कैमरून में गरीबी, वेश्यावृत्ति, मलेरिया और टीबी के खिलाफ लड़ रही हैं दया की धर्मबहनें
अफ़्रीकी देश के केंद्र में, नगाउंडाल में, संत योहान्ना अंतिदा थौरेट की धर्मबहनें एक महिला प्रशिक्षण केंद्र और दो क्लीनिक चलाती हैं। सिस्टर क्लाउदीन बोलोम कहती हैं, "जब से हम यहां आए हैं महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है।"
शीघ्र विवाह से या सड़कों से भागना। मध्य कैमरून के एडमौआ क्षेत्र में नगाउंडाल के महिला प्रशिक्षण केंद्र में पहुंचने वाली लगभग सभी लड़कियां हैं। इसी गांव में 1987 से अफ्रीकी देश में मौजूद संत योहान्ना अंतिदा थौरेट की दया की धर्मबहनों ने इन युवत्तियों का समर्थन करने के उद्देश्य से इस परियोजना को शुरु किया, जो 12 साल की उम्र के पहले ही अपने माता-पिता द्वारा विवाह कराये जाने का जोखिम उठाती हैं या, वैकल्पिक रूप से, वेश्यावृत्ति नेटवर्क में फंस जाती हैं। सिस्टर क्लाउदीन बोलोम दृढ़ विश्वास के साथ प्रतिक्रिया करती हैं, "लेकिन एक बार जब आप उन्हें स्वतंत्र बना देते हैं तो उन्हें फंसाना मुश्किल होता है।" कैमरून में चार साल से रह रही सिस्टर चादियाना बताती है कि स्कूल इन लड़कियों की आंखें खोलता है। वे इस मुद्दे विचार करना शुरू कर देती हैं कि समय से पहले उन्हें शादी क्यों नहीं करना हैं, इसके अलावा एक बार जब वे स्वतंत्र हो जाती हैं, तो उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेलना मुश्किल होता है।
खानाबदोश समूह
सिस्टर क्लाउदीन आगे कहती हैं कि प्रशिक्षण केंद्र में, ज्यादातर फाउल्बे या मबोरो खानाबदोश जातीय समूह की मुस्लिम लड़कियां आती हैं, जो "जानवरों के साथ काम करते हैं और रहते हैं, यह उनकी प्राथमिकता है।" इन समूहों में "महिलाओं को महत्व नहीं दिया जाता है, पुरुष एक से अधिक महिलाओं को रखते हैं, उनके पास कोई नौकरी नहीं है और अक्सर वे अपने बच्चों को खाना भी नहीं खिला पाते हैं।" वर्षों से धर्मबहनों ने परिवारों का समर्थन करने की कोशिश की है और कुछ सुधार हुए हैं, सिस्टर क्लाउदीन आगे कहती हैं: "अब महिलाएं भी काम करना चाहती हैं, उन्होंने समझ लिया है कि वे जिम्मेदारी ले सकती हैं और उन्होंने अपनी बेटियों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया है"। इन युवाओं को कटाई और सिलाई के साथ-साथ लिखना पढ़ना भी सिखाया जाता है, और फिर, अपने प्रशिक्षण के अंत में, वे अंग्रेजी और फ्रेंच दोनों में खुद को अभिव्यक्त करने में सक्षम हो जाते हैं।
इन साहसी युवतियों में एक उदाहरण विवाहित इना का है, जिसने पढ़ाई करने के लिए घर छोड़ने और फिर एक दिन काम करने का फैसला किया, एक ऐसा लक्ष्य जिसे वह स्वाभाविक रूप से अपने पति और माता-पिता की सहमति से ही हासिल कर पायेगी। नादिया की कहानी अलग है क्योंकि वह नगाउंडेरे से आती है, जो स्कूल से बहुत दूर है। सिस्टर क्लाउदीन कहती हैं, "माता-पिता के पास उसे सामान्य स्कूल में भेजने के साधन नहीं थे और जब उसने हमारे स्कूल के बारे में सुना तो उसने सिलाई सीखने के लिए दाखिला लेने का फैसला किया और वह पैसे जुटाने में कामयाब रही।" एक बार जब वह सीख लेगी, तो वह घर लौटकर अपनी छोटी सी दुकान खोलने के अपने सपने को साकार कर पायेगी। हालाँकि, यह सब तभी संभव होगा जब कोई उसे एक सिलाई मशीन देगा। मशीन खरीदने में दया की धर्मबहनें बहुत गरीब परिवारों से आयी महिलाओं की मदद करती हैं।
ओझाओं की चुनौती
इसके अलावा उसी क्षेत्र में, संत योहान्ना अंतिदा थौरेट की धर्मबहनों ने दो क्लीनिक, "पिएत्रो पेकोरा" और "सांता अगुस्टिना" बनाया और नर्सों को सौंप दिया। यहीं पर मलेरिया के कम गंभीर मामलों का इलाज किया जाता है और यहीं पर बच्चों को टीके लगाए जाते हैं और गर्भवती महिलाओं की देखभाल की जाती है। दो क्लीनिक खोलने का कारण सिस्टर क्लाउदीन बताती हैं कि कई लोग आधुनिक चिकित्सा में विश्वास नहीं करते हैं। यहां आने से पहले वे ओझाओं के पास जाते हैं, जो उनका इलाज 'पारंपरिक चिकित्सा' पत्तों वगैरह से करते हैं, केवल जब उन्हें एहसास होता है कि रोगी के मरने का खतरा है तो वे उसे अस्पताल ले जाने का फैसला करते हैं, जो गांव से पांच किमी. दूर है। दो क्लीनिकों ने अब तक कई लोगों की जान बचाने में मदद की है। अधिकांश मरीज मलेरिया, टाइफाइड, तपेदिक और कुपोषण से पीड़ित हैं, जिनमें से कई बहुत छोटे बच्चे हैं, जो केवल कच्चा दूध पीते हैं, वे टीबी का शिकार हो जाते हैं।