सेमिनरी छात्रों से पोप, मुक्तिदाता येसु की जीवित छवि बनने की तैयारी करें

पोप फ्राँसिस ने शनिवार को स्पेन के सेमिनरी छात्रों से कहा कि सेमिनरी वह स्थान है जहाँ हम सीखते हैं कि पुरोहित एक उद्धारक है।

16 नवम्बर को पोप ने पम्पलोना, तुदेला, सन सेबास्तियन और रेदेमतोरिस मातेर धर्मप्रांतों के सेमिनरी छात्रों से वाटिकन में मुलाकात करते हुए कहा कि सेमिनरी एक कैद नहीं बल्कि वह स्थान है जहाँ सीखा जाता है कि पुरोहित एक उद्धारक है, “क्योंकि एक पुरोहित मुक्तिदाता येसु की जीवित छवि के अलावा कुछ और नहीं हो सकता।”  

मुक्तिदाता होने का अर्थ
मुक्तिदाता होने का अर्थ बतलाते हुए पोप ने कहा कि कई चीजों में से एक है कि उन्हें कैदखानों में जाना है और वहाँ के कैदियों को सांत्वना का तेल एवं आशा की अंगूरी प्रदान करना है जिसको भले समारितानी ने छोड़ दिया है। पोप ने उन्हें न केवल बाहरी कैदखानों में जाने बल्कि उन बंद स्थानों में भी जाने की सलाह दी, जहाँ हमारे समाज के स्त्री और पुरूष विचारधाराओं, नैतिकताओं, शोषण, निराशा, अज्ञानता और ईश्वर के प्रति विस्मृति से बने कैदखानों में बंद हैं।

पोप ने कहा कि येसु हमसे यही कहते हैं कि हम अभिषेक पाते हैं ताकि उन लोगों को मुक्त कर सकें जो अनजाने ही बंधनों से जकड़े हुए हैं।

भावी पुरोहित होने की तैयारी हेतु चिंतन
सेमिनरी के छात्रों को पोप ने बतलाया कि सुसमाचार लेखक संत लूकस अध्याय 4 में भविष्य के पुरोहितों को तैयारी हेतु एक सुंदर चिंतन देते हैं : वे हमें पवित्र आत्मा के प्रति विनम्र बनने, ईश्वर से मिलने के लिए निर्जन प्रदेश (एकांत स्थल) बनाने, अपने आप को उन बहुत सी चीजों से खाली करने की बात करते हैं जिन्हें हम बोझ के रूप में ढोते हैं। वे हमें प्रोत्साहित करते हैं कि हम मूर्तिपूजा की प्रेरिताई के प्रलोभन का सामना करने से न डरें, जहाँ हम खुद केंद्र में होते, भौतिक शक्ति या प्रशंसा की तलाश करते हैं।   

सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि येसु अपने गाँव नाजरेथ गये जहाँ दुनिया की नजर में वे हमारे समान केवल जोसेफ के बेटे थे।

लोगों से अलग नहीं
पोप ने कहा कि उसी तरह, सेमिनरी के छात्रों को अपने मूल को नहीं भूलना चाहिए, उन्हें याद रखना चाहिए कि हम लोगों के बेटे हैं। इस तरह संत लूकस हमें सिखलाते हैं कि हम लोगों के बीच अपने को अलग नहीं कर सकते खासकर, जब वह नवागंतुक हों या हमारा दुश्मन ही क्यों न हों। क्योंकि ईश्वर की नजरों में हम सभी बच्चे हैं। जब हम अपने भाई को देखते हैं, तो हम उसमें प्रभु द्वारा दिए गए अनुग्रह को ग्रहण करने के लिए खुलेपन को पहचानते हैं।

दूसरी ओर, पोप ने कहा कि येसु उन लोगों से दुःखी हुए जो अपने हृदय की कठोरता के कारण बुरी आत्मा के चंगुल में फंसी महिला को मुक्त करने हेतु येसु की चिंता को नहीं समझ पाये। (लूक 13:16) उन्होंने कहा कि उनके विपरीत वे “हमेशा आशीर्वाद देने, स्वतंत्र करने के लिए तैयार रहें और जब लगे कि जिन हाथों को अभिषिक्त किया गया है वे लकवाग्रस्त हैं, तो उन्हें आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ाएं जैसा कि येसु ने संत मारकुस रचित सुसमाचार में अपंग व्यक्ति के साथ किया।

येसु का जीवन  
येसु ने क्रूस पर यही किया, अपने हृदय और अपनी भुजा पर हमारे घाव को अंकित किया, अपने प्रेम से हमारी मृत्यु को नष्ट किया और अपने दुख-दर्द से उस खाई को पार किया जो हमें ईश्वर से अलग करती थी। संत पापा ने सभी सेमिनरी छात्रों को प्रोत्साहन दिया कि जिस प्रेरिताई के लिए प्रभु ने उन्हें चुनकर, उनपर अपनी ईश्वरीय दया बरसाई है, उसे निभाने में वे साहसी, निस्वार्थ और अथक बनें।

और अंत में, उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद देते हुए माता मरियम को सिपूर्द किया।