धार्मिक नेता विभाजन को दूर करें और शांति को बढ़ावा दें

परमधर्मपीठीय अंतरधार्मिक संवाद परिषद के अध्यक्ष कार्डिनल जॉर्ज कूवाकड ने एक बेहतर दुनिया को बढ़ावा देने हेतु धार्मिक नेताओं की "महान ज़िम्मेदारी" पर ज़ोर देते हुए कहा, "घायल मानवता की पुकार" के आगे हम "चैन से आराम नहीं कर सकते, न ही चैन की नींद सो सकते हैं"।
मलेशिया के कुआलालुम्पुर में गुरुवार को धार्मिक नेताओं के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में बोलते हुए, परमधर्मपीठीय अंतरधार्मिक संवाद परिषद के अध्यक्ष कार्डिनल जॉर्ज कूवाकड ने एक बेहतर दुनिया को बढ़ावा देने हेतु धार्मिक नेताओं की "महान ज़िम्मेदारी" पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, "घायल मानवता की पुकार" के आगे हम "चैन से आराम नहीं कर सकते, न ही चैन की नींद सो सकते हैं"।
आस्था को हथियार ना बनायें
धर्मों के नेताओं का कार्डिनल कूवाकड ने आह्वान किया कि वे हिंसा और अन्यायपूर्ण भेदभाव के विरुद्ध अपनी आवाज उठाएं, संघर्ष के मूल कारणों का साहसपूर्वक समाधान करें तथा अपने साझा घर की सुरक्षा के लिए दृढ़ता से खड़े रहें।
“संघर्ष समाधान में धार्मिक नेताओं की भूमिका”, शीर्षक से राजधानी कुआलालुम्पुर में सम्पन्न उक्त अन्तरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन का आयोजन मलेशिया के प्रधान मंत्री कार्यालय तथा विश्वव्यापी मुस्लिम लीग द्वारा किया गया था।
विभिन्न देशों के धार्मिक नेताओं को सम्बोधित कर कार्डिनल कूवाकड ने कहा, "हम आपस में जुड़े हुए हैं, हम एक-दूसरे पर निर्भर हैं, और कोई भी राष्ट्र, कोई भी धर्म, कोई भी नेता अकेले वर्तमान चुनौतियों का सामना नहीं कर सकता।"
उन्होंने कहा, "सरकारों, नागरिक समाज और मीडिया" के साथ सहयोग करके और महिलाओं, बच्चों, युवाओं और अन्य लोगों की "प्रायः अनसुनी कर दी जाने वाली आवाज़ों" को सुनकर, हम "अपने समुदायों की आध्यात्मिक ऊर्जा को फिर से जगाएँ, और हृदय को करुणा और समझदारी की ओर ले जाएँ।"
धर्म और संघर्ष
अपने संबोधन में, कार्डिनल महोदय ने तीन रास्तों की पहचान की जिनसे धार्मिक नेता "संघर्षों की रोकथाम, समाधान और उपचार में योगदान दे सकते हैं।" पहला रास्ता है "हिंसा की नहीं, शांति की आवाज़" बनने का संकल्प लेना। उन्होंने कहा कि धार्मिक नेताओं को कभी भी नफ़रत नहीं फैलानी चाहिए। वे हिंसा को कभी बढ़ावा न दें, उसे उचित नहीं ठहरायें और ना ही हिंसा का समर्थन करें। धार्मिक नेताओं का कर्तव्य और भी ऊँचा है, और वह है बुराई को रोकना, विवादों को सुलझाना, मतभेदों को दूर करना और संघर्षों के अहिंसक समाधानों को प्रोत्साहित करना। तब ही हम अपनी साझा मानवता के योग्य विश्व का निर्माण कर सकते हैं।"
धर्म को हथियार न बनायें
कार्डिनल कूवाकड ने कहा कि धार्मिक नेताओं का "आह्वान" किया जाता है कि वे अपने "समुदायों को याद दिलाएँ कि आस्था को कभी हथियार नहीं बनाया जाये," बल्कि धर्म और आस्था "एक उपचारात्मक शक्ति" होनी चाहिए। दिवंगत सन्त पापा फ्राँसिस के शब्दों को उद्धृत कर उन्होंने सभी "राजनीतिक रूप से ज़िम्मेदार लोगों से भय के तर्क के आगे न झुकने" की अपील की।
कार्डिनल कूवाकड ने आगे स्पष्ट किया कि धार्मिक नेता "एक ऐसी दुनिया में चैन से नहीं सो सकते, जहाँ घायल मानवता और घायल धरती की पुकार गूंज रही है," खासकर "बच्चों, महिलाओं और गरीबों" की। उन्होंने स्पष्ट किया, "धार्मिक नेताओं के रूप में, हमें संघर्ष में अन्यायपूर्ण रूप से पीड़ित लोगों के लिए आवाज़ उठाने," "निष्पक्षता और साहस के साथ बोलने," और "चंगाई देने के लिए" कहा जाता है, क्योंकि अंततः हमें हमारी दया और करुणा के कार्यों के लिए ही न्याय मिलेगा।" उन्होंने आगे कहा, "न्याय के निष्पक्ष प्रयोग और सच्चाई को छिपाए बिना भी, क्षमा के माध्यम से, धर्म में घावों को भरने की एक अनोखी शक्ति है।"
अन्तरधार्मिक संवाद का महत्व
अपने सम्बोधन के अंत में, कार्डिनल कूवाकड ने धार्मिक नेताओं को सुझाव दिया कि वे "अविश्वास, घृणा और अतिवाद से ग्रस्त" दुनिया में "शांति और एकजुटता का भविष्य बनाएँ, पुरानी दीवारें गिराने और नई दीवारें बनाने से रोकने का साहस" रखें, साथ ही एकजुटता के "नए पुल" बनाएँ। उन्होंने इस तथ्य की पुनरावृत्ति की कि अंतरधार्मिक संवाद एक ऐसा मार्ग है जो दशकों से "भय, अज्ञानता और घृणा" की बाधाओं को तोड़ रहा है, इसलिये कि प्रत्येक धर्म “मानवता की भलाई के लिए ज्ञान, करुणा और प्रतिबद्धता का योगदान देता है।”