फ्रांस के धर्माध्यक्षों को पोप का संदेश

पोप ने फ्रांस के धर्माध्यक्षों को एक संदेश भेजा है जो फ्रांस के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन द्वारा आयोजित एक महासभा में भाग ले रहे हैं।

वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने पोप फ्राँसिस की ओर से फ्रांस के धर्माध्यक्षों को एक संदेश भेजा है जो अपनी एक महासभा में भाग ले रहे हैं।

कार्डिनल ने तार संदेश में लिखा, “पोप फ्राँसिस ने मुझे आपको प्रोत्साहन, विश्वास और निकटता का यह भ्रातृत्वपूर्ण संदेश भेजने के लिए कहा है।”

उन्होंने बतलाया कि पोप ने उनके कार्य की व्यापक रूपरेखा पर ध्यान देते हुए फ्रांस की कलीसिया और अफ्रीका की कलीसिया के बीच संबंधों पर उनके ध्यान पर गौर किया है।

कार्डिनल ने लिखा, “यह चुनाव विवेकपूर्ण है क्योंकि आपको एक दूसरे की बहुत जरूरत है! जबकि लालच, स्वार्थ, उदासीनता, शोषण की भावना जो दुर्भाग्य से राजनीतिक और आर्थिक प्रथाओं द्वारा थोपी जाती है, राष्ट्रों और लोगों के बीच संबंधों को बिगाड़ दिया है, इसके विपरीत, ख्रीस्तीय समुदायों को अपने संबंधों को मजबूत करना चाहिए: वे मसीह में एक आत्मा हैं। आपकी स्थानीय कलीसियाओं के बीच उदारता और पारस्परिक सहयोग न केवल समुदायों के मिशनरी नवीनीकरण को बढ़ावा देगा, बल्कि दिए गए साक्ष्य के माध्यम से, एक अधिक न्यायपूर्ण और भ्रातृत्वपूर्ण विश्व के निर्माण में भी भाग लेगा।

कार्डिनल परोलिन ने बतलाया कि पोप फ्राँसिस इस बात से प्रसन्न हैं कि उनकी अधिकांश विषयवस्तु सुसमाचार प्रचार की समस्याओं से संबंधित हैं, उदाहरण के लिए, क्षेत्रों में पुरोहितों की उपस्थिति, सेमिनारी, काथलिक शिक्षा, धर्मप्रांतों का संगठन आदि।

पोप का मानना है कि वे अतीत के अनुभवों से मजबूत हो गये हैं, और चुनौतियों का सामना करने के लिए पवित्र आत्मा के संकेतों को बिना किसी भय के ग्रहण करने के लिए तैयार हैं।

पोप उन्हें उस अडिग आशा से प्रेरित होकर जीने के लिए आमंत्रित करते हैं जो सम्मेलन में निहित है। आशा न केवल आगामी जयंती वर्ष की विषयवस्तु है, जिसे हम सभी जल्द ही अनुभव करनेवाले हैं, बल्कि इससे भी अधिक फ्रांस की कलीसिया को एक मजबूत संकेत को पहचानने के लिए आमंत्रित किया गया है जिसे प्रभु ने पेरिस में नोट्रे-डेम महागिरजाघर को पुनः खोलने के रूप में प्रकट किया है।

पोप ने कहा, “फ्रांस की कलीसिया, जो इस सुन्दर पुनर्निर्मित भवन की छवि में निहित है, अपने विश्वास में सुदृढ़, अपने इतिहास पर गर्व महसूस करती। अपने देश के निर्माण में अपने अपूरणीय योगदान के साथ, सबसे बढ़कर अपने पड़ोसी और येसु के हृदय के प्रति प्रेम से परिपूर्ण, सदैव आनन्द के साथ मुक्ति के सुसमाचार की घोषणा करे...।”

पोप ने अपने भाषण का समापन इस बात को याद दिलाते हुए किया कि उन्हें ख्रीस्त के हृदय के प्रेम को पुनः खोजने की आवश्यकता है, जो भविष्य की एकमात्र कुंजी है। उन्होंने जोर देकर कहा, "एक नदी जो कभी खत्म नहीं होती, कभी नहीं सूखती, जो प्यार की चाह रखनेवालों के लिए हमेशा खुद को नए सिरे से पेश करती है, प्रेम जो मसीह के घावों से प्रवाहित होती रहती है। केवल वही प्रेम एक नई मानवता को संभव बना सकता है।"