युवाओं से पोप : हम सभी तीर्थयात्री हैं और हम हमेशा तीर्थयात्री रहेंगे

पोप लियो 14वें ने उत्तरी यूरोप के युवाओं और शिक्षकों का वाटिकन में स्वागत किया और उनसे ईश्वर के आह्वान को सुनने और शिष्यत्व की अपनी यात्रा जारी रखने का आग्रह किया।
पोप लियो 14वें ने शनिवार सुबह को डेनमार्क, आयरलैंड, इंगलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड के तीर्थयात्रियों का वाटिकन में स्वागत किया। तीर्थयात्रियों में काथलिक स्कूलों के 65 शिक्षक और कोपेनहेगन धर्मप्रांत के 52 युवा शामिल थे।
संत पापा ने उन्हें सम्बोधित कर कहा, “मैं इस जयंती वर्ष के दौरान रोम की आपकी तीर्थयात्रा के अवसर पर आप सभी का खुशी से स्वागत करता हूँ।”
आप विभिन्न देशों के अनगिनत तीर्थयात्रियों के पदचिन्हों पर चल रहे हैं, जो सदियों से रोम, "अनन्त शहर" की तीर्थयात्रा करते आ रहे हैं। वास्तव में, रोम हमेशा से ख्रीस्तीयों के लिए एक विशेष घर रहा है, क्योंकि यह वह स्थान है जहाँ प्रेरित संत पेत्रुस और पौलुस ने अपनी शहादत के माध्यम से येसु के प्रति अपने प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण दिया। संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी के रूप में, मैं यहाँ आपकी उपस्थिति के लिए अपना आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, और मैं प्रार्थना करता हूँ कि विभिन्न पवित्र स्थलों का दौरा करके आप संतों और शहीदों द्वारा मसीह का अनुकरण करने के उदाहरण से प्रेरणा और आशा प्राप्त कर सकें।
युवाओं से पोप
संत पापा ने तीर्थयात्रा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “तीर्थयात्रा हमारे विश्वासी जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह हमें हमारे घरों और हमारी दैनिक दिनचर्या से दूर ले जाती है, और हमें ईश्वर से और अधिक गहराई से मिलने के लिए समय और स्थान देती है। ऐसे क्षण हमें बढ़ने में मदद करते हैं, क्योंकि उनके माध्यम से पवित्र आत्मा हमें धीरे-धीरे येसु के मन और हृदय के और अधिक करीब होने के लिए तैयार करती है।”
संत पापा ने सभी तीर्थयात्रियों को अवसर का लाभ उठाने की सलाह देते हुए कहा, “इस अवसर का उपयोग सुनने, प्रार्थना करने के लिए करें, ताकि आप अपने दिलों की गहराई में ईश्वर की आवाज को और अधिक स्पष्ट रूप से सुन सकेंगे।”
इस बात पर गौर करते हुए कि आजकल, सुनने की क्षमता खोती जा रही है, पोप ने कहा “क्योंकि हम संगीत सुनते, हमारे कान लगातार विभिन्न प्रकार के डिजिटल सामग्रियों से भरे रहते, लेकिन कभी-कभी हम अपने दिल की बात सुनना भूल जाते हैं जबकि ईश्वर हमारे दिल में हमसे बात करते हैं, ईश्वर हमें बुलाते और उन्हें बेहतर तरीके से जानने और उनके प्यार में जीने के लिए आमंत्रित करते हैं। और सुनने के माध्यम से हम ईश्वर की कृपा को येसु में अपने विश्वास को मजबूत करने के लिए ग्रहण कर सकते हैं, ताकि आप इस उपहार को दूसरों के साथ अधिक आसानी से बांट सकें।
शिक्षकों से
शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए पोप ने उन्हें आदर्श बनने की सलाह दी। क्योंकि युवा उन्हें एक आदर्श के रूप में देखते हैं: जीवन के आदर्श और विश्वास के आदर्श। उन्होंने कहा, “वे आपसे खास तौर पर इस बात पर नजर रखेंगे कि आप कैसे सिखाते और कैसे जीते हैं।”
उन्होंने उन्हें येसु के साथ संबंध गहरा करने का प्रोत्साहन दिया जो हमें प्रमाणिक शिक्षा के सभी तरीके प्रदान करते हैं। जिससे कि वे अपने विद्यार्थियों को ख्रीस्त का अनुसरण करना सिखा सकें।
संत पापा ने अंत में कहा कि यह तीर्थयात्रा यहीं समाप्त नहीं होती, बल्कि दैनिक "शिष्यत्व की तीर्थयात्रा" द्वारा जारी रहती है। हम सभी तीर्थयात्री हैं और हम हमेशा तीर्थयात्री ही रहेंगे, हम प्रभु का अनुसरण करने के लिए चलते हैं, और हम उस मार्ग की तलाश करते हैं जो वास्तव में जीवन में हमारा है।
संत पापा ने स्वीकार किया कि यह तीर्थयात्रा आसान नहीं है लेकिन ईश्वर की मदद से, संतों की मध्यस्थता एवं एक दूसरे से मुलाकात करते हुए, और ईश्वर की दया पर भरोसा रखने से, यह तीर्थयात्रा जीवनभर फल ला सकती है।
अंत में संत पापा ने सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया एवं उन्हें माता मरियम को समर्पित किया।