ईश्वर स्वतः को दूर महसूस करनेवालों के क़रीब, पोप फ्राँसिस

पापुआ न्यू गिनी की राजधानी पोर्ट मोरस्बी में रविवार को पोप ने काथलिक विश्वासियों के लिये ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा इस अवसर पर कहा कि समाज के हाशिये पर रहने वाले लोग ईश्वर और अपने साथी मनुष्यों के साथ एकता में सूत्रबद्ध रहते हैं।

सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष पोप फ्राँसिस इन दिनों एशिया तथा ओसियाना की 11 दिवसीय प्रेरितिक यात्रा पर हैं। शनिवार तथा रविवार का दिन उन्होंने पापुआ न्यू गिनी की राजधानी पोर्ट मोरस्बी तथा वानिमो धर्मप्रान्त का दौरा कर व्यतीत किया।  

पोर्ट मोरस्बी में उन्होंने स्थानीय समयानुसार रविवार प्रातः आठ बजे सर जॉन गुईज़े स्टेडियम में काथलिक विश्वासियों के ख्रीस्तयाग अर्पित किया और इस बात पर बल दिया कि येसु के क़रीब आने पर सब अन्य दूरियाँ कम हो जाती हैं। प्रबन्धकों के अनुसार, स्टेडियम में ख्रीस्तयाग के लिये पापुआ न्यू गिनी के प्रधान मंत्री जेम्स मराडे सहित लगभग 35,000 श्रद्धालु उपस्थित थे।

ईश्वर से दूरी
अपने प्रवचन में, पोप फ्राँसिस ने रविवार के लिये निर्धारित सुसमाचार पाठ पर विचार किया, जिसमें येसु ख्रीस्त द्वारा एक मूक बधिर व्यक्ति की चंगाई का वर्णन किया गया है। इस सुसमाचार पाठ में निहित "येसु की निकटता और बधिर व्यक्ति की "दूरी" पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए पोप ने कहा कि बहरा व्यक्ति दूर था, क्योंकि वह देकापोलिस से आया था, जो जैरूसालेम के धार्मिक केंद्र से दूर बुतपरस्तों का निवास स्थान था। वह "दुनिया से कटा हुआ था, अलग-थलग था, अपनी मूक-बधिर स्थिति का कैदी था।"

पोप ने कहा कि हम सबने कभी न कभी ईश्वर से दूरी को महसूस किया है, जबकि ईश्वर दूरी का प्रत्युत्तर अपने सामीप्य से देते हैं। उन्होंने कहा कि सुसमाचार में येसु को समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों से मिलते हुए दिखाया गया है, ताकि वे “उनके जीवन को छू सकें और हर दूरी को मिटा सकें।”

उन्होंने कहा, "अपनी निकटता के माध्यम से, येसु मानव के गूंगेपन और बहरेपन को चंगा करते हैं। वास्तव में, जब भी हम दूरी महसूस करते हैं, या हम खुद को ईश्वर से, अपने भाइयों और बहनों से या उन लोगों से दूर रखना चुनते हैं जो हमसे अलग हैं, तो हम खुद को बंद कर लेते हैं, खुद को बाहर से रोक लेते हैं ... हालाँकि, सन्त मारकुस रचित सुसमचार के अनुसार, येसु हमारे पास आते हैं और बहरे व्यक्ति की तरह हमसे कहते हैं, "एफेता", यानी, "खुल जा"।

पोप ने कहा कि इस रविवार के लिये निर्धारित सुसमचार पाठ पापुआ न्यू गिनी के लोगों के लिये विशेष मायने रखता है, इसलिये कि प्रशान्त सागर के दूरस्त क्षेत्रों में रहते हुए वे स्वतः को अन्यों से और ईश्वर से बहुत दूर महसूस करते हैं, जबकि ऐसा नहीं है, क्योंकि पवित्रआत्मा के सामर्थ्य से आप सब एकता में बँधे हैं और आप में से प्रत्येक से ईश्वर कहते हैं, खुल जाओ, अपना हृदय उदार बनाओ। सन्त पापा ने कहा कि यह सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हम स्वतः को उदार बनायें, मनुष्यों के प्रति और सुसमाचार के प्रति तथा उसे अपने जीवन का मापदण्ड बनायें।        

लोगों का उत्साह
पापुआ न्यू गिनी में सेवारत भारतीय मूल के मोंटफोर्ट मिशनरी धर्माध्यक्ष रोज़ारियो मेनेजेस ने वाटिकन न्यूज़ से बातचीत में कहा कि पोप फ्रांसिस की यात्रा से पापुआ न्यू गिनी को लोगों का उत्साह और उनकी उम्मीदें बढ़ी हैं। उनका मानना ​​है कि सन्त पापा प्रशांत राष्ट्र में एक दीर्घकालिक छाप छोड़ेंगे, जो गरीबी, भ्रष्टाचार, जादू-टोना से संबंधित हिंसा और अब जलवायु परिवर्तन सहित कई चुनौतियों और सामाजिक बुराइयों का सामना कर रहा है।

धर्माध्यक्ष मेनेजस ने बताया कि कई तीर्थयात्री देश के सबसे दूरदराज के इलाकों से लंबी दूरी तय करके, यहाँ तक कि पैदल यात्रा कर पोर्ट मोरेस्बी के सर जॉन गुईज़ स्टेडियम में पोप फ्रांसिस से मिलने आए हैं, इसलिये कि वे खुद को "आशा के तीर्थयात्री" मानते हैं। उन्होंने कहा, "उनकी उम्मीद है कि यह यात्रा पूरे देश को एक साथ लाएगी" और पोप फ्रांसिस इस ईसाई बहुल राष्ट्र को "एक परिवार" जैसा महसूस कराने में मदद करेंगे।