संत अन्ना ओल्ड एज हाऊस, आशा का स्थान

राँची के निकट उल्हातू में संत अन्ना ऑल्ड एज हाऊस की स्थापना, “समय की मांग को देखते हुए बीमार, असहाय, बुजूर्ग, एकाकी एवं अपाहिज लोगों के लिए किया गया है ताकि उन्हें जीने की हिम्मत मिल सके। उनमें जीवन की नई आशा जग सके।” वृद्धाश्रम की देखभाल कर रहीं संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ की धर्मबहनें इस बात का विशेष ख्याल रखती हैं कि बीमार व्यक्ति शारीरिक और मानसिक आराम के साथ-साथ आध्यात्मिक सांत्वना भी प्राप्त कर सकें।

करीब पाँच साल पहले श्रीमती अलोइसिया जब विदेश में रहनेवाली अपनी बेटी से फोन पर बात कर रही थी, तो उसके घर लौटने पर जिद्ध कर रही थी। दर्द और निराशा उसकी रोती आवाज से साफ पता चल रहा था। उसे डर था कि वह कहीं बेटी को अंतिम बार देखे बिना न मर जाए।

वह करीब दो साल से बीमार थी और कई डॉक्टरों एवं वैदों से इलाज करा चुकी थी लेकिन बीमारी बढ़ती जा रही थी। या यूँ कहें बीमारी पकड़ में ही नहीं आ रही थी जिसके कारण सही इलाज नहीं हो पा रहा था। उतने पैसे भी नहीं थे कि कोई अच्छे अस्पताल से इलाज करा ले। घर में अकेली बहु माँ की सेवा करे या पूरे परिवार को संभाले। इस प्रकार बीमारी के साथ-साथ निराशा भी बढ़ रही थी।

माँ की इस गंभीर हालात ने बेटी को चिंता में डाल दिया। वह उपाय सोचने लगी। बड़ों से सलाह ली। इस बीच माननीय सिस्टर लिंडा मेरी वॉन जो उस समय संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ की परमाधिकारिणी थीं, सुझाव दिया कि वह अपनी माँ को संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में भर्ती करे। माँ को उलहातू के वृद्धाश्रम में लाया गया।

वृद्धाश्रम का नया परिवेश
वृद्धाश्रम में अलोइसिया को बिलकुल नया परिवेश मिला। वहाँ उसे पहले से विभिन्न शारीरिक परेशानियों के साथ कई लोग मिले। दिन रात उनकी सेवा के लिए तत्पर नर्स एवं सेविकाएँ भी मिलीं, जो न केवल सेवा देतीं बल्कि अपना समय और कोमल स्नेह भी देती थीं। सबसे बढ़कर, वहाँ उसे एक प्रार्थनामय वातावरण मिला, जिसने दुःखों के बावजूद आशा और आंतरिक आनन्द महसूस करने में मदद की।

वृद्धाश्रम की देखभाल कर रहीं संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ की धर्मबहनें इस बात का विशेष ख्याल रखती हैं कि बीमार व्यक्ति शारीरिक और मानसिक आराम के साथ-साथ आध्यात्मिक सांत्वना भी प्राप्त करें।

सिस्टर जसिन्ता केरकेट्टा जो वृद्धाश्रम में शुरू से कार्यरत हैं और अब अडमिनिस्ट्रेटर हैं, वृद्धाश्रम के सभी लोगों की बड़ी चिंता करती हैं। वे न केवल मरीजों और असहाय लोगों की शारीरिक देखभाल करतीं बल्कि उनकी आध्यात्मिक परवाह में भी लापरवाही होने नहीं देती हैं। उनका कहना है कि “केंद्र की स्थापना समय की मांग को देखते हुए बीमार, असहाय, बुजूर्ग, एकाकी और अपाहिज लोगों के लिए खोला गया है ताकि उन्हें जीने की हिम्मत मिल सके।”