पोप : हम प्रेम और खुशी के शिल्पकार बनें

पोप ने वेनिस की अपनी यात्रा के अंतिम चरण में संत मरकुस के महागिरजाघर के प्रागँण में ख्रीस्तीयाग अर्पित किया और अपने प्रवचन में प्रेम और खुशी के शिल्पकार होने का संदेश दिया।

पोप ने अपने प्रवचन में कहा कि येसु दाखलता हैं और हम डालियाँ हैं। ईश्वर एक करूणावान और अच्छे पिता की भांति एक धैर्यपूर्ण किसान हैं जो कोमलता में हमारी देख-रेख करते हैं जिससे हम अधिक फल उत्पन्न कर सकें। यही कारण है कि येसु हमें अपने संग मूल्यवान संबंध रूपी उपहार की हिफाजत करने का आहृवान करते हैं जिन पर हमारा जीवन और हमारी उवर्रकता निर्भर करती है। वे निरंतर इस बात को दुहराते हैं कि तुम मुझ में बने रहो और मैं तुम में (योहन 15. 4-5)। केवल वही फलदायक होते हैं जो येसु से संयुक्त रहते हैं। हम इस विषय पर रुककर थोड़ा चिंतन करें।

येसु पृथ्वी पर अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं। अपने अंतिम व्यारी के भोज में वे अपने  शिष्यों को जो प्रेरित बनेंगे यूखारीस्त के साथ बहुत सारी मुख्य बातों को बतलाते हैं। इसमें से एक मुख्य बात है “मुझ में बने रहो” कहने का अर्थ मेरे संग संबंध में बने रहो जैसे कि डालियाँ दाखलता से जुड़ी रहती हैं। इस उपमा का उपयोग करते हुए येसु धर्मग्रँथ के उस प्रसिद्ध बातों की ओर पुनः इंगित करते हैं जैसे से स्तोत्र हमें कहता है “इस्रराएल वह दाखबारी है जिसे ईश्वर ने रोपा और जिसकी वे चिंता करते हैं।” जब चुनी हुई प्रजा प्रेम का फल उत्पन्न करने में असफल रही जिसकी आशा ईश्वर करते हैं, नबी इसायस ने एक दाखबारी के स्वामी के दृष्टांत द्वारा अपनी बातों को कहते हैं, उसने एक दाखबारी का निर्माण किया, उसके पत्थरों को हटाया, और अच्छे दाख लगाये, इसी आशा में कि वे अच्छी अंगूरी प्रदान करेंगे, लेकिन उसे खट्टी अंगूर मिले। नबी अंत में कहते हैं, “विश्वमडंल के प्रभु की यह दाखबारी इस्रराएल का घाराना है और इसके प्रिय पौधे यूदा की प्रजा हैं। प्रभु को न्याय की आशा थी और भ्रष्टाचार दिखाई दिया। उसे धार्मिकता की आशा थी और अधर्म के कारण हाहाकार सुनाई पड़ा है” (इसा.5.7)। येसु स्वयं नबी इसायस के ग्रँथ से उद्दृत करते हुए ईश्वर के धैर्य़ और अपने लोगों के कठोर हृदयता का जिक्र हत्यारे दाखबारी के दृष्टांत में करते हैं। इस भांति अंगूरी की उपमा ईश्वर के प्रेममय चिंता के बारे में जिक्र करती है वहीं यह हमें इस बात की चेतावनी देती है कि यदि हम ईश्वर के संग अपने संबंध को तोड़ते तो हम जीवन में अच्छे फल उत्पन्न नहीं करेंगे और सूखी डालियाँ होने के जोखिम में पड़ जायेंगे जिन्हें फेंक दिया जायेगा।

