आठ धर्मसमाजों की आम सभाओं के सदस्यों को सम्बोधन

कास्टेल गोन्दोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद में शनिवार को पोप लियो 14 वें ने आठ धर्मसमाजों की आम सभाओं में भाग लेनेवाले पुरोहितों को एक साथ सम्बोधित कर उन्हें अपने संस्थापकों द्वारा छोड़ी गई विरासत को कदापि न भूलने का सन्देश दिया।
रोम के परिसर में कास्टेल गोन्दोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद में शनिवार को पोप लियो 14 वें ने आठ धर्मसमाजों की आम सभाओं में भाग लेनेवाले पुरोहितों को एक साथ सम्बोधित कर उन्हें अपने संस्थापकों द्वारा छोड़ी गई विरासत को कदापि न भूलने का सन्देश दिया।
विरासत को याद करें
आम सभाओं के सदस्यों का अभिवादन कर पोप ने उन्हें स्मरण दिलाया कि वे प्रार्थना करने, चर्चा करने और भविष्य के लिए प्रभु की उनसे क्या अपेक्षाएँ हैं, इस पर एक साथ चिंतन करने के लिए एकत्र हुए हैं। उन्होंने स्मरण दिलाया कि उक्त धर्मसमाजों के संस्थापकों ने, पवित्र आत्मा के सामर्थ्य के प्रति समर्पित होकर उन तक मसीह के शरीर के निर्माण हेतु विविध करिश्मों की विरासत छोड़ी है ताकि "ईश्वर की योजनानुसार आप विकसित हो सकें और कलीसिया में अपना योगदान दे सकें"।
पोप ने कहा, "आपके धर्मसमाज मसीह के बलिदान के साथ एकता में आत्म-समर्पण द्वारा तथा "आद जेन्तेस" मिशन के माध्यम से युवाओं की शिक्षा और प्रशिक्षण द्वारा कलीसिया के प्रेम को प्रसारित करते हैं। उन्होंने कहा कि ये विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा उस शाश्वत वास्तविकता को अभिव्यक्ति मिलती है जो इन सभी को जीवंत करती और करिश्माई रूप में प्रकट होती है, और वह मानवता के प्रति ईश्वर का प्रेम।
पवित्रआत्मा के सामर्थ्य का फल
पोप ने स्मरण दिलाया कि प्रार्थना, उदारता के कार्य तथा शिक्षा और प्रशिक्षण के प्रचार प्रसार से उनके धर्मसमाज जो कुछ कर रहे हैं वह एक अनमोल वरदान है क्योंकि यह सब पवित्रआत्मा के कार्यों का फल है। सन्त योहन रचित सुसमाचार के 16 वें अध्याय के 13 वें पद को उद्धृत कर उन्होंने कहा कि वह सत्य का आत्मा ही है जो, पुरोहितों के मार्गदर्शन में, अनेक लोगों के योगदान के माध्यम से, "ख्रीस्तीय समुदाय को पूर्ण सत्य की ओर ले जाता है (दे. योहन-16:13)"।
मूलभूत अनुस्मारक
पोप ने कहा कि पवित्रआत्मा से सतत प्रार्थना के परिणामस्वरूप ही आपके धर्मसमाजों ने ऐसे दिशानिर्देश तैयार किए हैं जिनमें मूलभूत अनुस्मारक निहित हैं। ये हैं: एक प्रामाणिक मिशनरी भावना को नवीनीकृत करना, जैसा कि फिलिप्पियों को प्रेषित पत्र में सन्त पौल लिखते हैं, "अपने मनोभावों को येसु मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लेना" और जैसा कि थेसलनीकियों को प्रेषित पत्र में लिखते हैं, "ईश्वर में आशा की जड़ें जमाते हुए अपने हृदयों में आत्मा की ज्योति को प्रज्वलित रखना" साथ ही शांति को बढ़ावा देना और स्थानीय कलीसियाओं में पुरोहितों के सह-उत्तरदायित्व का विकास करना।
इस प्रकार, पोप ने कहा, "आपके धर्मसमाजों को अपने समुदाय की समृद्धि को समझने में मदद मिलती है, जो "मसीह के अनुसरण" हेतु प्रतिबद्धता और शक्ति प्रदान करती है।
अपने सम्बोधन के समापन पर पोप लियो ने सन्त योहन रचित सुसमचार के शब्दों को उद्धृत कर सबको प्रार्थना करने के लिये आमंत्रण दिया ताकि "हम पवित्रआत्मा आत्मा की आवाज के प्रति विनम्र बनें, जो “सब कुछ सिखाते हैं” और जिनकी सहायता के बिना, अपनी कमजोरी में, हम यह भी नहीं जानते कि क्या मांगना उचित है" (रोमियों 8:26)।