यूरोपीय संघ के धर्माध्यक्ष: गर्भपात कभी भी मौलिक अधिकार नहीं हो
यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों के चार्टर में गर्भपात के अधिकार को शामिल किया जाए या नहीं, इस पर ब्रसेल्स में 11 अप्रैल को होनेवाले आगामी मतदान से पहले, यूरोपीय संघ के धर्माध्यक्षों (COMECE) ने अपना कड़ा विरोध दोहराया, और विचारधाराओं को थोपने की निंदा की।
यूरोपीय धर्माध्यक्षों ने पुनः पुष्टि की है कि एक इंसान, किसी भी स्थिति में और विकास के हर चरण में, हमेशा पवित्र और अनुल्लंघनीय होता है, और एक बार जब यह विश्वास गायब हो जाता है, तब मानवाधिकारों की रक्षा के लिए ठोस और स्थायी नींव भी गायब हो जाते हैं....
यूरोपीय संघ के धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के धर्माध्यक्षों ने यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों के चार्टर में गर्भपात के अधिकार को शामिल करने पर गुरुवार को ब्रसेल्स में होनेवाले पूर्ण सत्र में वोट से पहले इस पर जोर दिया है।
यह विश्वास के सिद्धांत के लिए गठित विभाग के दस्तावेज़, दिग्नितास इनफिनिता के प्रकाशन के एक दिन बाद आया है, जिसमें गर्भपात को मानवीय गरिमा के उल्लंघन के बीच एक "गंभीर और निंदनीय" अभ्यास के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
यह वास्तव में महिलाओं और उनके अधिकारों को बढ़ावा देने के खिलाफ है
धर्माध्यक्ष इस बात पर जोर देते हैं कि गर्भपात "कभी भी मौलिक अधिकार नहीं हो सकता" और यह महिलाओं और उनके अधिकारों को बढ़ावा देने के खिलाफ है।
दस्तावेज़ का शीर्षक है "महिलाओं को बढ़ावा देने और जीवन के अधिकार को हाँ, गर्भपात और विचार थोपने को नहीं।"
धर्माध्यक्षों ने एक ऐसे यूरोप के लिए काम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की, जहां महिलाएँ अपने मातृत्व को स्वतंत्र रूप से, और उनके एवं समाज के लिए एक उपहार के रूप में जी सकें, और जहां "माँ बनना" किसी भी तरह से "व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक जीवन के लिए सीमा न हो।"
उन्होंने चेतावनी दी कि "गर्भपात को बढ़ावा देना और सुविधा देना, महिलाओं और उनके अधिकारों के वास्तविक बढ़ावे के विपरीत दिशा में जाता है," जैसा कि वे दोहराते हैं गर्भपात "कभी भी मौलिक अधिकार नहीं हो सकता।"
सभी मानवाधिकारों के लिए मौलिक
धर्माध्यक्षों ने कहा कि जीवन का अधिकार, "दूसरे सभी मानवाधिकारों का मूल स्तंभ है, विशेष रूप से सबसे कमजोर, नाजुक और रक्षाहीन लोगों के जीवन के लिए, जैसे कि मां के गर्भ में अजन्मा बच्चा, प्रवासी, बूढ़े, विकलांग और बीमार व्यक्ति।"
इस पर कलीसिया के स्पष्ट रुख को याद करते हुए, वे इस बात पर जोर देते हैं कि "पूरी ताकत और स्पष्टता के साथ, यहां तक कि हमारे समय में भी," यह कहा जाना चाहिए कि अजन्मे जीवन की रक्षा करना हर व्यक्ति के मानव अधिकार की रक्षा से निकटता से जुड़ा हुआ है।
उन्होंने सुझाव दिया कि यूरोपीय संघ को सदस्य देशों की विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं एवं उनकी राष्ट्रीय क्षमताओं का सम्मान करना चाहिए और "अपनी सीमाओं के अंदर और बाहर, मानव व्यक्ति, कामुकता एवं लिंग, विवाह तथा परिवार पर वैचारिक स्थिति को वह दूसरों पर नहीं थोप सकता।"
चार्टर में सभी के द्वारा मान्यता प्राप्त न होनेवाले अधिकार शामिल नहीं हो सकते
उन्होंने जोर देकर कहा, "यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों के चार्टर में ऐसे अधिकारों को शामिल नहीं किया जा सकता है जो सभी के द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं हैं और विभाजनकारी हैं," क्योंकि उन्होंने देखा कि यूरोपीय या अंतर्राष्ट्रीय कानून में गर्भपात का कोई मान्यता प्राप्त अधिकार नहीं है, और, "जिस तरह से यह मुद्दा है सदस्य राज्यों के संविधानों और कानूनों में काफी भिन्नता है।"
यूरोपीय संघ के धर्माध्यक्षों ने कहा कि प्रस्तावना में कहा गया है, चार्टर को 'यूरोप के लोगों की संस्कृतियों और परंपराओं की विविधता' के साथ-साथ 'सदस्य राज्यों के लिए सामान्य संवैधानिक परंपराओं और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों' का भी सम्मान करना चाहिए।
फ्राँस के शामिल होने के बाद
4 मार्च को फ्रांसीसी संविधान में गर्भपात के अधिकार को शामिल किए जाने के बाद, यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों में गर्भपात को शामिल करने पर बहस वास्तव में यूरोपीय स्तर पर फिर से शुरू हो गई है।
भले ही प्रस्ताव 7 जुलाई 2022 को पहले ही पेश किया जा चुका था, और कुछ सदस्य राज्यों के विरोध का सामना करना पड़ा था, अब यूरोपीय संसद के सदस्यों ने प्रस्ताव को फिर से जारी करने का फैसला किया है, जिस पर परसों फिर से मतदान किया जाएगा।