पोप लियोः ईश्वर के प्रति निष्ठावान बने रहें

पोप लियो ने कस्तेल गंदोल्फो के प्रांगण में विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग देवदूत प्रार्थना के पूर्व दिये गये अपने संदेश में ईश्वर के प्रति निष्ठावान बने रहने का आहृवान किया।

पोप ने कस्तेल गंदोल्फो के प्रांगण में विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। उन्होंने सभी का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों शुभ रविवार।

आज का सुसमाचार हमें एक चुनौतीपूर्ण बात को प्रस्तुत करता है जहाँ हम येसु को कठोर चिन्हों और खुले रुप में अपने शिष्यों और अनुयायियों को अपनी प्रेरिताई के बारे में शिक्षा देते हुए सुनते हैं, जो फुलों की सेज नहीं बल्कि विरोध की निशानी है।

येसु का अपने ऊपर घटित घटनाओं का पूर्वाभास
इस भांति,येसु उन बातों का पूर्वाभास देते जिसका सामना उन्हें येरुसालेम में करना पड़ेगा, जहाँ उनका विरोध किया जायेगा, उनकी गिरफ्तारी होगी, उन्हें बेईज्जत, मारा-पीटा, क्रूस पर ठोका जायेगा, जब उनके प्रेम और न्याय के संदेश का तिरस्कार किया जायेगा, जब जनता के नेता उनके उपदेश पर क्रूरता से प्रतिक्रिया करेंगे। उससे भी बढ़कर संत लूकस जिन समुदायों के लिए लिखते हैं वे भी उन बातों का अनुभव कर रहे होते हैं। जैसा कि प्रेरित चरित हमें बतलाता है, वे शांतिपूर्ण समुदाय थे, जो अपनी कमजोरियों के बावजूद,ईश्वर के प्रेम संदेश को सर्वोत्तम रूप से जीने का प्रयास करते थे (प्रेरित 4:32-33)। फिर भी, वे उत्पीड़न सहना पड़ रहा था।

अच्छा होना का प्रत्युत्तर 
पोप ने कहा कि ये सारी चीजें हमें इस बात की याद दिलाती है कि अच्छा होने या करने का प्रत्युत्तर सदैव सकारात्मक नहीं होता है। इसके विपरीत, इसके सुन्दरता उन्हें विचलित करती है जो उसका स्वागत नहीं करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि एक व्यक्ति को घोर प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है, यहाँ तक की अभद्रता और अत्यचार भी। सच्चाई में कार्य करने की कीमत चुकानी पड़ती है क्योंकि विश्व में वे लोग हैं जो झूठ और शैतान का चुनाव करते हैं, वे परिस्थिति का लाभ उठाते हैं, बहुधा अच्छे लोगों के कार्य में बाधा लाया जाता है।

शहीदों का साक्ष्य
येसु, यद्यपि येसु हमें मदद करते हुए इस बात के लिए आमंत्रित करते हैं कि हम ऐसी मानसिकता के आगे न झुकें और न ही उनके अनुरूप ढ़लें, बल्कि अपने और सभी की भलाई के लिए कार्य करते जायें, यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जो हमें कष्ट देते हैं। वे हमारा आह्वान करते हैं कि हम बुराई का बदला प्रतिशोध से न लें, बल्कि प्रेम में सत्य के प्रति वफ़ादार रहें। शहीदों ने अपने विश्वास के लिए अपना खून बहाकर इसकी गवाही दी। हम भी, विभिन्न परिस्थितियों और तरीकों से, उनके उदाहरण का अनुसरण कर सकते हैं।

पोप ने अच्छे माता-पिता का उदाहरण प्रस्तुत किया जिन्हें अपने बच्चों को सही सिद्धांतों के अनुसार शिक्षित करने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। अतः उन्हें अपनी संतानों का सुधार करते हुए “नहीं” कहने की जरुरत होती है जो उन्हें कष्ट देता है। यही बात उस शिक्षक के लिए भी होती है जो छात्रों को सही ढंग से तैयार करना चाहता है, या किसी पेशेवर, धार्मिक या राजनेता के लिए, जो अपनी प्रेरिताई को ईमानदारी से निभाना चाहता है। यह उन सभी के लिए भी खरा उतरती है जो सुसमाचार की शिक्षाओं के अनुसार अपनी ज़िम्मेदारियों को लगातार निभाने का प्रयास करते हैं।

अंतियोख के संत इग्नासियुस
इस सदर्भ में, अंतियोख के संत इग्नासियुस को रोम की ओर यात्रा करने के क्रम में शहीद होना पड़ा, जो रोम शहर के ख्रीस्तीयों के लिए लिखते हैं, “मैं नहीं चाहता कि तुम मनुष्यों को खुश करो, बल्कि ईश्वर को खुश करो।” वे आगे कहते हैं, “मेरे लिए पृथ्वी के सीमांतों तक राज करने से बदले ईश्वर के खातिर मरना बेहतर है।”

आइये हम सब मिलकर शहीदों की रानी मरियम से प्रार्थना करें कि वे हमें हर परिस्थिति में अपने पुत्र के प्रति वफादार और साहसी साक्षी बनने में मदद करें, तथा विश्वास के लिए कष्ट सह रहे हमारे भाइयों और बहनों के लिए सहारा बनाये।