पोप : हमारी वार्ता हममें चंगाई लाये

पोप लियो ने ग्रीष्मकालीन अवकाश के उपरांत अपने बुधवारीय आमदर्शन की पुनः शुरूआत की। उन्होंने बहरे और गूंगे व्यक्ति की चंगाई पर चिंतन करते हुए संचार के स्वरुप द्वारा अपने और दूसरों में चंगाई लाने का आहृवान किया।
पोप ने आमदर्शन हेतु संत पेत्रुस महागिरजाघऱ के प्रांगण में एकत्रित सभी युवाओं, विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।
इस धर्मशिक्षा माला के संग ही हम अपने येसु के सार्वजनिक जीवन की यात्रा का समापन करेंगे जो मुलाकातों, दृष्टांतों और चंगाईयों से चिह्नित है।
पोप ने कहा कि इस समय भी जहाँ हम रहते हैं चंगाई की आवश्यकता है। हमारी दुनिया एक हिंसा और घृणा के ऐसे माहौल का साक्ष्य प्रस्तुत कर रही है जो मानवीय गरिमा को कलंकित करता है। हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जो सोशल मीडिया से जुड़े "बुलिमिया" से ग्रस्ति होता जा रहा है: हम अत्यधिक संबंध से जुड़े हैं, छवियों से घिरे हुए हैं, कभी-कभी तो वो झूठी या विकृति से भरी हैं। हम कई संदेशों से वशीभूत हैं जो हमारे अंदर विरोधाभासी भावनाओं के तूफ़ान पैदा करती हैं।
हमारी व्यक्तिगत आंतरिक अनुभूति
ऐसी परिस्थिति में, हमें संभवतः ऐसा लगता है कि हम अपने को सारी चीजों से विमुख कर लें। हमें अपने में और कुछ भी नहीं सुनने का विकल्प चुनने-सा लगता है। यहां तक कि हम अपने कार्यों में नसमझी को पाते हैं, जहाँ संचार की कमी, यद्यपि हम इसके कितने भी निकट क्यों न हों, अति साधारण और अत्यधिक गहरी चीजों को व्यक्त नहीं कर पाने की अयोग्यता हममें यह प्रलोभन उत्पन्न करती है कि हम अपने को चुप्पी में बंद कर लें।
बहरा और गूंगा
इस संदर्भ में, आज मैं संत मरकुस के सुसमाचार में उस अंश पर चिंतन करना चाहूँगा जो हमें उस व्यक्ति को प्रस्तुत करता है जो बहरा है जिसे बोलता में कठिनाई है। ऐसा हमारे लिए भी होता है, यह व्यक्ति अपने में शायद बोलना बंद कर दिया है क्योंकि वह नसमझी का शिकार होता है। वह अपने में चुपचाप रहता है क्योंकि वह दूसरों के द्वारा घायल है वह अपने में निराश अनुभव करता है क्योंकि उसने कुछ बातें सुनी है। वास्तव में, वह येसु के पास चंगाई हेतु नहीं आता है बल्कि उसे दूसरे येसु के पास लेकर आते हैं। हम अपने में यह सोच सकते हैं कि जो उसे स्वामी के पास लेकर आते हैं वे उसके अकेलेपन की स्थिति से चिंतित थे। इस तरह के लोगों में ख्रीस्तीय समुदाय कलीसिया की छवि को देखती है जो हर व्यक्ति को येसु के पास लेकर आते जिससे वह उनकी आवाज सुन सके। यह घटना गैर-यहूदी प्रांत में होती है अतः हम यहाँ उस संदर्भ को पाते हैं जहाँ अन्य आवाजें ईश्वर की आवाज को दबा देती हैं।
पोप लियो ने कहा कि उस व्यक्ति के संबंध में येसु का व्यवहार शुरू में विचित्र लगता है क्योंकि वे उस व्यक्ति को भीड़े से अलग दूर ले जाते हैं। यह हमारे लिए उसके अकेलेपन को और भी बढ़ावा देने जैसा लगता है, लेकिन निकटता से देखने पर यह हमें इस बात को समझने में मदद करता है कि उस व्यक्ति की चुप्पी और अकेले रहने के पीछे कौन-सी बातें छिपी हैं, हमारे लिए ऐसा लगता है मानों येसु निकटता और एकात्मकता की चाह से भली-भांति वाकिफ हैं।
येसु की निकटता
येसु सर्वप्रथम उसे अपनी निकटता प्रदान करते हैं, उनके कार्य हमारे लिए एक गहरे मिलन की बातें व्यक्त करते हैं, वे उस व्यक्ति के कानों और जीभ का स्पर्श करते हैं। हम येसु को बहुत अधिक शब्दों का उपयोग करने हुए नहीं देखते हैं, वे उसे केवल एक ही जरुरी बात कहते हैं, खुला जा। मारकुस के द्वारा आरामाईक में उपयोग किया गया शब्द “एफेता” हमें वाणी और सांसों को व्यक्त करती है जो जीवन का कारण है। यह साधारण और सुन्दर शब्द अपने में उस व्यक्ति के लिए एक निमंत्रण की भांति है जो अपने में सुनना और बोलना बंद कर दिया है। यहाँ हमारे लिए ऐसा प्रतीत होता है मानों येसु उसे कह रहे हों, इस भयभीत करने वाली दुनिया में अपने को खोलो। अपने को उन संबंधों के लिए खोलो जिनसे तुम निराश हो। तुम उस जीवन के लिए अपने को खोलो जिसका परित्याग तुमने किया है। अपने में बंद रहना, वास्तव में, कभी एक समाधान नहीं है।