म्यांमार भूकंप: सहायता की सख्त ज़रूरत

म्यांमार में आए विनाशकारी भूकंप ने पहले से ही गंभीर मानवीय संकट को और भी बदतर बना दिया है। बर्मा कैंपेन यूके के निदेशक ने पहले से ही आंतरिक संघर्ष से जूझ रहे देश में सहायता प्रतिबंधों से जुड़ी जटिल वास्तविकता को साझा किया।

दक्षिण-पूर्व एशिया से आने वाली तस्वीरें पूरी तरह से तबाही का मंजर दिखाती हैं। शुक्रवार को म्यांमार और थाईलैंड में आए भूकंप से हुए विनाश का स्पष्ट अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन यह तय है कि स्थिति भयावह है और मानवीय सहायता की बहुत जरूरत है।

7.7 तीव्रता के भूकंप और उसके बाद आए चार झटकों ने म्यांमार को उसके मध्य क्षेत्रों मांडले और नेपीडॉ से लेकर दक्षिणी सागाइंग राज्य तक हिलाकर रख दिया। अस्पतालों सहित बुनियादी ढांचे का विनाश और घरों को हुए व्यापक नुकसान ने समुदायों को झकझोर कर रख दिया है। राजनीतिक अस्थिरता और गृहयुद्ध से ग्रसित देश में, जहाँ लाखों लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं और चल रहे संघर्ष के कारण विस्थापित हुए हैं, ऐसी तबाही अकल्पनीय क्षति है।

कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा
बर्मा कैंपेन यूके के निदेशक मार्क फ़ार्मानर ने वाटिकन न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में आपदा से जुड़ी जटिलताओं की पुष्टि की। उन्होंने कहा, "हमें अभी भी देश के विभिन्न हिस्सों से समाचार मिल रहे हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा है।" उन्होंने कहा कि इसका असर सबसे बड़े शहरों से लेकर सबसे दूरदराज के गांवों तक महसूस किया गया है। थाईलैंड में बांस के घरों या शरणार्थी शिविरों में रहने वाले लोगों सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। फ़ार्मानर नुकसान की पूरी सीमा का आकलन करने में आने वाली चुनौतियों को कम नहीं आंकते। वे राजनीतिक स्थिति का वर्णन करते हैं, जिसमें बर्मी सेना ने लंबे समय से सूचनाओं पर कड़ा नियंत्रण बनाए रखा है। फ़ार्मानर ने कहा, "सेना कभी भी सटीक आंकड़े जारी नहीं करेगी", हालाँकि, अब देश के बड़े हिस्से अब उनकी पहुँच में नहीं हैं, और "अब विभिन्न क्षेत्रों में कई प्रशासन काम कर रहे हैं, इस संकट का प्रभावी ढंग से जवाब देना एक बड़ी चुनौती है।"

कलीसिया का योगदान  
कलीसिया जो अक्सर जमीनी स्तर पर काम करती है, भूकंप की प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। फ़ार्मानर बताते हैं, "स्थानीय कलीसिया को एक सुविधा यह है कि सेना उनके आवागमन पर इतने कड़े प्रतिबंध नहीं लगाती है, इसलिए उनके पास उन क्षेत्रों तक पहुँचने की क्षमता है जो अंतर्राष्ट्रीय सहायता एजेंसियों के लिए अवरुद्ध हो सकते हैं। छोटे, समुदाय-आधारित संगठन संभवतः सहायता पहुँचाने में सबसे प्रभावी होंगे जहाँ इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।" फ़ार्मानर भूकंप के दुखद समय पर भी प्रकाश डालते हैं, जो रमज़ान के अंत में शुक्रवार की नमाज़ के दौरान आया था। फ़ार्मानर कहते हैं, "भूकंप आने पर मस्जिदें भरी हुई थीं, और चूँकि सेना ने मस्जिदों के निर्माण और मरम्मत पर प्रतिबंध लगा दिया था, इसलिए इनमें से कई इमारतें संरचनात्मक रूप से मज़बूत नहीं थीं।" "हम मुस्लिम समुदाय के बीच महत्वपूर्ण हताहतों की रिपोर्ट सुन रहे हैं, अकेले एक मस्जिद में संभवतः 50 मौतें हुई हैं"। उन्होंने कहा कि वे अभी भी इस खबर की पुष्टि का इंतज़ार कर रहे हैं, "स्थिति बहुत चिंताजनक है।"

संकट से निपटने का प्रयास जारी
अभी भी आपदा का पूरा स्वरूप सामने आ रहा है, म्यांमार का राजनीतिक परिदृश्य, जो सैन्य शासन और जातीय संघर्षों से चिह्नित है, अंतर्राष्ट्रीय सहायता प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करता है।

संत पापा फ्राँसिस ने भूकंप के पीड़ितों के लिए प्रार्थना की है और बचाव कर्मियों के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है जो यथासंभव अधिक से अधिक लोगों की जान बचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं और हर संभव प्रयास कर रहे हैं। जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय बारीकी से देख रहा है, उम्मीद बनी हुई है कि रचनात्मक समाधान और मजबूत स्थानीय नेटवर्क सबसे कमजोर लोगों तक सहायता पहुंचाने, नुकसान को सीमित करने और इस त्रासदी से सबसे अधिक प्रभावित लोगों की रक्षा करने के लिए मिलकर काम करने में सक्षम होंगे।