जयन्ती, इतिहास और इसकी जड़ें पवित्र बाईबिल में

बाइबिल के विद्वान कार्डिनल जानफ्रांको रवासी, लोस्सेवातोरे रोमानो में पवित्र वर्ष (जयन्ती) की उत्पत्ति को पुराने नियम से लेकर सुसमाचार तक याद करते हैं।

"जुबली" के मूल का पता मेढ़ों के सींग की ध्वनि से लगाने की प्रथा है: प्रतिध्वनि, येरूसालेम से हवा को चीरती हुई आई और एक गाँव से दूसरे गाँव तक पहुँच गई। हिब्रू में बाईबिल के पुराने व्यवस्थान में योबेल शब्द 27 बार आता है। इसमें बेशक छः बार मेढ़ा के सींग के लिए किया गया है। मूल संदर्भ लेवी ग्रंथ के अध्याय 25 में मिलता है। यह एक जटिल पाठ है जिसको लेवी के पुत्रों की पुस्तक में डाला गया है जहाँ येरूसालेम मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों का जिक्र है।

योबेल शब्द मुख्य रूप से अध्यय 25 में प्रतिध्वनित होता है, लेकिन अध्याय 27 में भी पाया जाता है। प्राचीन बाईबिल के ग्रीक संस्करण में योबेल का अनुवाद जुबली या जयन्ती वर्ष न कर, व्याख्यात्मक रूप से इसे “अफेसिस” किया गया है ग्रीक में जिसका अर्थ है “माफी”, छुटकारा या क्षमादान। ये शब्द येसु के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गये, क्योंकि वे जयन्ती के बारे नहीं बोलते, लेकिन अफेसिस शब्द का प्रयोग करते हैं। वास्तव में, हम नये व्यवस्थान में जयन्ती शब्द ही नहीं पाते हैं। इस तरह प्राचीन बाईबिल अनुवादक एक अत्यंत पवित्र उपासना की वास्तविकता से लेकर प्रायश्चित के तथ्य पर पहुँचे। (जुबली वर्ष का उत्सव जो किप्पुर के समारोह के संबंध में, यानी इज़राइल के पाप के प्रायश्चित के संबंध में, एक बहुत ही विशिष्ट तिथि पर मेढ़े के सींग की आवाज़ के साथ शुरू होता है अर्थात्, इसराइल के पाप का प्रायश्चित) एक नैतिक, अस्तित्व संबंधी अवधारणा के लिए : ऋणों की माफी, दासों की मुक्ति थी (जो जुबली की सामग्री थी)। इस तरह जयन्ती का विषय धार्मिक अनुष्ठान की भाषा से नैतिक सामाजिक अनुभव में बदल गया। यह तत्व आज भी प्रासंगिक है कि जयंती को केवल एक बुनियादी उत्सव या अनुष्ठान तक सीमित न किया जाए बल्कि इसे ख्रीस्तीय जीवन के प्रतिमान में बदला जाए। कुछ विद्वानों का मानना है कि योबेल शब्द मेढ़े के सींग की ध्वनि से नहीं बल्कि हिब्रू मूल “जबल” से जुड़ा है, जिसका अर्थ "स्थगित करना, वापस करना, दूर भेजना है।" हालाँकि, व्याख्या थोड़ी मजबूर प्रतीत होती है क्योंकि "भेजना" मुक्ति का संकेत प्रतीत नहीं होता, इसमें उपरोक्त ग्रीक शब्द एफेसिस भी नहीं है, जिसपर स्वयं येसु ने विशेष जोर दिया है। अन्य दार्शनिकों ने भी कई स्पष्टीकरण पेश किए हैं, लेकिन यह माना जा सकता है कि प्रारंभिक तत्व अनुष्ठान है। लेकिन दूसरी ओर ग्रीक अनुवाद को भी नहीं भूलना चाहिए : यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि एक ऐसा तत्व है जिसका लोगों के अनुभव पर गहरा प्रभाव है।

इस परिचय के बाद, हम कुछ मौलिक जयंती विषयों को चित्रित करने का प्रयास करेंगे जो कुछ मायनों में एक-दूसरे से जुड़े हुए दिखाई देते हैं।

भूमि का विश्राम
बाइबिल अनुसार, पहला मूल विषय भूमि का "विश्राम" है। विश्राम योजना के अनुसार, जिसमें समय को बाइबिल परंपरा के भीतर मापा जाता था, पृथ्वी को पहले से ही हर सात साल में आराम करने की अनुमति दी गई थी। लेवी ग्रंथ 25 के संकेतों के अनुसार, पृथ्वी को जुबली वर्ष में भी आराम करना था, जो वर्षों के सात सप्ताहों के बाद, यानी पचासवें वर्ष में होता था। यह प्रतिबद्धता अव्यवहारिक और लागू करने में कठिन प्रतीत होती है। पृथ्वी को एक वर्ष के लिए आराम देना संभव था, विशेषकर, प्राचीन निकट पूर्व जैसी सभ्यता में, जहाँ ज़रूरतें हमारी तुलना में बहुत कम थीं और जीवन बहुत अधिक मितव्ययी था।

भूमि को आराम देने का अर्थ है उसपर बीज नहीं बोना और न ही उसका फसल काटना। यह विकल्प, एक ओर, हमें बतलाता है कि भूमि एक उपहार है, क्योंकि, भले ही कम मात्रा में, यह अभी भी उपज जरूर देती है। इसके फल छोटे हो सकते हैं, लेकिन उनमें कमी नहीं होगी। इस प्रकार हमें याद दिलाया जाता कि प्रकृति का चक्र न केवल मनुष्य के कार्य पर बल्कि निर्माता पर भी निर्भर करता है।

दूसरी ओर, इस अवधि में निजी और जनजातीय संपत्ति पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया गया क्योंकि भूमि से जो भी उपजता था घेरे या सीमा पर ध्यान दिये बिना उसे हर कोई ले सकता था। व्यवहारिक तौर पर, यह वस्तुओं के सार्वभौमिक गंतव्य की मान्यता है जिसके अनुसार सब कुछ सभी के लिए उपलब्ध है। यह विषय आज के समाज में भी बहुत महत्व प्राप्त कर सकता है।

मानवता को ऐसे नहीं दर्शाया जा सकता, जहाँ एक खाने की मेज पर कुछ लोगों के पास खाने के ढेर सारे समान हों, और दूसरी तरफ बाकी लोग खड़े होकर केवल कुछ टुकड़ों पर संतोष कर लेने की कोशिश कर रहे हों। जबकि किसी भी निजी संपत्ति से पहले अब वस्तुओं की सार्वभौमिक उपलब्धता का कोई विचार नहीं रह गया है। इस प्रकाश में, पोप फ्राँसिस के विश्वपत्र लौदातो सी द्वारा इस संबंध में प्रस्तावित चिंतन का उल्लेख करना सुझावात्मक है।