पोप : प्रेम बिना जीवन सूना
पोप फ्रांसिस ने बुधवारीय धर्मशिक्षा माला में गुणों और अवगुणों की कड़ी में बुराई “वासना” पर चिंतन किया।
पोप फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
हम गुण और अवगुणओं पर अपनी धर्मशिक्षा माला में आगे बढ़ते हैं। प्राचीन आचार्यों ने अपनी धर्मशिक्षा में कहा है कि पेटूपन के बाद दूसरा “शैतान” वासना है जो सदैव हमारे हृदय के दरवाजे पर दुबके बैठा रहता है। पेटूपन में जहाँ हम भोजन के लिए एक लालसा को पाते हैं तो वहीं वासना में हम किसी दूसरे व्यक्ति के लिए अपनी भूख को पाते हैं, अर्थात मानव का दूसरे के संग एक जहरीला संबंध जो यौन से संबंधित है।
पोप फ्रांसिस ने कहा कि हम यह याद रखें कि ख्रीस्तीयता में कामुकता जो हमारे मानवीय स्वाभाविक प्रवृत्ति है अपने में बुरा नहीं है। धर्मग्रंथ बाईबल की एक पुस्तिका, सुलेमान के सर्वश्रेष्ठ गीत, दंपतियों के मध्य प्रेम का एक अद्वितीय काव्य है। यद्यपि मानवता में प्रेम, यौन का यह सुन्दर आयाम अपने में खतरे से खाली नहीं है, अतः इसके संबंध में संत पौलुस कुरूथियों के नाम अपने पहले पत्र में कहते हैं, “आप लोगों के बीच हो रहे व्यभिचार की चर्चा चारों ओर फैल गई है ऐसा व्यभिचार जो गैर-यहूदियों में भी नहीं होता।” प्रेरित खास कर कुछ ख्रीस्तीयों में अस्वाभाविक कामुकता को लेकर उन्हें फटकारते हैं।
लेकिन हम मानवीय अनुभव पर चिंतन करें, जहाँ हम प्रेम होने का अनुभव करते हैं। संत पापा ने नव दंपत्ति जोड़ों की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि यह रहस्यमय बात क्यों होती है, लोगों के जीवन में यह हृदयविदारक अनुभव क्यों होता है, हममें से कोई इस तथ्य को नहीं जानता है। यह मानवीय जीवन के अस्तित्व में एक अति आश्चर्यजनक सच्चाइयों में से एक है। रेडियो में हम जो गाने सुनते हैं वे सारे प्रेम से संबंधित होते हैं। प्रेम जो चमकता है, प्रेम जो हमेशा खोजता और अपने में कभी संतुष्ट नहीं होता है, प्रेम जो अपने में आनंद से भरा है या प्रेम जो हमें आंसूओं तक प्रताड़ित करता है।
पोप फ्रांसिस ने कहा कि यदि यह बुराई से दूषित नहीं तो प्रेम करना अपने में सबसे परिशुद्ध अनुभूति है। प्रेम में एक व्यक्ति उदार होता है, वह उपहार देने में खुशी का अनुभव करता है, वह कविताएँ और खतें लिखता है। प्रेम अपने बारे में नहीं सोचता बल्कि अपने को दूसरे के लिए पूर्णरूपेण निछावर करता है। यदि आप एक प्रेमी को पूछें कि वह प्रेम क्यों करता है तो उसे इसका उत्तर नहीं मिलेगा- कई रुपों में उसका प्रेम अपने में शर्तहीन है, बिना किसी कारण के। फिर भी, वह प्रेम अपने में शक्तिशाली रहने पर भी एक हद तक अपने में भोला-भाला भी है। प्रेमी अपने प्रेम करने वालों के चेहरे को नहीं जानते हैं, वे आदर्श बनने की कोशिश करते हैं, वे अपने में प्रतिज्ञाएं करते यह नहीं समझते हुए की उसका भार उनके लिए क्या होगा। यह “वाटिका” जहाँ हम आश्चर्यों की वृद्धि पाते जबकि अपने में बुराई से अछूता नहीं है। यह वासना के राक्षस से दूषित किया जाता है और यह बुराई मुख्यतः दो बातों से घृणा करती है, जिसके दो कारण हैं।
पहला कि यह दो व्यक्तियों के बीच संबंध को नष्ट कर देता है। दुर्भाग्यवश, हर दिन के समाचारों में इस सच्चाई को सत्यापित पाते जो अपने में प्रर्याप्त है। कितने ही संबंध जो अपनी सर्वश्रेष्ठता में शुरू होते लेकिन उनका अंत कटु जो जाता है, जहाँ हम एक-दूसरे को अपने वश में करने, सम्मान की कमी और सीमाओं के अर्थ को पाते हैं। इन प्रेमों में हम शुद्धता का अभाव पाते हैं- एक गुण जहाँ हम अपने को कामुकता के परहेज से भ्रमित न होने दें, लेकिन उससे भी बढ़कर हम दूसरे को अपने वश में रखने का विचार कभी न करें। प्रेम करने का अर्थ दूसरे का आदर करना, दूसरे की खुशी चाहना है, दूसरे की अनुभूतियों के प्रति सहानुभूति रखना, अपने शरीर के ज्ञान अनुसार संचालित होना, एक मनोवैज्ञानिक, और एक आत्मा का ख्याल रखना जो हमारा नहीं है हमें उस सुन्दरता पर विचारमंथन करने की जरुरत है जो हममें व्याप्त है। कामवासना वहीं दूसरी ओर इन सारी चीजों को मजाक में लेता है, यह उन्हें लूटता, उनका शिकार करता, शीघ्रता में उनका भक्षण करता है, यह दूसरे को सुनना नहीं चाहता, बल्कि स्वयं की जरुरतों और खुशी की चाह रखता है। वासना प्रेमालाप को उबाऊ रूप में देखता है। यह कारणों का निचोड़ नहीं निकालता है, प्रेरणा और भावना जो जीवन के अस्तित्व को बुद्धिमानी से आगे बढ़ने में मदद करते हैं। वासना से भरा व्यक्ति केवल शॉर्टकट की खोज करता है, वह इस बात को नहीं समझता कि प्रेम का मार्ग लम्बा धीरे चलने की माँग करता है, और यह धैर्य उबाऊ से दूर हमारे प्रेमपूर्ण संबंध को आनंद से भर देता है।