पोप फ्राँसिस : ‘मैं भी आप्रवासियों का बेटा हूँ’

पनामा के लजास ब्लांकास में एकत्रित आप्रवासियों के एक दल को प्रेषित संदेश में पोप फ्राँसिस ने आप्रवासियों को “ख्रीस्त का चेहरा” कहा है, जिन्हें कलीसिया प्यार से राहत एवं आशा प्रदान करती है।

21 मार्च को प्रेषित संदेश में पोप फ्राँसिस ने पनामा के लजास ब्लांकास में एकत्रित आप्रवासी दल को सम्बोधित किया। पोप ने व्यक्तिगत रूप से उनके साथ जाने की इच्छा व्यक्त की और उनकी स्थिति के प्रति अपनी समझ प्रकट किया।

पोप ने कहा, “मैं भी आप्रवासियों का बेटा हूँ, जो बेहतर भविष्य की तलाश में निकलते हैं।”

पोप ने उन पुरोहितों एवं धर्माध्यक्षों को धन्यवाद दिया जो वहाँ उनका प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी सेवा दे रहे हैं।

उन्होंने कहा, वे "माता कलीसिया के चेहरे को दर्शाते हैं जो अपने बेटे एवं बेटियों के साथ चलती है, जिसमें वे मसीह के चेहरे की खोज करें और वेरोनिका की तरह, प्रवास के क्रूस रास्ते पर प्यार से राहत और आशा प्रदान करते हैं।"

पोप ने कहा कि आप्रवासी "ख्रीस्त के पीड़ित शरीर को दर्शाते हैं जब उन्हें अपना देश छोड़ने, कठिन यात्रा के जोखिमों और कष्टों का सामना करने के लिए मजबूर किया जाता है, और जब उन्हें कोई अन्य रास्ता नहीं मिलता है।"

उन्होंने आप्रवासियों से अपील की कि वे अपनी मानवीय गरिमा को कभी न भूलें, और "दूसरों की आंखों में देखने से न डरें", क्योंकि वे "कचरे नहीं हैं।"

उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया कि वे भी "मानव परिवार और ईश्वर के बच्चों के परिवार के हिस्से हैं।"

पोप ने आप्रवासियों को उनकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद दिया और उनसे अनके लिए प्रार्थना का आग्रह किया।