लक्समबर्ग शांति के लिए सहयोग का एक मॉडल बन सकता है, पोप फ्राँसिस
लक्समबर्ग की अपनी आठ घंटे की यात्रा के पहले आधिकारिक भाषण में पोप फ्राँसिस ने यूरोपीय एकता और शांति को बढ़ावा देने में यूरोप के केंद्र स्थित इस छोटे राष्ट्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला तथा फिर से उभर रहे राष्ट्रवाद और युद्धों की निंदा की।
पोप फ्राँसिस अपनी 46वीं प्रेरितिक यात्रा पर बहस्पतिवार को लक्समबर्ग पहुँचे। उन्होंने इस यात्रा में अपने कार्यक्रमों की शुरूआत लक्समबर्ग के सरकारी अधिकारियों, राजनयिकों और नागर समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात करते हुए की।
लक्समबर्ग की अपनी आठ घंटे की यात्रा के पहले आधिकारिक भाषण में पोप फ्राँसिस ने यूरोपीय एकता और शांति को बढ़ावा देने में यूरोप के केंद्र स्थित इस छोटे राष्ट्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला तथा फिर से उभर रहे राष्ट्रवाद और युद्धों की निंदा की।
करीब 300 अधिकारियों एवं प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, “मुझे लक्समबर्ग के ग्रैंड डची की यात्रा करते हुए खुशी हो रही है, और मैं शाही नेता एवं प्रधानमंत्री को मेरा सौहार्दपूर्ण स्वागत करने के लिए हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।”
विभिन्न भाषाई और सांस्कृतिक क्षेत्रों की सीमा पर स्थित अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण, लक्समबर्ग अक्सर खुद को यूरोप की सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के चौराहे पर पाता है। पिछली सदी के पहले भाग में इसे दो बार आक्रमण का सामना करना और अपनी स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता से वंचित होना पड़ा।
यूरोपीय शांति और एकता में लक्समबर्ग की ऐतिहासिक भूमिका
पोप ने कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से, आपके देश ने अपने इतिहास से प्रेरणा ली है तथा एक एकीकृत और भाईचारे वाले यूरोप के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता में खुद को प्रतिष्ठित किया है, जिसमें प्रत्येक देश, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, हरेक की अपनी भूमिका होती है, तथा जहाँ राष्ट्रवाद और घातक विचारधाराओं के कारण उत्पन्न विभाजन, झगड़े और युद्ध पीछे छूट सकते हैं।”
यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि जब टकराव और हिंसक विरोध का तर्क प्रबल होता है, तो परस्पर विरोधी शक्तियों के बीच सीमा पर स्थित क्षेत्र उनकी इच्छा के विरुद्ध उलझ जाते हैं। लेकिन जब वे बुद्धिमानी से तरीक फिर से खोज लेते हैं, और विरोध की जगह सहयोग ले लेता है, तो सीमा पर स्थित वही क्षेत्र शांति के नए युग की जरूरतों और चलने के रास्तों की पहचान करने के लिए सबसे उपयुक्त बन जाते हैं।
वास्तव में, लक्समबर्ग इस सिद्धांत का अपवाद नहीं है, क्योंकि यह यूरोपीय संघ और उसके पूर्ववर्ती समुदायों का संस्थापक सदस्य था। यह यूरोपीय संघ के न्यायालय, यूरोपीय लेखा परीक्षक न्यायालय और यूरोपीय निवेश बैंक सहित कई यूरोपीय संस्थानों का भी घर है।
धन में सबसे कमजोर लोगों के प्रति जिम्मेदारी
इसके अलावा, पोप ने कहा, “आपके देश की ठोस लोकतांत्रिक संरचना, जो मानव व्यक्ति की गरिमा और मौलिक स्वतंत्रता की रक्षा को संजोती है, लक्समबर्ग को महाद्वीपीय संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अनुमति दी है। वास्तव में, क्षेत्र का आकार या निवासियों की संख्या किसी राष्ट्र के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने या उसके आर्थिक और वित्तीय केंद्र बनने के लिए अपरिहार्य शर्तें नहीं हैं। इसके बजाय, यह बुद्धिमान संस्थानों और कानूनों का धैर्यपूर्वक निर्माण है, जो निष्पक्षता और कानूनी शासन के सम्मान के मानदंडों के अनुसार नागरिकों के जीवन को विनियमित करके, व्यक्ति और आमहित को केंद्र में रखते हैं, भेदभाव और बहिष्कार के खतरों को रोकते और उनका प्रतिकार करते हैं।
इस संबंध में, 1985 में लक्समबर्ग की अपनी यात्रा के दौरान संत जॉन पॉल द्वितीय द्वारा कहे गए शब्द आज भी प्रासंगिक हैं: "आपका देश, संस्कृतियों के इस महत्वपूर्ण चौराहे पर, लगातार बढ़ती संख्या में देशों के बीच गहन आदान-प्रदान और सहयोग का स्थान बनने के अपने आह्वान के प्रति वफादार बना हुआ है। मुझे पूरी उम्मीद है कि एकजुटता की यह इच्छा राष्ट्रीय समुदायों को और अधिक एकजुट करेगी और दुनिया के सभी देशों, विशेष रूप से सबसे गरीब देशों तक फैलेगी" (स्वागत समारोह में संबोधन, 15 मई 1985)। पोप फ्राँसिस ने कहा, “इन कथनों को अपनाते हुए, मैं विशेष रूप से लोगों के बीच भाईचारे की स्थापना के लिए अपने आह्वान को नवीनीकृत करता हूँ, ताकि सभी लोग समग्र विकास की एक संगठित प्रक्रिया में भागीदार हो सकें और मुख्य पात्र बन सकें।
कलीसिया का सामाजिक सिद्धांत ऐसी प्रगति की विशेषताओं और इसे प्राप्त करने के तरीकों पर प्रकाश डालता है। संत पापा ने इसे ध्यान में रखते हुए अपने भाषण में दो प्रमुख विषयों पर विस्तार से चर्चा की: सृष्टि की देखभाल और भाईचारा।
उन्होंने कहा, “वास्तव में, विकास को प्रमाणिक और समग्र बनाने के लिए, हमें अपने आमघर को लूटना या नीचा नहीं दिखाना चाहिए। हमें हाशिये पर पड़े लोगों या सामाजिक समूहों को नहीं छोड़ना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धन रखने में जिम्मेदारी भी शामिल है। इस प्रकार, मैं निरंतर सतर्कता बरतने को आग्रह करता हूँ ताकि सबसे वंचित राष्ट्रों की उपेक्षा न की जाए, तथा उन्हें उनकी दरिद्रतापूर्ण स्थिति से उभरने में सहायता दी जाए। यह उन लोगों की संख्या में कमी सुनिश्चित करने का एक तरीका है, जिन्हें अक्सर अमानवीय और खतरनाक परिस्थितियों में प्रवास के लिए मजबूर होना पड़ता है।” संत पापा ने उम्मीद जताते हुए कहा कि अपने विशेष इतिहास और विशेष भौगोलिक स्थिति के साथ, जहाँ लगभग आधे निवासी यूरोप और व्यापक दुनिया के अन्य भागों से आते हैं, लक्समबर्ग प्रवासियों और शरणार्थियों का स्वागत करने और उन्हें एकीकृत करने में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाने में सहायक और उदाहरण बन सकता है।