पोप : समुद्र और मरूभूमि प्रवासन के मार्ग
पोप फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में समुद्र और मरूभूमि की चर्चा करते हुए प्रवासन के शिकार लोगों की दयनीय दशा पर चिंतन करने का आहृवान किया।
पोप फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।
आज, सामान्य धर्मशिक्षा माला से हटकर मैं आप लोगों के संग मिलकर उनके बारे में थोड़ा विचार करना चाहूँगा जो अब भी समुद्रों और मरूभूमियों को पार करते हुए उस स्थल को पहुंचना चाहते हैं जहां वे शांति और सुरक्षा में जीवनयापन कर सकें।
समुद्र और मरूभूमि
समुद्र और मरूभूमि ये दो शब्द बारंबार मुझे, दोनों प्रवासियों और उनकी सहायता हेतु कार्य करने वाले लोगों के द्वारा मिलने वाले साक्ष्यों में आते हैं। संत पापा ने कहा कि जब मैं प्रवासन के संबंध में समुद्र के बारे में जिक्र करता हूँ, तो यह सागर, झील, नदी पानी से भरे बड़े स्थलों को भी अपने में सम्माहित करता है जिन्हें पार करते हुए हमारे बहुत से भाई-बहनें विश्व के विभिन्न स्थानों से गंतव्य स्थान की ओर पहुंचते हैं। और मरूभूमि अपने में केवल रेत और टीले या चट्टानों के बारे नहीं कहता बल्कि उन अगम्य और खतनाक प्रांतों का भी बोध करता है जैसे कि जंगलें, नुकीली पहड़ियाँ जहाँ से प्रवासियों को अकेले गुजरना पड़ता है, जो अपने में छोड़ दिये जाते हैं। आज प्रवासन के मार्ग बहुधा समुद्र और मरूभूमियाँ हैं जो बहुतों, असंख्य लोगों के लिए भयंकर हैं। संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि मैं आज इस दर्द पर चिंतन करना चाहूँगा। इनमें कुछेक से हम बेहतर रुप में परिचित हैं क्योंकि वे अक्सर सुर्खियों में रहते हैं, वहीं दूसरे अधिकतर अपने में कम प्रकाश में आते हैं लेकिन ऐसा नहीं कि उनसे होकर गुजरा नहीं जाता हो।
पोप ने कहा कि मैंने मूभध्यसागर के बारे में कई बार जिक्र किया है, क्योंकि मैं रोम का धर्माध्यक्ष हूँ और क्योंकि यह हमारा प्रतीकात्मक चिन्ह है, लोगों और सभ्यता के बीच संचार का एक स्थल जो कब्रगाह के रुप में तब्दील हो गया है। और दुर्भाग्यवश सबसे दुःखदायी बात यह है कि यहाँ अधिकतर मृत्यु को रोका जा सकता था। हम इसके संबंध में स्पष्ट रुप में कह सकते हैं कि बहुत से लोग हैं जो प्रवासियों को पीछे धकेलने के लिए, उन्हें रोकने हेतु व्यवस्थित रूप से और हर संभव तरीके से काम करते हैं। और जब हम ऐसा अपनी चेतना और उत्तरदायित्व में करते हैं तो यह एक गंभीर पाप होता है। हम इस बात को न भूलें जिसे धर्मग्रंथ हमारे लिए कहता है, “तुम एक परदेशी पर अत्यचार या उसे प्रताड़ित नहीं करोगे।” अनाथ, विधवा और परदेशी अपने में अत्यधिक गरीब हैं जिनकी रक्षा ईश्वर सदैव करते हैं और वे हमें भी उनकी रक्षा करने को कहते हैं।
पोप ने कहा दुर्भाग्यपूर्ण ढ़ंग से कुछ मरूभूमियाँ भी प्रवासियों के लिए कब्रस्थान बन रहे हैं। यहाँ होने वाली मृत्यु को हम “स्वभाविक” नहीं कह सकते हैं। कई बार लोगों को मरूभूमि में ले जाया जाता और उन्हें छोड़े दिया जाता है। उन्होंने पातो की पुत्री का जिक्र किया जो भूख और प्यास के कारण मरूभूमि में मर गई। उपग्रहों और ड्रोन के समय में हमें यह बात सुनाई नहीं देनी चाहिए कि प्रवासी पुरूषें, नारियाँ और बच्चे मरूभूमि में मर रहे हैं। केवल ईश्वर उन्हें देखते और उनकी रूदन को सुनते हैं। यह हमारी सामाजिक स्थिति की क्रूरता है।
समुद्र और मरूभूमि मूल्यवान निशानियाँ
वास्तव में, समुद्र और मरूभूमि हमारे लिए धर्मग्रंथ के स्थल हैं जो संकेतिक मूल्यवान निशानी से भरे हुए हैं। निर्गमन के इतिहास में वे हमारे लिए बहुमूल्य दृश्य हैं जहाँ हम ईश्वर की अवुगाई में लोगों को एक बृहृद निर्गमन करता पाते हैं वे मूसा के द्वारा मिस्र देश से प्रतिज्ञात देश की ओर ले जाये जाते हैं। इन स्थानों में हम लोगों का गुलामी और सतावट से भागने के नाटकीय दृश्य का साक्ष्य पाते हैं। ये दुःख, भय और निराशा के स्थल हैं लेकिन वहीं हम उन्हें मुक्ति और स्वतंत्रता के स्थानों स्वरुप पाते हैं, जहाँ से मुक्त और ईश्वरीय प्रतिज्ञाओं की पूर्णतः आती है।
समुद्र और मरूभूमि ईश्वर के मार्ग
पोप ने कहा कि एक स्त्रोत है जो ईश्वर के बारे में कहता है,“तेरा मार्ग समुद्र से होकर जाता था, गहरे सागर होकर जाता था” तो वहीं दूसरा कहता है,“वह अपनी प्रजा को मरूभूमि से होकर ले चला।” इन पवित्र शब्दों में हमारे लिए कहा जाता है कि लोगों की मुक्ति यात्रा में, ईश्वर स्वयं उनके संग समुद्र और मरूभूमि पार करते हैं, वे दूर नहीं रहते, ऐसा नहीं है, वे प्रवासन की नाटकीय स्थिति में भाग लेते हैं, वे वहाँ उनके संग रहते हैं, ईश्वर प्रवासियों के संग होते और दुःख सहते हैं, वे रोते और उनके संग आशा में बने रहते हैं।