पोप फ्राँसिस की आवाज़ एवं धर्मशिक्षा

रोम के जेमेल्ली अस्पताल में बीमार चल रहे पोप फ्राँसिस तथा उनकी धर्मशिक्षाओं पर वाटिकन रेडियो के सम्पादकीय विभाग के निर्देशक आन्द्रेया तोरनियेल्ली ने चिन्तन करते हुए कहा है कि इस समय पोप जिस व्यथा से गुज़र रहे हैं, बेशक वह उनके परमाध्यक्षीय काल की 12 वीं वर्षगाँठ को असाधारण बना देता है।
नाजुक क्षण
उन्होंने याद किया कि बीते वर्ष ही पोप फ्राँसिस ने अपनी सबसे लंबी अंतरमहाद्वीपीय यात्रा पूरी कर इंडोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, तिमोर लेस्ते और सिंगापुर का दौरा किया; विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का समापन किया; और जयन्ती वर्ष 2025 के उपलक्ष्य में पवित्र द्वार का उद्घाटन किया और अब इस नाजुक क्षण से वे गुज़र रहे हैं। सन्त पेत्रुस के उत्तराधिकारी, बीमारों के बीच बीमार हैं, दुनिया भर के इतने सारे लोगों की प्रार्थनाओं के साथ वे भी शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
निर्देशक आन्द्रेया तोरनियेल्ली ने कहा कि वे, जिन्होंने इन बारह वर्षों में कभी भी किसी सभा, धर्मशिक्षा या देवदूत प्रार्थना का समापन इन शब्दों के बिना नहीं किया कि, "कृपया मेरे लिए प्रार्थना करना न भूलें", आज उन अनेक विश्वासियों और ग़ैर-विश्वासियों का आलिंगन महसूस कर रहे हैं जो उनके स्वास्थ्य के प्रति चिन्तित हैं।
कलीसिया की प्रकृति
उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि अब कलीसिया की प्रकृति और रोम के धर्माध्यक्ष के मिशन पर विचार करने का समय है, जो एक बहुराष्ट्रीय निगम के महाप्रबंधक से बहुत अलग है। तोरनियेल्ली ने कहा कि बारह साल पहले, तत्कालीन कार्डिनल बेरगोलियो ने हेनरी डी लुबैक की राय को उद्धृत कर कहा था कि कलीसिया द्वारा की जाने वाली “सबसे बड़ी बुराई” “आध्यात्मिक सांसारिकता” है: यह एक ऐसा ख़तरा है जो कलीसिया को यह “विश्वास कराता है कि उसके पास अपना प्रकाश है”, जो अपनी ताकत, अपनी रणनीतियों, अपनी दक्षता पर निर्भर करता है, और इस प्रकार “मिस्टेरियम लूने” नहीं रह जाता है, अर्थात, अब दूसरे के प्रकाश को प्रतिबिंबित नहीं करता है, अब केवल उसी की कृपा से नहीं जीता और कार्य करता है जिसने कहा था: “मेरे बिना तुम कुछ नहीं कर सकते”।
उन्होंने कहा कि आज एक बार फिर हम उन शब्दों को याद करते हुए, जेमेल्ली अस्पताल की दसवीं मंजिल की खिड़कियों पर स्नेह और आशा के साथ देखते हैं। हम पोप फ्रांसिस को उनकी नाजुकता के लिए धन्यवाद देते हैं, उनकी उस कमजोर आवाज़ के लिए आभार व्यक्त करते हैं जो हाल के दिनों में सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रोज़री में शामिल हुई है – ऐसी नाजुक आवाज़ जो युद्ध नहीं बल्कि शांति, उत्पीड़न नहीं बल्कि संवाद, उदासीनता नहीं बल्कि करुणा की याचना करती है। पोप फ्रांसिस आपको सालगिरह मुबारक हो! हमें अभी भी आपकी आवाज़ की सख्त ज़रूरत है।