परमधर्मपीठीय विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त परिषद के सदस्यों से
वाटिकन में जारी परमधर्मपीठीय विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त परिषद की पूर्णकालिक सभा में भाग लेनेवाले धर्माधिकारियों ने शुक्रवार को सन्त पापा फ्राँसिस का साक्षात्कार कर उनका सन्देश सुना।
प्रतिभागियों को सम्बोधित शब्दों में पोप ने परिषद के लक्ष्य का स्मरण दिलाया। उन्होंने कहा कि इसका कार्य सुसमाचर प्रचार हेतु रोम स्थित काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष एवं विश्व में व्याप्त धर्माध्यक्षों की सहायता करते हुए विश्वास और नैतिकता पर काथलिक धर्म सिद्धांत की अखंडता को बढ़ावा देना और उसकी रक्षा करना है। इस लक्ष्य की प्रप्ति हेतु सन्त पापा ने कहा कि परिषद में दो विभागों की स्थापना की गई है, एक धर्मसिद्धान्त सम्बन्धी और दूसरा अनुशासनात्मक विभाग।
पोप ने कहा कि एक ओर, मैंने अनुशासनात्मक विभाग के भीतर सक्षम पेशेवरों की उपस्थिति के महत्व को रेखांकित किया, ताकि वर्तमान कलीसियाई कानून को ध्यान में रखकर कठोरता सुनिश्चित की जा सके, विशेष रूप से उन पुरोहितों के विरुद्ध जो नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार के अपराधी पाये जाते हैं। दूसरी ओर, सन्त पापा ने कहा कि मैंने साथ ही साधारण व्यक्तियों और कानूनी व्यवसायियों तथा विवाह कार्यालय और अभिलेखागार में काम के लिए प्रशिक्षण पहल पर बल दिया है, ताकि प्रशिक्षित धर्मशास्त्रियों और योग्य कर्मियों की कोई कमी नहीं हो।
परिषद के मिशन की सफलता के लिये पोप फ्राँसिस ने तीन शब्दों पर ध्यान केन्द्रित करना महत्वपूर्ण बताया, जो हैं, संस्कार, गरिमा और विश्वास।
पोप ने कहा कि कलीसिया का जीवन संस्कारों पर पोषित और विकसित होता है। इस कारण से, पुरोहितों को संस्कारों के प्रशासन में और उनके द्वारा संप्रेषित अनुग्रह के खज़ाने को विश्वासियों के सामने प्रकट करने में विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा, संस्कारों के माध्यम से, विश्वासी भविष्यवाणी और गवाही देने में सक्षम बनते हैं और हमारे समय को नवजीवन के नबियों और उदारता के साक्षियों की तत्काल आवश्यकता है: इसलिए आइए हम संस्कारों की सुंदरता और इनकी उद्धारकारी शक्ति से प्यार करें !
दूसरा शब्द, पोप ने कहा, गरिमा है। उन्होंने कहा कि ख्रीस्तानुयायी होने के नाते हमें "मानव व्यक्ति की प्रधानता और सभी परिस्थितियों से परे उसकी गरिमा की रक्षा" पर ज़ोर देने से कभी भी थकना नहीं चाहिए। प्रत्येक मानव व्यक्ति की गरिमा का सम्मान हमें "उन सभी के क़रीब रहने में मदद कर सकता है, जो बिना किसी घोषणा के, ठोस रोजमर्रा की जिंदगी में, लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ते हैं और जिन्हें प्रतिदिन दूसरों को खत्म करने या अनदेखा करने के विभिन्न मौजूदा तरीकों का सामना करना पड़ता है।"
पोप ने कहा कि मानव गरिमा को प्रतिस्थापित कर हम भ्रातृत्व प्रेम और सामाजिक मैत्री के नये सपने को साकार बनाने में सक्षम होंगे, जो केवल शब्दों तक सीमित नहीं है।
तीसरे शब्द विश्वास पर चिन्तन करते हुए पोप ने कहा कि सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की तरह हम इस बात को कभी न भुलायें कि धरती के एक बड़े भाग में आस्था और विश्वास के लिये कोई स्थान नहीं रह गया है। उन्होंने कहा कि आस्था, "अब आम जीवन के लिए कोई स्पष्ट शर्त नहीं है, वास्तव में इसे अक्सर नकारा जाता है, इसका उपहास किया जाता है, इसे हाशिए पर रख दिया जाता है, जबकि ख्रीस्तानुयायी होने के नाते हमारा दायित्व है कि अपने-अपने कार्यक्षेत्रों में हम इस तथ्य को याद रखें कि ईश्वर सृष्टिकर्त्ता और जीवनदाता हैं।