हम ईश्वर के संग और ईश्वर हमारे संग

दोमेनिकन पुरोहित तिमथी पीटर योसेफ ने सिनोड की आध्यात्मिक साधना में सहभागी हो रहे प्रतिभागियों को दूसरे प्रवचन में ईश्वर के संग मानवीय संबंध पर प्रकाश डाला, जो कलीसिया में व्यक्त होती है।

हम इस धर्मसभा में परस्पर विरोधी आशाओं के साथ आते हैं। लेकिन यह कोई बड़ी बाधा नहीं होनी चाहिए। हम यूखारिस्त की आशा में एकजुट हैं, एक ऐसी आशा जो उन सभी चीजों को गले लगाती है और उनसे परे जाती है जिनकी हम इच्छा करते हैं।

लेकिन तनाव का एक दूसरा स्रोत है। कलीसिया को अपने निवास के रुप में देखने की हमारी समझ कभी-कभी झड़प का कारण बनती है। हर जीवित प्राणी को अपने विकास के लिए एक निवास की जरुरत है। मछलियों को पानी और पक्षियों को घोंसले की जरुरत है। घर के बिना, हम जीवित नहीं रह सकते हैं। विभिन्न संस्कृतियों में घर के अलग-अगल विचार हैं। इंस्ट्रुमेंटुम लाबोरिस हमें बतलाता है कि “एशिया हमें एक व्यक्ति का स्वरुप प्रस्तुत करता है जो अपने प्रवेश द्वार में जूतों को नम्रता की निशानी में उतार लेता है जिसके द्वारा हम अपने ईश्वर औऱ पड़ोसियों के भेंट करते हैं। ओशीनिया हमें नाव की निशानी प्रदान करती और अफ्रीका हमारे लिए कलीसिया को ईश्वर के परिवार स्वरुप प्रस्तुत करती है, जो हमारे लिए चीजों को प्रदान करने हेतु सक्षम होती और अपने सभी सदस्यों को उनकी विविधता में स्वागत करती है। लेकिन ये सारी निशानियाँ हमें यह दिखलाती हैं कि हमें एक स्थान की जरुर है जहाँ हम स्वीकार किये जाते और हमें चुनौती दिया जाता है। घर में हमें बढ़ावा मिलता और हम बेहतर करने को निमंत्रित किये जाते हैं। घर वह है जहाँ हम जाने जाते हैं, प्रेम और सुरक्षित होने का अनुभव करते हैं लेकिन हमें विश्वास में आगे बढ़ने की चुनौती मिलती है।

हम अपने कलीसिया रुप घर को नवीन करने की जरुरत है यदि हम विश्व को यह बतलाने कि चाह रखते है कि वह दुःख और एक तरह से आश्रयहीन संकट से गुजर रही है। हम अपने पृथ्वी रुपी ग्रह का दमन कर रहे हैं। हम यहाँ 350 मिलयन से अधिक प्रवासियों को पाते जो युद्ध से भाग रहे औऱ हिंसा के कारण पलायन कर रहे हैं। एक निवास की खोज में हजारों की संख्या में लोग समुद्रों में मर रहे हैं। हममें से कोई भी पूरी तरह चैन से नहीं रहा सकता यदि उन्हें आश्रय नहीं मिलता हो। यहाँ तक की समृद्ध देशों में भी, लाखों की संख्या में लोग गलियों में सोते हैं। युवाजन बहुधा अपने लिए एक निवास प्राप्त नहीं कर सकते हैं। हर जगह हम एक भयानक आध्यात्मिक आश्रयहीनता को पाते हैं। घोर व्यक्तिवाद, परिवारों का टूटना, यहाँ तक की गहरी असामानताएं जिसका अर्थ यह है कि सभी अकेलेपन की सुनामी से बुरी तरह प्रभावित हैं। आत्म हत्याओं में वृद्धि आयी है क्योंकि एक भौतिक और आध्यात्मिक घर के बिना कोई भी जीवित नहीं रह सकता है। प्रेम करने का तत्पर्य किसी का घर में आने से है। 

