पोप : ख्रीस्त में आशा सदैव संभव है

ख्रीस्तीय एकता के समापन प्रार्थना में संत पापा फ्रांसिस ने ख्रीस्तीय आशा पर चिंतन करते हुए कहा कि अपने जीवन की दुःखद भरी परिस्थितियों में हम अकेले नहीं हैं।

पोप फ्रांसिस ने संत पौलुस के मनपरिवर्तन पर्व की संध्या, ख्रीस्तीय एकता के समापन प्रार्थना की अगुवाई की।

पोप ने संध्या प्रार्थना में दिये गये अपने प्रवचन के संदेश में कहा कि येसु अपने मित्रों मार्था और मरियम के घर में लाजरूस की मृत्यु के चार दिन बाद आते हैं। अपनी सारी आशों को खोये, मार्था अपने दुःख और येसु के देर आने पर व्यथा व्यक्त करते हुए कहती है, “प्रभु यदि आप यहां होते तो मेरा भाई लाजरूस नहीं मरता।” यद्यपि, येसु की उपस्थिति मार्था के हृदय में आशा की ज्योति प्रज्वलित करती और उसे विश्वास की अभिव्यक्ति हेतु अग्रसर करती है, “लेकिन मैं जानती हूँ, आप ईश्वर से जो कुछ मांगेंगे, वह आपको मिलेगा।” यह हमारे लिए उस मनोभावना को व्यक्त करता है जहाँ हम अपने द्वार को सदैव खुला रखते हैं, उसे कभी बंद नहीं करते। येसु उसे न केवल भविष्य में पुनरूत्थान की बातें कहते हैं जो दुनिया में अंत में होगा बल्कि वे जो वर्तमान में भी हैं क्योंकि वे स्वयं पुनरूत्थान और जीवन हैं। वे उसे पूछते हैं कि क्या वह इस पर विश्वास करती है। यह सवाल हम सभों के लिए भी है, “क्या हम इस बात पर विश्वास करते हैं?

हम इस सावल पर चिंतन करें, क्या तुम विश्वास करते हो? यह एक छोटा लेकिन चुनौतीपूर्ण सवाल है।

हम अकेले नहीं हैं
पोप ने कहा कि येसु और मार्था के बीच एक मिलन जिसे हम सुसमाचार में पाते हैं हमें उदासी के समय में भी इस बात की शिक्षा देती है कि हम अकेले नहीं है और हम आशा में बने रह सकते हैं। येसु हमें जीवन देते हैं उस समय भी जब सारी आशाएं हमारे लिए विलुप्त लगती हैं। हम अपनी आशा को एक दर्द भरे क्षण में, बीमारी, एक कटु निराशा या अचानक धोखे की घड़ी में डगमगाता पाते हैं। हमने अपने जीवन में निराश के दौर या आशा खोने का अनुभव किया है, लेकिन सुसमाचार हमें बतलाता है कि येसु सदैव हमारी आशा को पुनः स्थापित करते हैं क्योंकि वे हमें मृत्यु के गर्त से बाहर निकालते हैं। वे हमें अपने गिरे हुए क्षणों से उठाते और नई शुरूआत करने, आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करते हैं।

आशा हमें कभी निराश नहीं करती
प्रिय भाइयो एवं बहनो, पोप ने कहा कि हम इस बात को कभी न भूलें कि आशा हमें कभी निराश नहीं कहती है। आशा हमें कभी निराश नहीं करती है। यह तट में एक रस्सी की भांति है जिसमें हम लटके रह सकते हैं, यह हमें कभी निराश नहीं होने देती है। यह हमारे ख्रीस्तीय समुदाय, कलीसिया और एकतावर्धक संबंधों के लिए भी महत्वपूर्ण है। कभी-कभी, हम अपनी थकान भऱी मेहनत के बावजूद मिले परिणाम से हताश हो जाते हैं। हमारे लिए ऐसा प्रतीत होता है मानों वार्ता और दोनों तरफ से किये गये प्रयास अपने में व्यर्थ हैं। ये सारी चीजें हमें मार्था के अनुभवों से संयुक्त करती है लेकिन येसु हमारे पास आते हैं। क्या तुम विश्वास करते हो? क्या तुम विश्वास करते हो कि वे पुनरूत्थान और जीवन हैं? कि वे हमारे प्रयास को फलहित करते और सदैव हमें अपनी यात्रा में आगे बढ़ने को मदद करते हैं? क्या हम इस बात पर विश्वास करते हैं?