पोप ने इस निशानी के संदर्भ में वेनिस के अतीत की याद की जो अपनी दाखलता और अंगूरी के उत्पादन हेतु प्रसिद्ध था जहाँ मठवासी अंगूरी उत्पादन करते थे। संत पापा ने कहा कि इस ऐतिहासिक पृष्टभूमि के आधार पर हम दाखलता और डालियों के दृष्टांत को आसानी से समझ सकते हैं। ईश्वर में विश्वास और उनके संग हमारा संबंध हमारी स्वतत्रंता में बाधक नहीं बनता है। लेकिन ठीक इसके विपरीत यह हमें ईश्वर के प्रेम रस को ग्रहण करने हेतु खोलता है जो हमारी खुशी को दोगुणी करते हैं, वे हमारी चिंता करते और एक अनुभवी दाखबारी की देख-रेख करने वाले की भांति हमारी भूमि की कठोरता के बावजूद कोमल पौधों को हममें बढ़ने में मदद करते हैं।

पोप ने कहा कि हम येसु के हृदय से निकलने वाली उपमा पर चिंतन करते हुए इस शहर के बारे में विचार कर सकते हैं जो पानी पर स्थापित है जो दुनिया में अपनी अद्वितीय मनोरम दृश्य के लिए विश्व विख्यात है। वेनिस का शहर पानी से एक है जिसके ऊपर यह बसा हुआ है। इसकी देख-रेख औऱ इसकी स्वभाविक प्रकृति का रख-रखाव किये बिना यह अपने में नष्ट और यहाँ तक की खत्म हो जायेगा। उसी भांति हम सभों का जीवन भी सदैव ईश्वर के प्रेम रूपी झरनों से भरा है। बपतिस्मा में हम सभों का पुनर्जन्म हुआ है, हमने जल और पवित्र आत्मा से नये जीवन को पाया है और हम ख्रीस्त रूपी दाखलता में कलम किये गये पौधों की भांति हैं। ईश्वर का  प्रेम रस हममें प्रवाहित होता है जिसके बिना हम सूखी टहानियों की भांति हो जाते हैं जो फल उत्पन्न नहीं करता है। धन्य योहन पौलुस प्रथम जो इस शहर में आचार्य की भांति थे, उन्होंने एक बार कहा “येसु लोगों के लिए अनंत जीवन देने आये...। जीवन उनमें है और यह उनके द्वारा शिष्यों को दिया जाता है वैसे ही जैसे रस धड़ से प्रवाहित होते हुए शाखाओँ में जाती है। यह वह शुद्ध पानी है जिसे उन्होंने दिया है जो अपने में उमड़ा रहता है।”

पोप ने कहा कि प्रिय भाइयो एवं बहनो, हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम येसु में बने रहे, उनमें निवास करें। रहना क्रिया को हम जड़त्व के रुप में परिभाषित न करें मानों यह हमारा खड़ा रहना है, उदासीनता में खड़ा रहना। वास्तव में यह हमें आगे बढ़ने का निमंत्रण है, क्योंकि ईश्वर के संग रहने का अर्थ उसकी मित्रता में बढ़ना है, उनसे बातें करना, उनके शब्दों को आलिंगन में लेना, यह उनके ईश्वरीय राज्य के मार्ग में आगे बढ़ना है। यही कारण है कि यह हमें एक यात्रा में निकलने की मांग करता है जहाँ हम उनका अनुसरण करते हैं, हम उनके सुसमाचार द्वारा चुनौती लेते हैं और  उसके प्रेम का साक्ष्य देते हैं।

अतः येसु कहते हैं कि जो उनके साथ रहता है वह फलदायक होता है। यह कोई ऐसा वैसा फल नहीं होता। डालियों के फलों में रस का प्रवाह होता जो अंगूरों में पहुंचता है, और अंगूरों से अंगूरी का निर्माण होता है जो हमारे लिए एक सर्वोत्कृष्ट मुक्ति-विधान की निशानी है। येसु जो पिता के द्वारा मसीह  के रूप  में भेजे गये, ईश्वर के प्रेम रूपी अँगूर  को मानवता के हृदयों में लाते और  उसे खुशी और  आशा से भर देते हैं।