कारीगरों से पोप: 'दुनिया को शांति और भाईचारे के कारीगरों की जरूरत है'
पोप फ्राँसिस ने शनिवार को इटली के उद्यमी और शिल्पकार परिसंघ के करीब 5000 प्रतिनिधियों से वाटिकन के पौल षष्ठम सभागार में मुलाकात की और उन्हें शांति, भाईचारे एवं सौंदर्य के कारीगर बनने के लिए प्रोत्साहित किया।
संघ की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए हुई थी। हाल के दशकों में, शिल्प कौशल में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं, यह छोटी कार्यशालाओं से लेकर बड़े पैमाने पर वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करनेवाली कंपनियों तक पहुंच गया है। प्रौद्योगिकियों के प्रयोग ने इस क्षेत्र की संभावनाओं को बढ़ा दिया है, फिर भी पोप ने कहा कि “वे ईश्वर की छवि और प्रतिरूप में बनाये गये मनुष्य की कल्पना का स्थान नहीं ले सकते। क्योंकि असाधारण गति के बावजूद मशीनें नकल करती हैं, जबकि लोग आविष्कार करते हैं!
शिल्पकारों के कार्यों में मानवीय प्रतिभा और रचनात्मकता को देखते हुए संत पापा ने इस बात को रेखांकित किया कि उनके कार्य शरीर के तीन अंगों से कैसे जुड़े हैं। वे अंग हैं : हाथ, आँख और पैर।
पोप ने बतलाया कि शारीरिक श्रम द्वारा एक शिल्पकार ईश्वर के रचनात्मक कार्य में सहभागी होता है। इसके लिए हस्त कला, हृदय के जुनून और मन के विचारों को एक साथ लाना पड़ता है। उन्होंने कहा, “आपके हाथ बहुत सी चीजें बनाना जानते हैं जो आपको ईश्वर के सहयोगी बनाते हैं।” लेकिन इस बात पर गौर करते हुए कि आज बहुत सारे लोग बेरोजगार हैं अथवा अच्छे शिल्पकार नहीं बन सकते, संत पापा ने कहा, “हाथों के वरदान और उस काम के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें एवं उनकी प्रशंसा करें जो आपको खुद की अभिव्यक्ति की अनुमति देता है।”
पोप ने संघ से आग्रह किया कि वे कमजोर वर्ग के लोगों को भी काम देने से पीछे न हटें, खासकर, युवा, महिला और आप्रवासियों को। उन्होंने कहा, “प्रत्येक व्यक्ति को एक श्रमिक एवं कामगार के रूप में उसकी गरिमा के अनुरूप पहचाना जाना चाहिए। आइए, हम उन लोगों के सपनों के पंख कभी न काटें जो काम के माध्यम से दुनिया को बेहतर बनाने का इरादा रखते हैं और खुद को अभिव्यक्त करने के लिए अपने हाथों का उपयोग करते हैं।
पोप ने शिल्पकार की दूसरी विशेषता पर प्रकाश डालते हुए कहा, "शिल्पकार सामग्री की सुंदरता की नियति को देखनेवाला पहला व्यक्ति है। और यह उसे सृष्टिकर्ता के करीब लाता है।” संत मारकुस रचित सुसमाचार में, येसु को "बढ़ई" के रूप में परिभाषित किया गया है। (6.3) बढ़ाई जोसेफ के बेटे के रूप में येसु ने नाजरेथ में काम करना सीखा, कई सालों तक इसी काम को किया और चीजों एवं अपने काम को महत्व देना सीखा। हाल के वर्षों में उपभोक्तावाद की संस्कृति ने कचरे की मानसिकता का प्रचार किया है लेकिन सृष्टि केवल वस्तु नहीं बल्कि एक उपहार है, "एक आनंदमय रहस्य जिसको हम आनंद और प्रशंसा से प्रतिबिम्बित करते हैं।" इस तरह वे वास्तविकता को एक अलग नजरिये से देखने एवं उन चीजों के सौंदर्य एवं महत्व को समझने में मदद करते हैं जिन्हें ईश्वर ने हमें प्रदान किया है।
पोप ने इस बात पर भी गौर किया कि शिल्पकारों के कार्य से जो समान तैयार होते हैं उन्हें दुनियाभर में भेजा जाता है और लोगों की जरूरतों को पूरा किया जाता है। कारीगरी, कौशल काम करने, कल्पना विकसित करने, रहने की स्थिति और रिश्तों को बेहतर बनाने का एक तरीका है। संत पापा ने कहा, “यही कारण है कि मैं भी आपको भाईचारा के कारीगर के रूप में सोचना पसंद करता हूँ।”
भले समारितानी के समान बनने का प्रोत्साहन देते हुए पोप ने कहा, “ऐसे पुरुषों और महिलाओं से शुरू करके एक समुदाय का पुनर्निर्माण किया जा सकता है जो दूसरों की नाजुकता को अपना बनाते, जो बहिष्कार के समाज का निर्माण नहीं होने देते, बल्कि पड़ोसी बन जाते हैं और गिरे हुए व्यक्ति को उठाते एवं उसका पुनर्वास कराते हैं, ताकि चीजें सभी के लिए हों।" हमारे पैर हमें रास्ते में गिरे कई लोगों से मिलने की अनुमति देते हैं: काम के माध्यम से हम उन्हें अपने साथ चलने की दे सकते हैं। हम उदासीनता की संस्कृति के बीच, यात्रा के साथी बन सकते हैं। हर बार जब हम अपने भाई के करीब आने के लिए एक कदम बढ़ाते हैं, तो हम एक नई मानवता के कारीगर बन जाते हैं।
मैं आपको ऐसे समय में शांति के शिल्पकार बनने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ जब युद्ध लोगों को अपने शिकार बना रहा है और गरीबों की बात नहीं सुनी जाती है।
पोप ने कहा, “अपने हाथों, अपनी आंखों, अपने पैरों को रचनात्मक और उदार मानवता का प्रतीक बनने दें। और आपका दिल हमेशा सुंदरता के प्रति उत्साही रहे।” संत पापा ने उनके अच्छे कार्यों के लिए धन्यवाद देते हुए उन्हें संत जोसेफ के संरक्षण में सौंप दिया।