पोप : पुस्तकालयों को शांति और मुलाकात का स्थान होना चाहिए
पोप फ्राँसिस ने दुनिया भर के तेईस प्रतिष्ठित पुस्तकालयों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की, जो वाटिकन प्रेरितिक पुस्तकालय द्वारा प्रचारित एक अंतरराष्ट्रीय बैठक में भाग लेने के लिए रोम पहुंचे हैं। संत पापा ने जोर देते हुए कहा, "वैचारिक उपनिवेशवाद और स्मृति के विलोपन के लिए हम संस्कृति की देखभाल के साथ प्रतिक्रिया करते हैं।"
प्रेरितिक वाटिकन पुस्तकालय के "संरक्षित और दूसरों तक पहुँचाने के लिए पढ़ा गया, संवाद में पुस्तकालय", सम्मेलन के करीब 100 प्रतिभागियों को पोप फ्राँसिस ने शनिवार 16 नवंबर को वाटिकन के क्लेमेंटीन सभागार में स्वागत किया।
पोप ने कहा, “मैं विश्व भर के तेईस प्रतिष्ठित पुस्तकालयों के प्रतिनिधियों का भी हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने इस बैठक में भाग लिया है। वाटिकन लाइब्रेरी कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर संबंधित संस्थानों के साथ बातचीत करना चाहती है और उसने अध्ययन समूहों की शुरुआत की है, मुझे विश्वास है कि ये जारी रहेंगे और आपके आपसी समृद्धि के लिए फलदायी होंगे।”
भविष्य के लिए आशा करने में सक्षम नए संश्लेषण
पोप ने कहा कि उनके संस्थानों को अतीत की विरासत को सार्थक तरीके से नई पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए कहा जाता है, जो एक तरल संस्कृति में डूबी हुई हैं और इसलिए उन्हें ठोस, रचनात्मक, स्वागत करने वाले और समावेशी वातावरण की आवश्यकता है, जिसमें वे वर्तमान में अंतर्दृष्टि और भविष्य के लिए आशा करने में सक्षम नए संश्लेषण बना सकें। अतः उनका मिशन वास्तव में एक रोमांचक मिशन है।
लाइब्रेरियन पोप
पोप फ्राँसिस ने पोप पियुस ग्यारहवें का उदाहरण दिया, जिन्हें कुछ विद्वान "लाइब्रेरियन पोप" कहते हैं। वे परमाध्यक्ष बनने से पहले मिलान में एम्ब्रोसियन लाइब्रेरी और बाद में वाटिकन लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन थे। विज्ञान और जनसंचार में रुचि रखने वाले एक कर्मठ व्यक्ति, वे इतिहास के एक अत्यंत संकटपूर्ण समय में, दो विश्व युद्धों के बीच, पुस्तकालयों के महान महत्व के प्रति सचेत थे। संत पापा पियुस ग्यारहवें ने वाटिकन लाइब्रेरी का विस्तार किया, व्यवस्थित सूची में दर्ज करने हेतु बढ़ावा दिया और लाइब्रेरियन के प्रशिक्षण के लिए एक स्कूल खोला। उनके संरक्षण में, वाटिकन लाइब्रेरी कई विद्वानों के लिए एक सुरक्षित शरणस्थल बन गई, जिनमें अधिनायकवादी शासन द्वारा सताए गए लोग भी शामिल थे, जिनका संत पापा ने दृढ़ता से विरोध किया था।
संचार मीडिया और सूचना प्रौद्योगिकी
पोप ने कहा कि वर्तमान में प्रौद्योगिकी ने लाइब्रेरियन के काम करने के तरीके को उल्लेखनीय रूप से बदल दिया है, जिससे यह अधिक विविधतापूर्ण और कम समय लेने वाला हो गया है। संचार मीडिया और सूचना प्रौद्योगिकी ने कुछ साल पहले तक अकल्पनीय संभावनाओं को खोल दिया है। पुस्तकालय संसाधनों का अध्ययन, सूचीकरण और उपयोग करने की प्रणालियाँ कई गुना बढ़ गई हैं। इन सब ने कई लाभ तो लाए हैं, लेकिन कई जोखिम भी हैं: बड़े डेटाबेस शोध के लिए समृद्ध संसाधन हैं, लेकिन उनकी गुणवत्ता को नियंत्रित करना मुश्किल साबित हुआ है। प्रिंट संग्रहों, खास तौर पर पुराने संग्रहों के प्रबंधन की उच्च लागत के कारण, दुनिया में केवल कुछ ही देश कुछ परामर्श और शोध सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं। नतीजतन, कम सुविधा वाले देश न केवल भौतिक गरीबी, बल्कि बौद्धिक और सांस्कृतिक गरीबी का भी सामना कर सकते हैं। एक जोखिम यह है कि महंगी हथियार प्रणालियां संस्कृति के विकास और इसके विकास के लिए आवश्यक साधनों में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
संस्कृति पर युद्ध का खतरा
आगे पोप ने कहा कि कई सांस्कृतिक संस्थाएँ युद्ध, हिंसा और लूटपाट के सामने खुद को असहाय पाती हैं। अतीत में ऐसा कितनी बार हुआ है! “आइए, हम यह सुनिश्चित करने के लिए काम करें कि ऐसा फिर कभी न हो। आइए, हम सभ्यताओं के टकराव, वैचारिक उपनिवेशवाद और निरस्त संस्कृति का जवाब सच्ची संस्कृति को विकसित करके दें। मैं आपको यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ कि आपकी संस्थाएं शांति के स्थान, मुलाकात के स्थल और खुली चर्चा के मंच बनें।”
चार सिद्धांत
पोप ने अपने प्रेरितिक उद्बोधन ‘इवांजेली गौदियुम’ में उल्लेखित चार सिद्धांतों को उनके चिंतन हेतु प्रस्ताव दिया।
पहला, समय स्थान (जगह) से बड़ा है।
पोप ने कहा कि वे ज्ञान और शिक्षा के विशाल खजाने के संरक्षक हैं। ये ऐसे स्थान बनें जहाँ हमारे अस्तित्व के आध्यात्मिक और पारलौकिक आयाम के प्रति चिंतन और खुलेपन के लिए समय निकाला जाए। इस तरह, वे तत्काल परिणामों के प्रति आसक्त हुए बिना दीर्घकालिक अध्ययन का पक्ष ले सकते हैं और इस प्रकार, मौन और ध्यान को बढ़ावा देकर, एक नए मानवतावाद के विकास को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
दूसरा, संघर्ष पर एकता की जीत होती है।
पोप ने कहा कि अकादमिक शोध अनिवार्य रूप से कई बार विवाद को जन्म देता है, जिस पर गंभीर, ईमानदार और सम्मानजनक चर्चा होनी चाहिए। पुस्तकालयों को ज्ञान के सभी क्षेत्रों के लिए खुला होना चाहिए और अलग-अलग दृष्टिकोणों के बीच एक सामान्य उद्देश्य का गवाह बनना चाहिए।
तीसरा, वास्तविकताएँ विचारों से ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
आगे पोप ने कहा कि विचार और अनुभव, तथ्य और सिद्धांत, अभ्यास और सिद्धांत के बीच किसी भी झूठे संघर्ष से बचने के लिए, आलोचनात्मक और विचारवान दृष्टिकोण बनाए रखते हुए ठोस और यथार्थवादी निर्णय लेना महत्वपूर्ण है। अगर हम ईमानदारी से सच्चाई की तलाश करते हैं, तो हमारे चिंतन को हमेशा वास्तविकता की प्रधानता का सम्मान करना चाहिए।