जुबली दण्डमोचन, सभी लोगों पर दया की प्रचुर वर्षा
दण्डमोचन के लिए ईशशास्त्रीय कारण, अंद्रेया तोरनियेली के साथ मोनसिन्योर अंतोनियो स्तालियानो की वार्ता।
काथलिक कलीसिया की प्रथम जयन्ती 1300 के पहले प्रकाशित घोषणा पत्र अंतिकोरूम हबेत फिदे रेलातियो में दण्डमोचन की परिभाषा इस प्रकार दी गई है, “न केवल पूर्ण और विस्तृत, बल्कि वास्तव में बहुत भरा हुआ।"
(लैटिन में “नोन सोलुम प्लेनम, एत लारजोरेम इम्मो प्लेनिस्सिमम”)। परिभाषा में तीन विशेषणों का प्रयोग किया गया है : पूर्ण, विस्तृत और बहुत भरा हुआ। जो जानबूझकर पिछले क्षमादानों की तुलना में इसके असाधारण होने को रेखांकित करता है। पोप बोनिफस 8वें जिन्होंने प्रथम जयन्ती वर्ष की घोषणा की, अपने पूर्वाधिकारी पोप सेलेस्टीन 5वें के 1294 के घोषणापत्र, प्रेरित संत पेत्रुस एवं संत पौलुस के संरक्षण एवं सुसमाचार के शब्दों के आधार पर पापों के पूर्ण क्षमादान की शक्ति का दावा करते हैं। “तुम पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।”(मती.18,18)
दण्डमोचन प्राप्त करने के लिए रोमवासी 30 दिनों में लगातार 30 बार, विदेशी या दूर से आनेवाले तीर्थयात्री 15 दिनों में 15 बार, सच्चे पश्चाताप एवं पापस्वीकार के साथ महागिरजाघर में प्रवेश करते थे। दण्डमोचन क्या है?
दण्डमोचन क्या है?
अंद्रेया तोरनियेली के अनुसार, दण्डमोचन बपतिस्मा की मूल और शुद्ध अवस्था में वापस लौटना है। दण्डमोचन से न केवल पापों की क्षमा मिलती है बल्कि पाप के कारण हमारे जीवन पर जो परिणाम होते हैं, वे भी समाप्त हो जाते हैं। जुबली एक महान अवसर है जब दण्डमोचन की शर्तों जैसे- महागिरजाघर में प्रवेश, पापस्वीकार, पवित्र द्वार में प्रवेश और संत पिता के लिए प्रार्थना करने के द्वारा हमें पूर्ण दण्डमोचन मिलता है। यह एक प्रकार से पूर्ण शुद्धिकरण प्राप्त करना है।
कलीसिया की ओर से उपहार
मोनसिन्योर स्तालियानो आगे कहते हैं कि दण्डमोचन का आध्यात्मिक अर्थ, जो ईश्वर की करूणा से जुड़ा है व्यक्ति के जीवन में प्रचुर मात्रा में आता है। चूँकि ईश्वर की दया स्वयं ईश्वर हैं, जो व्यक्ति के जीवन में प्रवेश करते और उसे बदल देते हैं। दण्डमोचन एक करुणा है जो रिमझिम वर्षा की तरह व्यक्ति के जीवन में उतरता है और उसे बदल देता है है। उसे अच्छाई की ओर उन्मुख करता है, प्रेम, भाईचारा जैसे सदगुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है और यही सच्चे मानव की पहचान है जिसे पाप धूमिल कर देता है। पाप के द्वारा हम उस ईश्वर की छवि और प्रतिरूप को नष्ट कर देते हैं जिसने हमें बनाया है। इस तरह हम मानवता की उस सुन्दरता को नष्ट करते हैं जिसका सपना ईश्वर देते हैं। इसलिए दण्डमोचन सबसे बढ़कर और सबसे महत्वपूर्ण उपहार है जिसको कलीसिया प्रदान करती है, क्योंकि जैसा कि हम सुसमाचारों में पढ़ते हैं, कलीसिया के पास बांधने और खोलने की शक्ति है और इसलिए वह ईश्वर की इस दया को प्रदान करती है, जिसके हकदार हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त और स्वर्ग के संत हैं, जिसका मनुष्यों के जीवन पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है और वे अपनी मानवता को पुनः प्राप्त करते हैं।
पाप के द्वारा ईश्वर और पड़ोसियों के साथ हमारा संबंध टूट जाता है जबकि दण्डमोचन से स्वार्थ और दूसरों की पीड़ा के प्रति उदासीनता के बदले हममें मित्रता, भाईचारा और प्रेम भर देता है।
दण्डमोचन से लाभ
तोरनियेली ने बतलाया कि दण्डमोचन शब्द का प्रयोग अब कम हो गया है लेकिन एक समय था जब दण्डमोचन लाभदायक था। कलीसिया के धर्मसिद्धांत के अनुसार, हमारे पापों के कारण दंड को रद्द करने की संभावना इसलिए होती है क्योंकि संत मंडली की आध्यात्मिक वस्तुएँ, हमें, उन लोगों से जोड़ती हैं जो उस पार हैं, अर्थात् स्वर्ग में हैं।
बाजार का विचार अब भी है, लेकिन क्या इसे सकारात्मक तरीके से समझा जा सकता है? अंद्रेया तोरनियेली के इस सवाल पर धर्माध्यक्ष जवाब देते हैं, “हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जो बाजार पर केंद्रित है, व्यापार पर; वास्तव में कुछ लोग कहते हैं कि पैसा अब सभी मूल्यों का प्रतीक बना हुआ है, जिसके कारण पैसों के बिना कुछ भी नहीं किया जाता है और जैसा कि एक कहावत है: "पैसे के बिना मिस्सा में गाना भी मुश्किल है।"
आध्यात्मिक अनुभव और पैसे के बीच संबंध कलीसिया में हमेशा रही है। प्राचीन समय में जब लोग पापस्वीकार करने जाते थे तो शायद वहाँ दंड की शुल्क तालिका भी होती थी। यह एक अजीब बात है जो निश्चय ही ठीक नहीं है लेकिन इसे आज हम एक नये प्रकाश में देखते हैं। कहा जाता है कि धनी लोग जब पाप स्वीकार करते थे और फिर उन्हें क्षमा प्राप्त करने के लिए शुद्धिकरण और त्याग के कुछ काम करने पड़ते थे, जो कभी-कभी बहुत भारी होता था, वे गरीबों को इसके लिए भुगतान करते थे और इस प्रयोग को कुछ हद तक अनुमति दी जाती थी। इस पहलू में व्यावसायिकता इस अर्थ में भी है जो एकजुटता की दिशा में जाती है, अर्थात् यह गरीबों को जीने का अवसर देती है।
प्रारंभिक ख्रीस्तीय धर्म के इस प्रयोग का उल्लेख करते हुए, लूथर निश्चित रूप से यह कहने में सही थे कि कुछ मामलों में व्यापारिकता को वस्तुगत रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। हालांकि, एक ऐसे बाजार का विचार हो सकता है जो उन लोगों की आध्यात्मिक वस्तुओं, एकजुटता और आपसी भागीदारी को साझा करने के लिए हो जिनके पास बहुत है और जो इसे दे सकते हैं।"