पोप : हम ईश्वर के साधन हैं
पोप फ्रांसिस ने संत फेलिक्स ऑफ कांतालीचे और करूणामय मरियम की सुपुत्रियाँ धर्मसमाज के धर्मबहनों से भेंट की।
पोप ने दो धर्मसमाजों की आमसभा में सहभागी हो रही धर्मबहनों का स्वागत करते हुए उन्हें अपना संदेश दिया।
उन्होंने फेलिक्स ऑफ कांलालीचे धर्मसमाज की स्थापना और स्थापिका के आदर्शों की ओर चिंतन करने का आहृवान किया। रोफिया कार्मेला ट्रजकोव्स्का जो आगे चल कर धर्मबहन आंजेला मरिया के नाम से प्रसिद्ध हुई पोलैंड में युद्ध की स्थिति में बच्चों, असक्षम व्यक्ति और जोखिम में पड़े युवाओं की सेवा हेतु संत फेलिक्स ऑफ कांतालीच धर्म बहनों के धर्म समाज की स्थापना की।
पोप ने धर्मसमाज के कार्यों और चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि युद्ध के समय धर्मसमाज ने घायलों, परित्यक्तों की सेवा का निर्णय लिया। इस प्रेरितिक कार्य के लिए धर्मसमाज पर देशद्रोही का दोषारोपण लगाया गया जिसके कारण सामाजिक अधिकारियों ने धर्मसमाज का दमन किया। लेकिन ईश्वर दिव्य कृपा में धर्मसंघ के साहसिक त्याग ने पुनः धर्मसमाज के कार्यों को पुनर्जीवित किया और इस भांति वे पोलैंड में प्रवासियों की सहायता करने लगीं और विश्व के विभिन्न देशों में फैली गई।
पोप ने धर्मसमाज के धर्मबहनों को प्रोत्साहित करते हुए कहा,“यह आप के लिए एक महत्वपूर्ण निशानी है जो आप को निर्भय होकर करूणा के कार्य के लिए आहृवान करती है।” संत पेत्रुस के अधिकारी से भेंट करना आप के प्रेरित करे जिससे आप कलीसया और ईश प्रजा की सुनिश्चितता और निष्ठामय सेवा कर सकें। उन्होंने कहा, “सेवा आप का एक मूलभूत आदर्श है”, अतः धर्मसभा में आप इस बात को ध्यान में रखें कि संरचनाएँ सार नहीं बल्कि साधन मात्र हैं। हमारे लिए महत्वपूर्ण ईश्वर और पड़ोसी के प्रति हमारा प्रेम है, आप इसे उदारता और अपनी पूर्ण स्वतंत्रता में पूरा करें, जैसे कि संत पौलुस हमें इसकी याद दिलाते हैं,“ईश्वर का प्रेम हमें उत्प्रेरित करता है।”
हमारा “हाँ”
वहीं इटली, सावोना की बेनेदेत्ता रोस्सेल्लो, जो बाद में धर्मबहन मरियम जोसेप्पा के नाम से प्रसिद्ध हुई, द्वारा स्थापित करूणामय मरियम की पुत्रियों के धर्मसमाज के सदस्यों का आहृवान करते हुए संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि उन्होंने भी गरीबों, बच्चों और युवा नारियों की सेवा की। उनका आदर्श “ईश्वर के लिए हृदय, कार्य हेतु हाथ” था, अपनी गरीबी में भी उन्होंने ईश्वर की सेवा का मार्ग चुना। उनके पास धन स्वरूप, “एक क्रूस, मरियम की एक छोटी मूर्ति और पांच लीरे” पूंजी स्वरुप थे, जिनके द्वारा वे सदैव सेवा के कार्यों हेतु तैयार रहीं।
पोप ने धर्मसमाज के कार्य हेतु आपार कृतज्ञता के भाव व्यक्त किये क्योंकि उन्होंने स्वयं बोयन आयर्स के उनके स्कूल में ख्रीस्तीय दीक्षांत ग्रहण किया था। उन्होंने धर्मबहन दोलोरेस की याद की जिनसे उन्होंने बहुत सारी धर्म की बातें सीखी। संत पापा ने कहा, “हम कैसे ईश्वर के साधन बनते हैं, हममें से कोई यह नहीं जानता कि हमारे छोटेपन और “हाँ” से वे किस तरह अपने कार्यों को पूरा करते हैं।”
अपने संदेश के अंत में संत पापा ने दोनों धर्मसमाजों की धर्मबहनों से कहा कि आप अपने व्रतों के माध्यम ईश्वर की इच्छा और पवित्र आत्मा के प्रति नम्र बने रहें। “आप ईश्वर को समर्पित हों, अपने जीवन की हर चीज उन्हें आप सदैव अपनी उदारता में दें।”