पोप लियोः मृत्यु जीवन का अंग है

पोप लियो ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा में मृत्यु की सत्यता के बारे में चिंतन करते हुए उसे अनंत जीवन में प्रवेश का मार्ग बताया।

पोप लियो ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात और स्वागतम्।

मृत्यु के रहस्य ने सदैव मानव के लिए गहरे सावलों को उत्पन्न किया है। वास्तव में, यह हमारे लिए एक अति स्वाभाविक, वहीं एक अति अस्वाभाविक घटना प्रतीत होती है। यह हमारे लिए स्वाभाविक है क्योंकि इस दुनिया का हर जीवित प्राणी मरता है। यह हमारे लिए अस्वाभाविक है क्योंकि जीवन और अनंत जीवन जिसकी चाह हम अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए रखते हैं, मृत्यु को एक सजा स्वरूप ले कर आती है, यह हमारे लिए एक “विरोधाभाव” स्वरूप होता है।

मृत्यु एक प्रतिबंधित शब्द
पोप ने कहा कि प्राचीन समय में बहुत से लोगों ने मृत्यु से संबंधित बहुत से धर्मविधि और परंपराओं का विकास किया जिससे वे उन्हें याद करते हुए उनके संग रह सकें जो अनंत रहस्य की ओर यात्रा कर गये। आज, यद्यपि, हम एक अलग ही अभ्यास को पाते हैं। मौत की बात को हम एक तरह से प्रतिबंध स्वरुप पाते हैं, एक ऐसा विषय जिससे दूर रखना है; एक ऐसी बात जिसके बारे में धीमी आवाज़ में बोला जाये, ताकि हमारी भावनाओं और शांति में कोई विध्न-बाधा न पड़े। इसी वजह से, हम अक्सर कब्रिस्तान जाने से बचते हैं, जहाँ हमसे पहले गुजर गये लोग आराम करते हैं, और पुनर्जीवित होने का इंतज़ार करते हैं।

मौत की सच्चाई
अतः मृत्यु क्या हैॽ क्या यह हमारे जीवन का अंतिम वाक्य हैॽ केवल मानव अपने में यह सवाल पूछता है क्योंकि केवल उन्हें पता है कि एक दिन उन्हें मरना ही है। लेकिन इस बात की सचेतना उन्हें मृत्यु से नहीं बचाती है बल्कि एक निश्चित अर्थ में, यह उन्हें सभी जीवित प्राणियों में बोझिल बना देती है। जानवर निश्चित रूप में दुःख सहते हैं और इस बात का अनुभव करते हैं कि उनकी मौत निकट है, लेकिन वे नहीं जानते कि मौत उनके भाग्य का अंग है। वे इसका अर्थ, उद्देश्य या इसके परिणाम के बारे में नहीं पूछते हैं।

इस बात की अनूभूति में, हम अपने को विरोधाभाव स्वरुप, नखुश प्राणियों की भांति देखते हैं, न केवल इसलिए कि हम मरते हैं बल्कि इसलिए भी कि हम निश्चित रुप से जानते हैं कि यह एक दिन होने को है, लेकिन इसके बावजूद हम यह नहीं जानते कि यह कब और कैसे होगा। हम अपने में इस बात का अनुभव करते हैं यद्यपि हम अपने को उस परिस्थिति में निःसहाय पाते हैं। शायद यहीं से मौत के सवाल को बार-बार दबाने और उससे बचने की कोशिशें शुरू होती हैं।

जीवन का अर्थ क्या हैॽ
संत अल्फोन्सुस मरिया लिगोरी ने अपनी मशहूर रचना, “आप्पारेचो आल्ला मोरते” (मृत्यु की तैयारी) में, मृत्यु से मिलने वाली शिक्षा के बारे में लिखते और उसे जीवन की सीख देनेवाले एक बड़े शिक्षक स्वरुप रेखांकित करते हैं। इस बात को जानना कि मौत का अस्तित्व है और उससे भी बढ़कर उस पर चिंतन करना हमें यह शिक्षा देती है कि हमें अपने जीवन को असल में किस तरह जीने की आवश्यकता है। प्रार्थना करना, जिससे हम इस बात को समझ सकें कि स्वर्ग राज्य हेतु क्या महत्वपूर्ण है, जिससे हम व्यर्थ की चीज़ों का परित्याग कर सकें- जो हमें कुछ समय के लिए क्षणभंगुर चीज़ों से बांधे रखती है, यही असली ज़िंदगी जीने का राज़ है, यह सचेतना है कि धरती पर हमारा सफ़र हमें अनंत जीवन के लिए तैयार करता है।

अमरत्व की चाह
फिर भी, आज की बहुत सी एंथ्रोपोलॉजिकल विचार हमेशा अमर रहने का वादा करते, और तकनीकी के माध्यम पृथ्वी पर जीवन लंबा करने की बातें कहते हैं। यह अमरत्व का एक परिदृश्य है, जो हमारे समय की चुनौतियों में से एक बनकर उभर रही है। क्या विज्ञान के द्वारा सच में मौत को हराया जा सकता हैॽ लेकिन फिर, क्या वही विज्ञान हमें इस बात की निश्चितता प्रदान कर सकता है कि मृत्यु के बिना भी एक खुशहाल जीवन हैॽ