देवदूत प्रार्थना में पोप : हमारे प्रेमी ईश्वर में विश्वास करते हुए आगे बढ़ें

रविवार को देवदूत प्रार्थना के पूर्व अपने संदेश में पोप ने विश्वासियों से आग्रह किया कि वे अपने पहले आध्यात्मिक कर्तव्य को पूरा करें, उस ईश्वर का त्याग करें जिसको हम सोचते हैं और हर दिन को उस प्रेमी ईश्वर में बदलें जिनको येसु सुसमाचार में प्रस्तुत करते हैं।

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 4 फरवरी को पोप फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित किया।

आज का सुसमाचार पाठ येसु को चलते हुए दिखलाता है : वास्तव में, उन्होंने कुछ ही देर पहले उपदेश समाप्त किया था, और सभागृह से निकलने के बाद, वे सिमोन पेत्रुस के घर गये, जहाँ उन्होंने उनकी सास को बुखार से चंगा किया। फिर शाम को वे नगर के फाटक के पास गये जहाँ उनकी मुलाकात कई बीमार एवं अपदूत ग्रस्त लोगों से हुई और उन्होंने उन्हें चंगाई प्रदान की। दूसरे दिन सुबह वे बड़े सबेरे उठे और प्रार्थना करने गये। अंततः वे फिर एक बार गलीलिया के उस पार जाते हैं। (मार. 1:29-39)

पोप ने कहा, “आइए, हम येसु के इस निरंतर चलने पर गौर करें, जो हमें ईश्वर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताता है और साथ ही, हमारे विश्वास पर कुछ प्रश्नों के साथ हमें चुनौती देता है।

येसु घायल मनुष्यों की ओर जाते हैं और हमें पिता का चेहरा दिखाते हैं। ऐसा हो सकता है कि हमारे भीतर अभी भी एक ऐसे ईश्वर का विचार हो जो दूर रहनेवाले, ठंढे और हमारे प्रति उदासीन रहते हैं। इसके विपरीत, सुसमाचार हमें दिखलाता है कि सभागृह में शिक्षा देने के बाद येसु बाहर जाते हैं, ताकि जो शिक्षा वे देते हैं वह लोगों तक पहुँच सके, उन्हें छू सके एवं चंगा कर सके। ऐसा करते हुए वे प्रकट करते हैं कि ईश्वर कोई बेलगाव मालिक नहीं हैं जो ऊपर से बोलते बल्कि इसके विपरीत वे एक पिता हैं, प्रेम से परिपूर्ण जो हमें अपने करीब लाते, जो हमारे घरों में आते, हमें बचाना एवं मुक्त करना चाहते हैं, और जो हमें शारीरिक और मानसिक रूप से हर प्रकार की बीमारी से चंगा करना चाहते हैं। दिनभर व्यस्त रहने के बाद, येसु हर चीज और हरेक व्यक्ति को पिता के दिल में लाने के लिए प्रार्थना करने जाते हैं; और प्रार्थना उसे एक बार फिर अपने भाइयों के पास लौटने की शक्ति देती है।

पोप ने कहा, “येसु का निरंतर चलना हमें चुनौती देता है। हम अपने आप से पूछें : क्या हमने ईश्वर के चेहरे को करुणावान पिता के रूप में देखा है, या क्या हम ठंडे और दूर के ईश्वर पर विश्वास करते और उसकी घोषणा करते हैं? क्या विश्वास हममें चलने की बेचैनी पैदा करता है या क्या यह एक आंतरिक संतुष्टि है, जो हमें शांत करती है? क्या हम केवल शांति महसूस करने के लिए प्रार्थना करते हैं, या जिस वचन को हम सुनते और प्रचार करते हैं वह हमें येसु की तरह दूसरों के पास जाने, ईश्वर की सांत्वना फैलाने के लिए प्रेरित करता है?

अतः आइये हम येसु की यात्रा को देखें और अपने आपको याद दिलायें कि हमारा पहला आध्यात्मिक कर्तव्य है : उस ईश्वर का त्याग करना जिन्हें हम जानते हैं, और हर दिन को उस ईश्वर के लिए परिवर्तित करें जिसको येसु हमें प्रेम और करुणा के पिता के रूप में सुसमाचार में प्रस्तुत करते हैं। और जब हम पिता के सच्चे चेहरे को देख पाते हैं तब हमारा विश्वास मजबूत होता है : हम सिर्फ सक्रेस्टी ख्रीस्तीय या पार्लर ख्रीस्तीय नहीं रह जाते बल्कि हम ईश्वर की आशा और उपचार के वाहक बनने के लिए बुलाए गए महसूस करते हैं।

तब पोप ने माता मरियम से प्रार्थना करने का आह्वान करते हुए कहा, “अति निष्कलंक माता मरियम, चलनेवाली नारी, हमें अपने आप से बाहर निकलने एवं प्रभु की घोषणा करने और उनका साक्ष्य देने में मदद करे।
इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।