कलीसिया और लोकतंत्र
पोप फ्राँसिस के पुर्तगाल की यात्रा से लौटे एक साल से भी कम समय में, वाटिकन के लिए पुर्तगाल के राजदूतावास में एक विशेष सम्मेलन का आयोजन, पचास साल पहले पुर्तगाल में लोकतंत्र की स्थापना की याद दिलाता है।
देश में लोकतंत्र की स्थापना की स्वर्ण जयन्ती पर वाटिकन के लिए पुर्तगाली राजदूतावास में उच्च स्तरीय सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसका केंद्रबिन्दु था कलीसिया और लोकतंत्र एवं नागरिक, विशेष रूप से काथलिक, किस तरह आमहित के लिए एक साथ आगे बढ़ सकते हैं।
परमधर्मपीठ (वाटिकन) के लिए पुर्तगाली राजदूत, डोमिंगोस फ़ेज़स वाइटल ने लोकतंत्र के उत्सव में वार्ता के साथ विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया।
पुर्तगाली राजनयिक ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे राष्ट्र ने शासन के अधीन होने से लोकतंत्र के लिए एक मॉडल बनने हेतु प्रभावी ढंग से परिवर्तन किया, और कैसे इस क्रांति ने इस मुलाकात को 'कलीसिया, लोकतंत्र और पुर्तगाल का मामला' विषय पर विचार करने के लिए प्रेरित किया।
पुर्तगाली राजनीतिक विशेषज्ञ और प्रोफेसर मानुएल ब्रागा दा क्रूज़, जिन्होंने 2002 से 2012 तक पुर्तगाल के प्रतिष्ठित काथलिक विश्वविद्यालय के डीन के रूप में कार्य किया, वाटिकन मीडिया के संपादकीय निदेशक अंद्रेया तोरनियेली के साथ अपने विचार प्रस्तुत किए।
अपनी टिप्पणी में प्रोफेसर मानुएल ब्रागा दा क्रूज़ ने लोकतंत्र पर कलीसिया के चिंतन को याद किया। उन्होंने पोप जॉन पौल द्वितीय के शब्दों पर जोर दिया (1991 में पोप जॉन पौल द्वितीय द्वारा प्रकाशित प्रेरितिक विश्व पत्र चेंतेसिमुस अन्नुस, पोप लेओ 13वें के प्रेरितिक विश्व पत्र रेरूम नोवारूम की 100वीं वर्षगाँठ को रेखांकित करता है) जिसमें लोकतंत्र के प्रति कलीसिया के "पक्ष" और अधिकारों, विशेष रूप से मानवीय गरिमा को बढ़ावा देनेवाले अधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता के बारे में बात की गई है।
लोकतंत्र पर काथलिक कलीसिया की समझ पर प्रकाश डालते हुए पुर्तगाल के काथलिक विश्वविद्यालय के पूर्व रेक्टर ने पोप लियो 13वें, पोप जॉन पॉल द्वितीय और पोप पीयुस 12वें के योगदान से प्रेरणा ली, साथ ही गौर किया कि वाटिकन द्वितीय महासभा ने भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ाया दिया है।
प्रोफेसर ने दो शताब्दियों के दौरान लोकतंत्र की ओर पुर्तगाल की चुनौतीपूर्ण यात्रा का वर्णन किया, और व्यापक रूप से कलीसिया और बड़े पैमाने पर लोकतंत्र के साथ इसके तालमेल पर ध्यान केंद्रित किया।
वाटिकन के संपादकीय निदेशक, अंद्रेया तोरनियेली ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे अतीत के ज्ञान को वर्तमान में लागू किया जा सकता है, विशेष रूप से, जब "लोकतंत्र", विश्व स्तर पर इतनी प्रगति के बावजूद, "पीड़ाग्रस्त प्रतीत होता है" और इसे बदलने की आवश्यकता है।
तोरनीएली ने कहा, "पोप पीयुस 12वें ने लोकतंत्र पर यादगार विचार प्रस्तुत किए हैं," उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कलीसिया का नेतृत्व करनेवाले दिवंगत पोप ने "समझाया है कि युद्धों को रोकने के लिए लोगों की सच्ची भागीदारी की आवश्यकता है।"
विशेषकर, वे पोप पीयुस 12वें के 1944 में क्रिसमस की पूर्व संध्या को दिये गये जोरदार रेडियो संदेश की याद करते हैं, यह द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के ठीक पहले का समय था। पोप पीयुस 12वें ने तानाशाही शासन के नेतृत्व में युद्ध के क्रूर अनुभव को याद किया, जिसने नागरिकों के बीच घृणा पैदा की। "नागरिकों की गरिमा और स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए सरकार की इस प्रणाली के लिए" उनके आह्वान को बढ़ावा मिला। उस संदेश में, दिवंगत पोप ने लोकतंत्र में निहित अवसरों और चुनौतियों का भी वर्णन किया।
तोरनीएली ने कहा, "आज हम लोकलुभावनवाद के साथ-साथ नौकरशाही और वित्त की शक्ति के कारण एक संकट और पश्चिमी लोकतंत्रों के खालीपन को देख रहे हैं।" यही कारण है कि संत पापाओं की धर्मशिक्षा और पोप फ्रांसिस हमें जो बतलाते हैं वह महत्वपूर्ण है।"
हथियारों के लिए पैसा, लेकिन भूख से लड़ने के लिए नहीं
बातचीत के दौरान उन्होंने कई टिप्पणियाँ कीं, जिनमें यह विरोधाभास भी शामिल था कि युद्धों के बीच, हमारी बहुत उन्नत दुनिया, निरंतर हथियार व्यय के लिए असीमित रकम पा सकती है, लेकिन भूख, गरीबी, या अन्य बुनियादी जरूरी जरूरतों से निपटने का प्रबंधन नहीं कर सकती।
वाटिकन संचार विभाग के संपादक ने यह भी याद किया कि विश्वास के सिद्धांत के लिए गठित परमधर्मपीठीय विभाग ने 8 अप्रैल को अपनी नवीनतम घोषणा डिग्नितास इनफिनिता प्रकाशित की, जो सभी लोगों की आंतरिक और अपरिहार्य गरिमा की पुष्टि करता है, और इस गरिमा के खिलाफ विभिन्न उल्लंघनों को सूचीबद्ध करता है, एवं कहा कि एक समाज जो इन मूल्यों को बढ़ावा देता है वह व्यापक ध्रुवीकरण की प्रतिक्रिया में योगदान देता है।
यह स्वीकार करते हुए कि जब वोट देने का समय आता है तो कई काथलिक 'अनाथों' की तरह महसूस करते हैं, क्योंकि वे पूरी तरह से अत्यन्त रूढ़िवादी या उदार उम्मीदवारों के द्वारा पहचाने नहीं जाते, वाटिकन के संपादकीय निदेशक ने पुर्तगाली प्रोफेसर से पूछा कि इस दुविधा का कैसे सामना किया जाए।
प्रोफेसर मानुएल ब्रागा दा क्रूज़ ने माना कि यह वास्तविकता न केवल 'प्रवाही' मतदाताओं की है, जो उस समय अपने लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों के अनुसार अपना वोट आसानी से बदल लेते हैं, और क्योंकि मतदाता अपने राजनेताओं के साथ विश्वास की कमी का अनुभव करते हैं, आंशिक रूप से खुद को प्रभावी ढंग से संगठित करने में काथलिकों की कमी, बल्कि इससे भी अधिक "भ्रष्टाचार और बेईमानी के कारण राजनीति में शामिल होने से हतोत्साहित उनकी भावना को भी जिम्मेदार ठहराया।"