पोप : विश्वास, भरोसा और प्रेम आत्म-निर्भरता की औषधि

पोप फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में कार्डिनल और ईशशास्त्रीय सद्गुणों पर चिंतन व्यक्त किया।

पोप फ्रांसिस ने 24 अप्रैल, बुधवार को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व भर से आये हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग आमदर्शन समारोह में भाग लिया। पोप ने सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।
   
हमने अपने विगत सप्ताहों में विशिष्ट सद्गुणों- धैर्य, न्याय, निष्ठा और सहनशीलता पर विचार मंथन किया। ये हमारे लिए विशिष्ट गुण हैं। जैसे कि हमने इन चार सद्गुणों पर कई बार जोर दिया है, ये चारों गुण अति प्राचीन काल से ही ज्ञान से संबंधित हैं जो ख्रीस्तीयता के पहले से प्रचलित हैं। ख्रीस्त के पहले से ही ईमानदारी को सामाजिक उत्तरादियत्व के रुप में उल्लेख किया गया है, विवेक को कार्य की नियमावली, साहस को जीवन का एक मूलभूत आधार जो सभों की भलाई के लिए है तो वहीं संयम को जरूरी मापदंड स्वरुप निरूपित किया गया है जिससे अति पर नियंत्रण हो सके। मानव जाति की यह विरासत ख्रीस्तयता से प्रतिस्थापित नहीं हुई है बल्कि विश्वास में इनका विकास हुआ है वे परिशुद्ध और संघटित हुए हैं।

अच्छाई की खोज   
इस भांति यदि हम देखें, संत पापा ने कहा कि हर नर और नारी के हृदय में अच्छाई की खोज की एक योग्यता है। हमें पवित्र आत्मा से नवाजा गया है, जो उसे ग्रहण करते हैं वे अपने जीवन में अच्छाई और बुराई के बीच स्पष्ट रुप से अंतर स्थापित कर सकते हैं, जिससे वे बुराई का परित्याग कर अच्छाई से संयुक्त रहें, और ऐसा करते हुए वे अपने विश्वास में पूर्णतः का एहसास कर सकें।

कार्डिलन गुण जीवन की “धुरी”
लेकिन जीवन में पूर्णतः की ओर यात्रा, जो हर व्यक्ति का लक्ष्य है, ख्रीस्तीय अपने में एक विशेष खुशी का अनुभव करते हैं जो येसु ख्रीस्त की आत्मा से सहायता स्वरुप आती है। यह हमारे लिए तीन अन्य ख्रीस्तीय विशिष्ट सद्गुणों से जुड़ा है जिसकी चर्चा हम बहुधा एक साथ नये विधान के लेखों में पाते हैं। ये मूलभूत गुण जो ख्रीस्तीयों के जीवन की विशेषताओं को प्रकट करते हैं विश्वास, भरोसा और प्रेम है। संत पापा फ्रांसिस ने इन तीन गुणों को एक साथ मिलकर घोषित करने का आहृवान किया। ख्रीस्तीय लेखकों ने इन्हें “ईशशास्त्रीय” गुणों की संज्ञा दी, जैसे कि हम उन्हें प्राप्त करते और ईश्वर के संग एक संबंध में जीते हैं। उन्हें इस दूसरे से अलग निरूपित करने हेतु वे उन्हें “कार्डिनल” सद्गुणों की संज्ञा देते हैं क्योंकि वे एक अच्छे जीवन की “धुरी” का निर्माण करते हैं। ये तीन गुण हमें बपतिस्मा में पवित्र आत्मा के द्वारा प्राप्त होता है। पहला और दूसरा, ईशशास्त्रीय और कार्डिनल गुण, इस भांति बहुतेक रुपों में सुसंगठित तरीके से चिंतनों के रुप में रखा गया है जिसके फलस्वरुप वे सप्तऋषि का निर्माण करते हैं, जो बहुधा सात महापापों की सूची से विपरीत है। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा ईशशास्त्रीय सद्गुणों के कार्यो को इस रूप में परिभाषित करती है- “ईशशास्त्रीय सद्गुण ख्रीस्तीय नौतिक क्रियाकलापों की आधारशिला हैं, वे उन्हें सजीव रुप देती और उसे विशेष संरचना प्रदान करती हैं। वे हमें शिक्षा देतीं और नैतिक जीवन को सजीव बनाती हैं। ये गुण ईश्वर के द्वारा विश्वासियों के हृदय में अंकित की गई हैं जिससे वे उनकी संतानों की तरह व्यवहार करते हुए अनंत जीवन को प्राप्त कर सकें। विश्वास, भरोसा और प्रेम ये तीनों मनुष्य की क्षमताओं में पवित्र आत्मा की उपस्थिति और उनके कार्य की प्रतिज्ञा हैं।”

कार्डिनल गुणों की जोखिम
पोप ने कहा कि वहीं कार्डिलन सद्गुणों की जोखिम हमारे लिए यह है कि इसके द्वारा नर और नारियाँ अपने में सहासिक कार्य करते हैं, लेकिन वे अपने में अकेले, अलग रहते हैं जबकि ईशशास्त्रीय गुणों का महान उपहार हमें पवित्र आत्मा में जीवनयापन करने को अग्रसर करता है। ख्रीस्तीय अपने में कभी भी अकेला नहीं है। वह अपने में भला कार्य अपनी महानतम व्यक्तिगत प्रयास से नहीं लेकिन एक नम्र शिष्य के रुप में, अपने गुरू येसु के पीछे चलते हुए उसका अनुसरण करता है। ईशशास्त्रीय सद्गुण आत्म-निर्भरता के लिए महान औषधि हैं। कितनी बार कुछ नैतिक रूप से दोषरहित नर और नारियाँ अपने जानने वालों की नज़र में अभिमानी और अहंकारी होने की जोखिम में पड़ जाते हैं। इस खतरे के संबंध में येसु हमें सचेत करते और सुसमाचार में अपने शिष्यों को सलाह देते हैं- “तुम्हें भी, सभी आज्ञाओं का पालन करने के बाद कहना चाहिए, “हम अयोग्य सेवक भर हैं, हमने अपना कर्तव्य मात्र पूरा किया है”(लूका. 17.10)। अहंकार एक शक्तिशाली विष है-इसकी एक बंदू ही जीवन की सारी अच्छाइयों को नष्ट करने के लिए काफी है। एक व्यक्ति जो हजारों तरह के भले कार्यों के करता है, अपने में लोगों की प्रशंसा को धारण करता है, यदि उसने उन्हें सिर्फ अपने लिए किया है, अपने को ऊंचा उठाने के लिए, तो क्या वह एक सद्गुणी व्यक्ति हो सकता हैॽ संत पापा ने कहा, नहीं।

अच्छाई लक्ष्य मात्र नहीं बल्कि साधन बनें
अच्छाई केवल लक्ष्य नहीं है बल्कि यह एक साधन भी है। अच्छाई के लिए बहुत विवेक की आवश्यकता होती है, इसके लिए नम्रता अति जरुरी है। इससे भी बढ़कर यह हमें अपने अंहकार को दूर करने की माँग करती है जो कभी-कभी भार के रुप में हममें व्याप्त रहता है। जब “मैं” सारी चीजों का केन्द्र बिन्दु बन जाता तो यह सारी चीजों को बिगाड़ देता है। यदि हम जीवन में सारे कार्यों को अपने लिए करते हैं, तो क्या यह प्रेरणा अति महत्वपूर्ण होती हैॽ