पोप: शहीद सुसमाचार की सुन्दरता के विश्वसनीय गवाह हैं
पोप फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 14 नवम्बर को संत प्रकरण के लिए गठित परमधर्मपीठीय विभाग द्वारा आयोजित सम्मेलन के प्रतिभागियों से मुलाकात करते हुए संतों के शक्तिशाली और पवित्र उदाहरणों की प्रशंसा की, जो शहादत और अपने जीवन के बलिदान पर केंद्रित है।
पोप ने सम्मेलन की शुरुआत में याद दिलाया कि यह संत योहन रचित सुसमाचार में येसु के शब्दों से प्रेरित है, "इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपना प्राण दे।" (यो. 15:13)
पोप फ्राँसिस ने कहा कि पवित्र होने के लिए, "केवल मानवीय प्रयास या त्याग और बलिदान के लिए व्यक्तिगत प्रतिबद्धता की आवश्यकता नहीं है", बल्कि, "सबसे बढ़कर," उन्होंने कहा, "खुद को ईश्वर के प्रेम की शक्ति से परिवर्तित होने देना है, जो हमसे महान है और हमें उससे भी अधिक प्रेम करने में सक्षम बनाता है, जितना हम सोचते थे कि हम करने में सक्षम हैं।"
मसीह के प्रेम के लिए कीमत चुकाना
पोप ने याद दिलाया कि सम्मेलन के दौरान प्रतिभागियों ने दो प्रकार की पवित्रता पर विचार किया: शहादत और अपने जीवन की आहुति।
पोप फ्राँसिस ने संत प्रकरण के लिए गठित परमधर्मपीठीय विभाग द्वारा आयोजित सम्मेलन में प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा, "प्राचीन काल से, येसु में विश्वास करनेवाले, उन लोगों को बहुत सम्मान देते रहे हैं जिन्होंने मसीह और कलीसिया के प्रति अपने प्रेम के लिए व्यक्तिगत रूप से, अपने जीवन का बलिदान कर दिया।"
पोप ने स्वीकार किया, "आज भी, दुनिया के कई हिस्सों में, ऐसे कई शहीद हैं जो ख्रीस्त के लिए अपना जीवन देते हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "कई मामलों में ख्रीस्तीय धर्म को सताया जाता है क्योंकि यह ईश्वर में विश्वास से प्रेरित होकर न्याय, सत्य, शांति और लोगों की गरिमा की रक्षा करता है।" इस संदर्भ में, पोप ने आगामी 2025 की आशा की जयंती के लिए अपने बुल ऑफ इंडिक्शन में अपने निर्णय की ओर इशारा करते हुए कहा कि "शहीदों की गवाही को आशा की सबसे ठोस गवाही के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए।"
आज शहादत
पोप ने कहा कि इसी कारण से उन्होंने संत प्रकरण के लिए गठित विभाग के भीतर नए शहीदों पर आयोग, विश्वास के साक्षी की स्थापना करने का फैसला किया।
पोप फ्राँसिस ने प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए और उन्हें जुनून एवं उदारता के साथ संत प्रकरण के लिए अपना काम जारी रखने हेतु प्रोत्साहित किया। उन्होंने उन्हें "कुँवारी मरियम और ख्रीस्त के सभी गवाहों (संतों) की मध्यस्थता पर सौंपते हुए अपना संदेश समाप्त किया, जिनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे गए हैं।"