दस साल पहले नीनवे मैदान से खीस्तियों का पलायन, साको: "सामूहिक त्रासदी"
एक अगस्त की रात, जिहादियों के कारण करीब 1 लाख 20 हजार लोगों को उत्तरी इराक में अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। खलदेई प्राधिधर्माध्यक्ष कहते हैं : "आईएसआईएस हार गया लेकिन विचारधारा मजबूत बनी हुई है। जो लोग भाग गए थे उनमें से केवल 60% ही वापस लौटे हैं, जिससे दुनिया में सबसे पुरानी ख्रीस्तीय उपस्थिति खतरे में पड़ गई है।"
बागदाद के खलदेई प्राधिधर्माध्यक्ष कार्डिनल लुईस राफेल साको ने फिदेस एजेंसी से कहा, “ख्रीस्तीय और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक सामूहिक त्रासदी, जो अभी भी दिमाग में अंकित है। यह सच है, आईएसआईएस हार चुका है लेकिन उसकी विचारधारा अब भी मजबूत बनी हुई है, न सिर्फ इराक में।” नीनवे मैदान से ख्रीस्तीयों के निष्कासन के दस साल बाद खलदेई प्राधिधर्माध्यक्ष याद करते हैं कि किस तरह जिहादियों ने इस्लामिक राज्य स्थापित करने के लिए इराक और सीरिया की सीमा पर 6 और 7 अगस्त 2014 की रात को 1 लाख 20 हजार ख्रीस्तीयों को अपने घर और अपना सामान छोड़ने के लिए मजबूर किया था। कार्डिनल को अफसोस है कि उनमें से केवल 60% ही वापस लौटे हैं, लगभग तीस परिवार, जो अक्सर अधूरे हैं और बहुत बुजुर्ग सदस्यों के साथ, दुनिया की सबसे पुरानी ख्रीस्तीय उपस्थिति के रूप में अब खतरे में है।
इराक के लोगों का कुर्दिस्तान में पलायन
जून के अंत से, लगभग 1,200 ख्रीस्तीय परिवार, जो इस्लामिक स्टेट के नियंत्रण में आनेवाले इराकी शहरों में से एक, मोसुल से भाग गए थे। उनके घरों को "N" (नाजरी) अक्षर से चिह्नित किया गया था। पलायन या मृत्यु, धर्मपरिवर्तन का एकमात्र विकल्प था। उनमें से अधिकांश लंबे इंतजार के बाद इराकी कुर्दिस्तान भाग गए और आज देश के उत्तर में 6 लाख विस्थापित लोगों में से 7% ख्रीस्तीय हैं, जिनमें से अधिकांश एरबिल जिले में हैं।
समान कर्तव्यवाले नागरिक
कार्डिनल साको ने दोहराया, "ऐसा अनुमान है कि हर महीने लगभग 100 ख्रीस्तीय परिवार इराक छोड़ देते हैं।" कारणों में, युद्ध के आघातों के अलावा, देश में अक्सर व्याप्त सांप्रदायिकता, "मध्य पूर्व में चिंताजनक वर्तमान स्थिति और युद्ध का डर" भी शामिल है। प्राधिधर्माध्यक्ष कहते हैं, कि ईराक में "हमें नागरिकता पर आधारित एक आधुनिक, लोकतांत्रिक, नागरिक राज्य की आवश्यकता है। अब हम बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक, ख्रीस्तीय, यहूदी, शिया, सुन्नी, यजीदी आदि के बारे में नहीं बल्कि नागरिकों के बारे में बात कर सकते हैं। हम सभी समान अधिकारों और कर्तव्योंवाले नागरिक हैं।"
लगातार पलायन
21वीं सदी की शुरुआत में इराक में अकेले मोसुल में ख्रीस्तीयों की संख्या एक लाख से अधिक थी और 2003 में सद्दाम हुसैन के शासन के पतन के बाद सांप्रदायिक हिंसा में वृद्धि के साथ उनकी संख्या पहले ही कम हो गई थी। कई लोग उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया से चले गए और फिर वापस लौट आए। न केवल उत्तरी इराक से, बल्कि बसरा जैसे शहरों से भी दस लाख से अधिक ख्रीस्तीय भाग गए हैं, जहाँ आज 300 ख्रीस्तीय परिवार रहते हैं, जबकि 50 साल पहले पाँच हजार थे।