पवित्र आत्मा हमारे मार्ग-दर्शक
आशा का यह संदेश जयंती के केन्द्र बिन्दु में है जिसकी शुरूआत हमने की है। संत पौलुस, जिसके मन परिवर्तन का पर्व आज हम मना रहे हैं, रोम के ख्रीस्तीयों के लिए यह घोषित किया, “आशा हमें निराश नहीं करती है, क्योंकि ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में पवित्र आत्मा के द्वारा उढ़ेला गया है जो हमें दिया गया है।” हम सभों ने उसी पवित्र आत्मा को प्राप्त किया है जो हमारी एकतावर्धक यात्रा की आधारशिला है। पवित्र आत्मा हमारी यात्रा के मार्ग दर्शक हैं। हमारे लिए कोई प्रयोगिक चीजें नहीं जो हमें इसे बेहतर रूप में समझने को मदद करती हों। हमें पवित्र आत्मा के निर्देश का अनुसरण करने की जरूरत है।

निशे की धर्मसभा कृपा का वर्ष
काथलिक कलीसिया द्वारा मनाये जाने वाली आशा की जयंती वर्ष सभी ख्रीस्तीयों के लिए बहुत महत्वपू्र्ण है: जो निशे प्रथम महान विश्वव्यापी धर्मसभा की 1700वीं वर्षगांठ से मेल खाती है। उस धर्मसभा ने कलीसिया की एकता को एक कठिन समय में बनाये रखने की कोशिश की, और धर्मसभा के आचार्यों ने एकमत से विश्वास के धर्मसाऱ को स्वीकार किया जिसे अब भी बहुत से ख्रीस्त रविवारीय यूख्ररीस्तीय धर्मविधि में घोषित करते हैं। यह हमारे लिए सामान्य विश्वास के सार को व्यक्त करता है जो हमें सदियों के सभी विभाजनों से परे ले जाती है। संत पापा ने कहा कि निशे की धर्मसभा हमारे लिए इस भांति कृपा का वर्ष रहा, एक अवसर जहाँ सभी ख्रीस्तीय एक ही धर्मसार को घोषित करते हुए एक ही ईश्वर पर अपने विश्वास को व्यक्त करते हैं। हम सामान्य विश्वास के जड़ों की पुनः खोज करें, हम अपनी एकता को बनाये रखें। आइए हम सदैव आगे बढ़ें। हमारे लिए वह एकता मिले जिसकी खोज हम सभी कर रहे हैं। संत पापा ने अर्थोडोक्स ईशशास्त्रीय इयोनिस ज़िज़ियोउलस के विचारों को उद्धृत करते हुए कहा, "मुझे पूर्ण एकता की तिथि पता है: अंतिम निर्णय के बाद का दिन, इस बीच, हमें साथ-साथ चलना चाहिए, साथ-साथ काम करना, साथ-साथ प्रार्थना करनी चाहिए, प्रेम करना चाहिए। और यह बहुत सुंदर बात है।”

विश्वास एक उपहार
प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा यह विश्वास जिसे हम साझा करते हैं अपने में एक मूल्यवान उपहार है लेकिन इसके साथ ही यह एक उत्तरदायित्व भी है। इस वर्षगांठ को न केवल एक "ऐतिहासिक स्मृति" के रूप में मनाया जाना चाहिए, बल्कि हमारे बीच बढ़ते हुए मिलन की गवाही देने की प्रतिज्ञा स्वरूप भी मनाया जाना चाहिए। हम इस बात का ध्यान रखें कि यह हमारे हाथों से न जायें, बल्कि मजबूत बंधन बनें, आपसी मित्रता विकसित करें और मिलन और भाईचारे का साधन बनें।

एक अपील
ख्रीस्तीय एकता हेतु प्रार्थना के इस सप्त