पोप : विश्व को ख्रीस्तीय आशा की जरूरत
पोप फ्रांसिस ने ईशशास्त्रीय गुण आशा पर चिंतन करते हुए इसे विश्व के लिए अति आवश्यक घोषित किया।
पोप फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
हमने अपने विगत धर्मशिक्षा माला में ईशशास्त्रीय गुणों विश्वास भरोसा और प्रेम पर चिंतन शुरू किया है। अपने पिछले प्रसारण में हमने विश्वास पर चिंतन किया आज हम आशा पर विचारमंथन करेंगे। संत पापा ने कहा “आशा ईशशास्त्रीय गुण है जिसके अनुरूप हम ईश्वरीय राज्य और अनंत जीवन रूपी अपनी खुशी की चाह रखते हैं। हम अपने विश्वास को ख्रीस्त की प्रतिज्ञाओं में बनाये रखते और अपनी शक्ति पर नहीं बल्कि पवित्र आत्मा की शक्ति से कृपा स्वरुप अपने लिए आने वाली सहायता पर निर्भर करते हैं।” इन शब्दों के द्वारा हम अपने में इस सुनिश्चितता पर बनें रहते हैं कि आशा हमारे हृदय में दिया जाने वाले उत्तर है, जब हम अपने में गहन सवालों को उठता पाते हैं, “मैं क्या होऊंगाॽ मेरी जीवन यात्रा का उद्देश्य क्या हैॽ इस दुनिया का लक्ष्य क्या हैॽ”
हम सभों ने इस बात का अनुभव किया है कि इन सवालों का नकारात्मक उत्तर हममें उदासी उत्पन्न करती है। यदि इस जीवनयात्रा का कोई अर्थ नहीं है, यदि शुरू और अंत में हमें कुछ प्राप्त नहीं होता, तो हम अपने में यह सावल पूछते हैं तो हमें जीवन क्यों जीना चाहिएॽ ऐसा होने पर मानव में निराशा, हर किसी चीज के संबंध में एक व्यर्थहीनता उत्पन्न होती है। और बहुत कोई इसका विरोध कर सकते हैं, “मैंने निष्ठा में एक विवेकपूर्ण, न्यायप्रिय, मजबूत, संयमी जीवन जीया है। मैं एक विश्वासी नर और नारी रही हूँ... मेरे इस संघर्ष का क्या फायदा हैॽ” संत पापा ने कहा कि यदि हम अपने में आशा की कमी को पाते तो अन्य दूसरे सारे गुण अपने टूटने की जोखिम में पड़ जाते और वे राखों के बदलते नजर आते हैं। यदि कल हमारे लिए विश्वासनीय नहीं होता, यदि कोई चमकता क्षितिज्ञ नहीं होता तो कोई सिर्फ यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि पुण्य एक व्यर्थ का प्रयास है। “केवल जब भविष्य एक सकारात्मक निश्चित सच्चाई प्रतीत होती तो ऐसी परिस्थिति में हम वर्तमान को जीने के लिए अपने को सक्षम पाते हैं।”
पोप फ्रांसिस ने कहा कि ख्रीस्तीय आशा उनकी अपनी योग्यता में निहित नहीं है। यदि वे भविष्य पर विश्वास करते तो इसका कारण यह है कि ख्रीस्त मरे और पुनर्जीवित होकर हमें अपना आत्मा प्रदान किया है। जैसे कि संत पापा बेनेदिक्त 16वें अपने विश्व प्रेरितिक पत्र स्पे स्लभी में कहते हैं, “मुक्ति हमें इस अर्थ में मिली है कि हम आशा, निष्ठामय भरोसा गुणों के आधार पर वर्तमान का समाना कर सकते हैं।” इस अर्थ में, पुनः हम कह सकते हैं आशा अपने में एक ईशशास्त्रीय गुण है, यह हमारे द्वारा उत्पन्न नहीं होता है, यह कोई हठ नहीं है जिसके बारे में हम अपने को समझाने की चाह रखते हैं, बल्कि यह एक उपहार है जो सीधे ईश्वर से आती है।
बहुत से संदेह करने वाले ख्रीस्तीयों को, जो अपने में पूरी तरह आशा से पुनर्जीवित नहीं थे, संत पौलुस ने उनके समक्ष ख्रीस्तीय अनुभव के नये तर्क को प्रस्तुत किया-“यदि मसीह नहीं जी उठे, तो आप लोगों का विश्वास व्यर्थ है और आप अब तक अपने पापों में फंसे हैं। इतना ही नहीं, जो लोग मसीह में विश्वास करते हुए मरे हैं, उनका भी विनाश हुआ है। यदि मसीह पर हमारा भरोसा इस जीवन तक ही सीमित है, तो हम सब मनुष्यों में से अधिक दयनीय हैं।” (1.कुरू.15.17-19)। उन्होंने मानो यह कहा, यदि आप ख्रीस्त के पुनरूत्थान पर विश्वास करते हैं तो आप इस निश्चितता को वहन करते हैं कि कोई हार और कोई मृत्यु सदैव के लिए नहीं है। लेकिन यदि आप ख्रीस्त के पुनरूत्थान पर विश्वास नहीं करते तो सारी चीजें खोखली हो जाती हैं, यहा तक की प्रेरितों का प्रवचन देना भी।
आशा एक सद्गुण है जिसके विरूद्ध हम सदैव पाप करते हैं, हमारे बुरे विषाद में, हमारी उदासी के समय में जब हम यह सोचते कि अतीत की खुशी हमारे लिए सदैव के लिए जमींदोज हो गई है। हम आशा के विरूध पाप करते हैं जब हम अपने पापों के कारण हताश-निराश हो जाते हैं। हम इस बात को भूल जाते हैं कि ईश्वर करूणावान और हमारे हृदयों के बढ़कर हैं। संत पापा ने इस बात पर जोर देते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो हम इस बात को न भूलें कि ईश्वर सभी चीजों को क्षमा करते हैं वे हमें सदैव क्षमा करते हैं। यह हम हैं जो उनसे क्षमा की याचना करते हुए थक जाते हैं लेकिन वे हमें सदैव माफ करते हैं। हम आशा के विरूध पाप करते हैं जब हममें व्याप्त पतझड़ बसंत को हमसे खारिज कर देता है जहाँ हम ईश्वर के प्रेम को अनंत आग के रुप में खत्म होता पाते हैं, इस तरह हममें वह शक्ति समाप्त हो जाती जिसकी बदौलत हम निर्णयों को लेते हुए जीवन भर अपने में समर्पित होते हैं।
विश्व को आज इस ख्रीस्तीय सद्गुण की अति आवश्यकता है। जैसे कि इसे धैर्य की जरुरत है जो सदैव आशा के निकट संलग्न होकर चलती है। धैर्यवान व्यक्ति अच्छाई को बोने वाले होते हैं। वे अपने हठ में शांति की चाह रखते हैं, और यहाँ तक कि कुछ जो अति शीघ्रता में अपने लिए, सीधे तौर पर सारी चीजों की कामना करते हैं धैर्य में बने रहने के योग्य होते हैं। यहाँ तक की हमारे इर्द-गिर्द बहुत से लोग भ्रम के शिकार हैं, वे जो आशा से प्रेरित होते और धैर्य में बने रहते हैं अपने जीवन के अंधकारमयी रातों के पार जाने के योग्य होते हैं। आशा और धैर्य एक साथ चलते हैं।