पुनरुत्थान का अर्थ है स्वयं को भय से अभिभूत न होने देना

वाटिकन में परमधर्मपीठीय कार्यालयों में सेवारत धर्माधिकारियों के लिये जारी चालीसाकालीन आध्यात्मिक साधना के अवसर पर प्रवचन करते हुए उपदेशक फादर रोबेर्तो पासोलीनी ने प्रभु येसु ख्रीस्त के पुनःरुत्थान के आनन्द पर चिन्तन किया।
वाटिकन में परमधर्मपीठीय कार्यालयों में सेवारत धर्माधिकारियों के लिये जारी चालीसाकालीन आध्यात्मिक साधना के अवसर पर प्रवचन करते हुए उपदेशक फादर रोबेर्तो पासोलीनी ने प्रभु येसु ख्रीस्त के पुनःरुत्थान के आनन्द पर चिन्तन किया।
पुनरुत्थान का अर्थ
फादर पासोलीनी ने कहा कि पुनरुत्थान की ओर देखने का अर्थ है, स्वयं को दुःख और मृत्यु के भय से अभिभूत न होने देना, बल्कि अपनी दृष्टि उस लक्ष्य पर स्थिर रखना जिसकी ओर येसु मसीह का प्रेम हमारा मार्गदर्शन करता है।
उन्होंने कहा कि जीवन की परिपूर्णता की ओर ले जानेवाले मसीह के द्वार को पार करने के लिये एक बहुमूल्य बलिदान की आवश्यकता है, जो है: इस विश्वास को त्यागना कि असफलताओं और पराजय से एक भरोसेमंद हृदय के साथ उठना असंभव है। उन्होंने कहा कि यह ज़रूरी है कि पुनरुत्थान में विश्वास कर हम फिर से शुरू करने और दूसरों के लिए खुलने के लिए तैयार होवें, विशेषकर उन लोगों के प्रति जिन्होंने हमें चोट पहुंचाई है, हालांकि, हमारे बीच के बंधन को नहीं तोड़ सके।
प्रवचनकर्त्ता फादर पासोलीनी ने कहा कि सुसमाचारों में सबसे बड़ा आश्चर्य यह नहीं है कि ईशपुत्र येसु ख्रीस्त मुर्दों में से जी उठे बल्कि उन्होंने किस तरीके का चयन किया, जिससे हमें इस बात का एक अद्भुत साक्ष्य मिला और वह यह कि किस प्रकार प्रेम एक बड़ी हार के बाद फिर से उठ खड़ा हुआ ताकि वह अपने अजेय पथ पर आगे बढ़ सके।
अस्तु, उन्होंने कहा, हमारे लिए यह उचित है कि हम सामान्य अनुभव से शुरुआत करें। हर बार जब हम अपने पैरों पर खड़े होने और ठीक होने में कामयाब होते हैं, विशेष रूप एक मजबूत आघात को झेलने के बाद, पहली बात हम प्रतिशोध का सोचते हैं, उनसे बदला लेने की सोचते हैं जिन्होंने हमें दुख दिया है, जबकि येसु का दुखभोग और उनका पुनःरुत्थान इस बात का साक्ष्य है कि मृत्यु के अधोलोक से उभरने के बाद, येसु को जो कुछ हुआ उसके लिए उन्हें किसी को भी दोषी ठहराने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं हुई। एकमात्र कार्य जो येसु ख्रीस्त करना चाहते हैं, वह है आनन्दपूर्ण विनम्रता और भ्रातृ भाव के साथ स्वयं को प्रकट करना।
प्रतिशोध नहीं
फादर पासोलीनी ने इस ओर ध्यान आकर्षित कराया कि प्रत्येक सुसमाचार में हम येसु के मृत्यु से जी उठने की पुष्टि पा सकते हैं, जिसमें किसी भी प्रकार के प्रतिशोध की भावना और छुटकारे की आवश्यकता नहीं मिलती है। सम्भवतः इसका सबसे बड़ा सबूत सन्त मारकुस रचित सुसमाचार में मिलता है। मत्ती रचित सुसमाचार एक अन्य तरीके से येसु के पुनःरुत्थान सम्बन्धी घटना की महान गंभीरता को रेखांकित करते हैं। जब महिलाएं खाली कब्र से बाहर निकलती हैं, तो येसु स्वर्गदूत द्वारा प्राप्त पुनरुत्थान की घोषणा की पुष्टि करने के लिए उनके सामने प्रकट होते हैं। हालाँकि, इसके तुरंत बाद सुसमाचार प्रचारक यह स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं कि क्यों मसीह का पुनरुत्थान एक ऐतिहासिक घटना थी जिसके बारे में शुरू से ही भारी संदेह उठाए गए थे।
उन्होंने कहा कि मसीह के पुनरुत्थान में जिस आशंका का सामना किया गया था, उसका सामना करते हुए, अपने आप से यह पूछना स्वाभाविक है कि प्रभु येसु ने मृत्यु से जी उठने के बाद, अपनी विजय को अधिक शक्ति और प्रमाण के साथ प्रदर्शित करना क्यों पसंद नहीं किया?
पुनरुत्थान का प्रेम
प्रवचनकर्त्ता ने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर देने का एकमात्र तरीका यह है कि पुनरुत्थान को प्रेम के अनुभव के रूप में देखा जाए, न कि ईश्वर की ओर से शक्ति के कार्य के रूप में। उन्होंने कहा कि प्रेम की तर्कणा में हम समझ सकते हैं कि क्यों येसु को स्वयं को मनुष्यों पर थोपने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं हुई, बल्कि स्वयं को प्रस्तावित करते रहने की तीव्र इच्छा हुई। जैसा कि कुरिन्थियों को प्रेषित पहले पत्र के 13 वें अध्याय के पाँच से सात तक के पदों में सन्त पौल लिखते हैं, प्रेम "अपना स्वार्थ नहीं खोजता, क्रोध नहीं करता, प्राप्त की गई बुराई का हिसाब नहीं रखता... सब कुछ सह लेता है, सब कुछ पर विश्वास करता, सब बातों की आशा करता है, सब बातों में धीरज धरता है।"