पोप: मध्य पूर्व में युद्ध रोकें, इसे फैलने न दें

रमजान के समापन पर मुसलमानों को दिए एक संदेश में, पोप फ्राँसिस ने फिलिस्तीन, इज़राइल, सीरिया और लेबनान में शांति की अपनी इच्छा व्यक्त की है और सद्भावना वाले सभी पुरुषों और महिलाओं से अपील की है कि वे "हथियारों की होड़ की अशुभ हवाओं से प्रेरित आक्रोश की आग को भड़कने न दें।" उन्होंने नेताओं से लड़ाई रोकने और युद्ध के संभावित प्रसार को रोकने का आह्वान किया है।
वाटिकन न्यूज

मुसलमानों के उपवास, प्रार्थना, चिंतन और समुदाय के रूप में मनाए जानेवाले महीने रमजान के अंत में अपने  एक संदेश में, पोप फ्रांसिस ने इज़राइल और फिलिस्तीन में चल रहे युद्ध और सीरिया, लेबनान और पूरे क्षेत्र में हिंसा के लिए अपना दुःख प्रकट किया। अपनी बात दोहराते हुए कहा कि "युद्ध हमेशा और सिर्फ एक हार है: एक ऐसा रास्ता जो कहीं नहीं ले जाती" और जो सभी आशाओं को दबा देती है।

12 अप्रैल को अल अरेबिया अंतरराष्ट्रीय अरबी समाचार टेलीविजन चैनल को संबोधित एक पत्र में पोप ने अपने मुस्लिम भाइयों और बहनों को बधाई देने के साथ साथ "मध्य पूर्व की धन्य भूमि में वर्तमान में बहाए जा रहे खून" के लिए दुःख के शब्द भी लिखे हैं।

यह देखते हुए कि पवित्र इस्लामी महीने रमज़ान का अंत इस वर्ष पास्का महापर्व के तुरंत बाद हुआ, उन्होंने कहा कि दोनों अवसर विश्वासियों को अपनी आँखें स्वर्ग की ओर उठाने और "दयालु एवं सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा करने" के लिए प्रेरित करते हैं, जो पृथ्वी को तबाह करनेवाली मिसाइलों से होनेवाली तबाही के बिल्कुल विपरीत है।

पोप ने लिखा, “ईश्वर शांति हैं और वे शांति चाहते हैं। जो लोग उन पर विश्वास करते हैं वे युद्ध को अस्वीकार करने में असफल नहीं हो सकते, जो समाधान नहीं बल्कि केवल शत्रुता बढ़ाता है, युद्ध हमेशा और सिर्फ एक विफलता है: यह कहीं नहीं जानेवाली सड़क है; यह कोई नया रास्ता नहीं खोलता बल्कि सारी आशाओं को दबा देता है।"

फिलिस्तीन और इज़राइल में संघर्ष के लिए अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए, उन्होंने गाजा पट्टी में तत्काल युद्धविराम के लिए अपनी अपील दोहराई, जहां उन्होंने कहा, एक मानवीय आपदा सामने आ रही है।

उन्होंने कहा, "अत्यधिक पीड़ा झेल रहे फ़िलिस्तीनी लोगों तक सहायता पहुँचाने की अनुमति दी जाए, और अक्टूबर में बनाए गए बंधकों को रिहा किया जाए!"

पोप ने "युद्धग्रस्त सीरिया, लेबनान और संपूर्ण मध्य पूर्व" की याद करते हुए कहा, “आइए हम हथियारों की होड़ की घातक हवाओं के कारण आक्रोश की आग को फैलने न दें! आइए हम युद्ध को फैलने न दें! हम बुराई की जड़ता को समाप्त करें!”

पोप ने कहा कि वे परिवारों, युवाओं, श्रमिकों, बुजुर्गों और बच्चों के बारे सोचते हैं कि उनके दिलों में, "आम लोगों के दिलों में, शांति की बहुत इच्छा है।"

"हिंसा फैलने के बीच, उनकी आंखों से आंसू बहते हैं और उनके होठों से एक ही शब्द निकलता है: 'बस'।"
पोप फ्रांसिस ने कहा, “मैं खुद दोहराता हूँ 'बस!' "उन लोगों के लिए जो राष्ट्रों पर शासन करने की गंभीर जिम्मेदारी निभाते हैं: बहुत हो गया!" रुक जाओ!"

"कृपया, हथियारों के टकराव का अंत करें और बच्चों के बारे में सोचें, जैसे आप अपने बच्चों के बारे में सोचते हैं वैसे ही सभी बच्चों के बारे सोचें।" उन्होंने उन्हें भविष्य को बच्चों की नजर से देखने के लिए आमंत्रित करते हुए कहा, "यह न पूछें कि शत्रु कौन है" जिसको नष्ट करना है, लेकिन पूछें मित्र कौन हैं जिनके साथ वे खेल सकें। उन्हें घरों, पार्कों और स्कूलों की ज़रूरत है, न कि कब्रों और कब्रगाह की।"

संत पापा ने आशा और विश्वास के शब्दों के साथ अपने पत्र का समापन किया कि जैसे रेगिस्तान में फूल खिल सकते हैं, वैसे ही लोगों के दिल और राष्ट्रों का जीवन भी खिल सकता है।

उन्होंने "नफरत के रेगिस्तान" के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा "आशा के अंकुर तभी फूटेंगे जब हम सीखेंगे कि कैसे एक साथ, एक दूसरे के मिलकर बढ़ना है;" केवल तभी जब हम दूसरों की मान्यताओं का सम्मान करना सीखेंगे; केवल तभी जब हम प्रत्येक व्यक्ति के अस्तित्व के अधिकार और प्रत्येक व्यक्ति के राष्ट्र के अधिकार को मान्यता देंगे; केवल तभी जब हम सीखेंगे कि बिना किसी का अपमान किए शांति से कैसे रहा जाए।''

अंत में, उन्होंने उन ख्रीस्तीयों के लिए निकटता और प्रोत्साहन के शब्द कहे जो मध्य पूर्व में "कठिनाइयों के बीच" रहते हैं, और कामना की कि वे हमेशा और हर जगह अपने विश्वास को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार प्राप्त कर सकें, जो शांति और भ्रातृत्व की बात करता है।"