ने कहा, “एक बच्चे को खोना एक ऐसा अनुभव है जो सैद्धांतिक विवरण को स्वीकार नहीं करता और धार्मिक या भावुक शब्दों, निष्फल प्रोत्साहन या परिस्थितिजन्य वाक्यांशों की तुच्छता को अस्वीकार करता है, जो सांत्वना देने के बजाय, उन लोगों को और अधिक पीड़ा पहुंचाता, जो हर दिन एक कठिन आंतरिक लड़ाई का सामना करते हैं।”
पीड़ा को उचित ठहराने वाले जोब के मित्रों के विपरीत संत पापा ने कहा कि दुःखों के सामने हम “येसु के मनोभाव और उनकी करूणा का अनुसरण करने के लिए बुलाये जाते हैं। जिन्होंने दुनिया के दुःख के अनुभव को अपने ऊपर लिया।”
ऐसी परिस्थितियों में जब “अत्यधिक पीड़ा” हो और जिसका कारण स्पष्ट न हो, संत पापा ने प्रार्थना द्वारा ईश्वर को पुकारने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “केवल उस प्रार्थना के धागे से जुड़े रहने की जरूरत है जो दिन-रात ईश्वर को पुकारती है।” उनसे सवाल करती है, “क्यों प्रभु? मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? आपने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? आप कहाँ हैं, जबकि मानव पीड़ित है और मेरा दिल एक अपूरणीय क्षति पर शोक मना रहा है?”
ये सवाल अंदर ही अंदर जलते हैं, दिल को तकलीफ देते हैं लेकिन साथ ही जब हम बाहर निकलते हैं तब ये ही दुखद सवाल प्रकाश की खुली किरण दिखाते हैं जो आगे बढ़ने की शक्ति देती है।
संत पापा ने दुःख को चुपचाप सहने के बजाय, उसे प्रकट करने का प्रोत्साहन दिया, क्योंकि दर्द को शांत करने, पीड़ा पर चुप्पी साधने, आघातों से निपटने के बिना उन्हें दूर करना बुरा है, जैसा कि हमारी दुनिया अक्सर हड़बड़ी और स्तब्धता में हमें ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है। हालाँकि, जो प्रश्न ईश्वर से पुकार की तरह उठाया जाता है, वह स्वस्थ है। एक प्रार्थना है जो हमें “सांत्वना और आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए खोलता है जिसे प्रभु देने में कभी असफल नहीं होते।”
तालिथा कुंम अर्थात् ओ लड़की, मैं तुम से कहता हूँ उठो, येसु के शब्द हैं जिसको उन्होंने सभागृह के प्रमुख के आग्रह पर उसकी मृत बेटी को जीवन दान देते हुए कहा था। संत पापा ने कहा, “वह व्यक्ति निराशा में फंसने की जोखिम के साथ अपनी पीड़ा में बंद नहीं रहा”, लेकिन येसु के पास दौड़ा और उनसे अपने घर आने का आग्रह किया। “दर्द उसे (ईश्वर) चुनौती देता है, क्योंकि हमारी पीड़ा भी ईश्वर के हृदय तक पहुँचती है।”
उन्होंने कहा, “यह हमें कुछ महत्वपूर्ण बात बतलाता है: पीड़ा में, ईश्वर की पहली प्रतिक्रिया कोई भाषण या सिद्धांत नहीं होता, बल्कि उनका हमारे साथ चलना, हमारे साथ रहना होता है। उन्हें हमारी पीड़ा का एहसास होता है क्योंकि उन्होंने हमारे रास्ते को पार किया है इसलिए वे हमें अकेला नहीं छोड़ते बल्कि उस भार से हमें मुक्त करते हैं, जो हमें दबाता है। वे उसे हमारे लिए और हमारे साथ उठाते हैं। संत पापा ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, “प्रभु हमारे हृदय रूपी घर, हमारे परिवारों में आना चाहते हैं जो मौत का सदमा झेल रहा है। जिस प्रकार उन्होंने जैरूस की बेटी को उठाया वे हमें भी अपना हाथ पकड़कर उठाना चाहते हैं।”
उन्होंने उन्हें धन्यवाद दिया क्योंकि वे अपने हृदय और अपनी कहानियों में सुसमाचार को जगह देते हैं। उन्होंने कहा, “येसु आपके साथ चलते हैं, आपके घरों में प्रवेश करते और आपके दुखों एवं पीड़ाओं को महसूस करते हैं, वे आपको अपने हाथों से उठाते हैं। वे आपके आँसू पोंछना चाहते हैं और आश्वासन देते हैं कि मौत अंतिम शब्द नहीं है। प्रभु हमें बिना सांत्वना के नहीं छोड़ देते।”
संत पापा ने उन्हें पुनः जोर देते हुए कहा कि वे आशा न खोयें बल्कि अपने आँसू और प्रश्न प्रभु की ओर उठाते रहें। उन्होंने कहा, “तब आप क्रूस को पुनरुत्थान की आँखों से देखेंगे, जैसा कि मरियम और प्रेरितों ने देखा था। वह आशा, जो पास्का की सुबह प्रस्फूटित हुई, उसे प्रभु अब आपके हृदय में बोना चाहते हैं।”
पोप ने कहा, “आप इसका स्वागत करें, इसे विकसित करें, आंसुओं के बीच इसे संजोएँ ताकि आप न केवल ईश्वर का आलिंगन महसूस करेंगे, बल्कि मेरा स्नेह और कलीसिया का सामीप्य भी महसूस करेंगे, जो आपसे प्यार करते हैं और आपका साथ देना चाहते हैं।”
अंत में, उन्होंने उन्हें अपनी प्रार्थना का आश्वासन दिया और उनसे भी अपने लिए प्रार्थना का आग्रह किया।