अतः यह रुपांतर का दृश्य हमें अपने घरों के संबंध में किन चीजों के बारे में कहता है, दोनों हमारी कलीसिया और हमें मिली दुनिया के बारे मेंॽ येसु अपने सबसे करीब मित्रों के दल को अपने साथ एक निर्जन स्थान में आने को कहते हैं जिससे वे उनके संग एक अंतरंग समय बीता सकें। वे उनके संग गेतसेमानी की बारी में भी होंगे। अपने उस करीबी दल में येसु अपने को परिवार सा पाते हैं। पर्वत की ऊचाई में वे उन्हें अपनी महिमा को प्रकट करते हैं। पेत्रुस वहाँ बने रहने की चाह रखता है,“गुरूवर, हमारे लिए यहाँ होना कितना अच्छा है, हम तीन तम्बू खड़ा करें एक आपके लिए, एक मूसा के लिए और एक एलियस के लिए”। वह उस क्षण में लम्बें समय तक बने रहने की चाह रखता है।

लेकिन वे पिता की आवाज को सुनते हैं, “उसकी सुनो”। उन्हें पर्वत से नीचे आने और येरुसालेम की ओर जाने की जरुरत है, वे नहीं जानते की वहाँ उनके साथ क्या होने वाला है। वे अपने में विस्थापित होंगे और उन्हें पृथ्वी के सीमांतों तक भेजा जायेगा जिससे वे असल निवास, राज्य का साक्ष्य दे सकें।  अतः हम यहाँ घर के दो अर्थों को पाते हैं-येसु के संग पर्वत पर हमारा आंतरिक संबंध और अंतिम निवास के लिए हमारा बुलावा, राज्य जिसके हम सभी अंग होंगे।

कलीसिया के प्रति वहीं एक अलग समझ कलीसिया रुपी हमारे घर को आज तोड़ कर रख देती है।  कुछेक के लिए यह पारंपरिक प्राचीन रीतियाँ और धार्मिक रिवाजें हैं, इसकी संरचनाएं और भाषा जिसके अनुरूप हम बढ़े हैं और इसे प्रेम करते हैं। यह हमें एक स्पष्ट ख्रीस्तीय पहचान प्रदान करती है। वहीं दूसरों के लिए, वर्तमान कलीसिया एक सुरक्षित निवास नहीं जान पड़ती है। इसे खास रुप में अनुभव किया गया है जहाँ लोग नर-नारियाँ, तलाकशुदा औऱ पुर्न-विवाहित अपने को परित्यक्त पाते हैं। कुछ लोगों के लिए यह अधिक पश्चिमी, बहुत अधिक यूरोप-क्रेन्दित जान पड़ती है। आईएल समलैंगिक लोगों और बहुविवाहितों के बारे में कहता है। वे एक नवीन कलीसिया की चाह रखते हैं जिससे वे अपने को पूरी तरह सम्मिलित, स्वीकृत, सुदृढ़ और सुरक्षित अनुभव करें।

कुछ लोगों के लिए वैश्विक रुप में स्वागत किये जाने का अर्थ, हरएक को बिना किसी भेदभाव के स्वीकार करना है, यह कलीसिया की पहचान को विकृत करने के समान है। जैसे की हम 19वीं सदी के एक अंग्रेजी गीत में सुनते हैं,“यदि हर कोई, कोई है तब कोई भी कुछ नहीं है”। वे विश्वास करते हैं कि पहचान हमसे सीमाओं की मांग करती है। वहीं दूसरों के लिए, कलीसिया की पहचान का क्रेन्द-विंदु खुलापन है। संत पापा फ्रांसिस करते हैं, “कलीसिया को पिता का घर कहा जाता है, जिसके दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं...जहाँ सभों के लिए एक स्थान है, उनकी सभी समस्याओं के साथ और उन लोगों की ओर जाने के लिए जो अपने विश्वास के मार्ग को फिर से अपनाने की आवश्यकता महसूस करते हैं।”