एक माता को पोप लियो का जवाब

इतालवी पत्रिका पियास्सा सन पिएत्रो में प्रकाशित एक पत्र में, एक युवा माँ अपने बच्चों के भविष्य के लिए पोप लियो से अपील करती है, और पोप आशा का संदेश देते हुए उसका जवाब देते हैं।
इतालवी पत्रिका पियास्सा सन पियेत्रो का जुलाई संस्करण युवाओं की जयंती के लिए समर्पित किया गया है। इस संस्करण में पोप लियो ने जायेरा, तीन बच्चों की एक युवा माता के पत्र का जवाब दिया है जहाँ उन्होंने शांति के मौलिक अधिकार पर अपनी चिंता व्यक्त की है।
एक मौलिक अधिकार
जायेरा ने वर्तमान समय में “शांति का चाह” पर अपने चिंतन व्यक्त करते हुए यह सवाल किया है, "अगर विश्व युद्ध छिड़ जाए तो बच्चों के सपनों का क्या होगा? उनके माता-पिता द्वारा किए गए त्यागों - घर खरीदना, उन्हें स्कूल भेजना, उनके भविष्य के लिए बचत करना का क्या होगा?"
वह इस बात पर ज़ोर देती है कि कैसे भविष्य के लिए बच्चे सपने और लक्ष्य निर्धारित करते हैं जो आसानी से नष्ट हो सकते हैं अगर "किसी दिन किसी देश का नेता किसी ऐसी ज़मीन पर कब्ज़ा करने और उसके लोगों को अपने अधीन करने की इच्छा के साथ उठे जो उसका नहीं है।"
"शांति एक मौलिक अधिकार है," ज़ायेरा तर्क देती है, और अपने पत्र को इस मार्मिक प्रश्न के साथ समाप्त करती है, "हम इसे क्यों भूल गए हैं?"
यह पुकार ईश्वर के हृदय को छूती है
पोप लियो जायेरा के इस सावल के उत्तर में कहते हैं, “यह एक पुकार है जो ईश्वर के हृदय तक पहुंचती है।” वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ईश्वर कठिन और भ्रमित करने वाले क्षणों में हमारी मदद करते हैं।
फिर भी, पोप कहते हैं कि हमें ऐसे समय में निष्क्रिय नहीं रहना चाहिए। बल्कि, वे कहते हैं कि ईश्वर का प्रेम "हमें निरंतर-मानव परिवार की भलाई और एकता हेतु कार्य करने को प्रेरित करता है।"
शांति एक सक्रिय उपहार
पोप लियो अपने उत्तर में आगे वाटिकन हेतु राजनायिकों के प्रत्यय को उदृधृत करते हुए कहते हैं, “शांति- ख्रीस्तीय और अन्य धर्मों की समझ के अनुसार- प्रथम और सर्वप्रथम एक उपहार है।” वे कहते हैं कि हम इसे केवल कार्य करने के द्वारा हासिल करते हैं। यह एक उपहार है जो हमें चुनौतियाँ देता और हम सभों से सहभागिता की मांग करता है, चाहे हम किसी भी संस्कृति और धार्मिक पृष्ठभूमि के क्यों न हों। शांति का यह उपहार "हृदय में निर्मित होता और हृदय से ही शुरू होता है-अभिमान और द्वेष को जड़ से उखाड़कर, अपने शब्दों का सावधानीपूर्वक चयन करके, क्योंकि हम न केवल हथियारों से, बल्कि शब्दों से भी घायल या नष्ट कर सकते हैं।"
पोप लियो ज़ायेरा के प्रश्न का ईमानदारी से उत्तर देते हुए कहते हैं कि कभी-कभी स्थिति ऐसी लग सकती है जैसे कोई समाधान नहीं है और स्थिति बिगड़ने की संभावना वास्तविक लगती है। वे कहते हैं कि यही वह समय है जब हमें "हृदय शुद्धिकरण- शांति के रिश्ते बनाने हेतु आहृवान किया जाता है।"
शांति हेतु वार्ता और प्रार्थना की जरुरत
ऐसा करने के लिए पोप ने कहा कि हर किसी को शांति के ईश्वर से प्रार्थना करने की आवश्यकता है, हमें सामुदायिक और व्यक्तिगत रुप में शांति हेतु रोज दिन प्रार्थना करने की जरुरत है।
इसके अलावा, इस प्रार्थना के साथ हर स्तर पर संवाद भी होना चाहिए, जिससे "संघर्ष की बजाय मिलन की सच्ची संस्कृति को बढ़ावा मिले, और शक्ति की सीमाएं सीमित हों, जैसा कि पूर्ववर्ती पोप फ्रांसिस हमेशा आग्रह करते थे।"
हालाँकि पोप लियो मानते हैं कि प्रार्थना और कर्म को मिलाना एक चुनौती है, फिर भी वे कहते हैं कि यह "छोटे, स्थिर कदमों" से संभव है।
युद्ध अंतिम शब्द नहीं होगा, वे ज़ोर देते, और याद दिलाते हैं कि "बच्चों को ऐसी शांति का अधिकार है जो वास्तविक, न्यायसंगत और स्थायी हो।"